इलाहाबाद हाई कोर्ट ने वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में बनी ज्ञानवापी मसजिद के सर्वे पर रोक लगा दी है। भारतीय पुरातत्व सर्वे (एएसआई) को इसका सर्वे करने को कहा गया था।
वाराणसी के सीनियर सिविल जज ने आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (एएसआई) से ज्ञानवापी मसजिद का सर्वे करने को कहा था।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने वाराणसी की अदालत में इस मामले से जुड़ी सभी कार्रवाइयों पर रोक लगा दी है।
जस्टिस प्रकाश पाडिया के एक सदस्यीय बेंच ने इस मामले में फ़ैसला सुनाया।
हाई कोर्ट में दी गई याचिका में कहा गया था कि इस मामले में पहले से ही एक मामला चल रहा है, लिहाज़ा, वाराणसी के सीनियर सिविल जज का मसजिद के सर्वे से जुड़ा आदेश ग़लत है, इसे बदला जाना चाहिए।
वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर में मंदिर था या मसजिद थी, इस पर लंबे समय से विवाद चल रहा है। साल 1991 से एक मामला भी अदालत में है।
वाराणसी के सीनियर सिविल जज ने 8 अप्रैल 2021 को आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया से कहा था कि वह परिसर का सर्वेक्षण कर इसका पता लगाए। इस आदेश को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी।
याचिका
वाराणसी की ज़िला अदालत में दायर एक याचिका में कहा गया था कि ज्ञानवापी मसजिद का निर्माण एक धार्मिक स्थल के अवशेषों पर किया गया है।
याचिका में कहा गया था कि औरंगजे़ब ने प्राचीन भगवान विश्वेश्वर का मंदिर तोड़कर उसके खंडहर के ऊपर मसजिद का निर्माण किया था।
अदालत ने इस मामले में अपना फ़ैसला सुनाते हुए कहा था कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को मसजिद का पुरातात्विक सर्वेक्षण करना चाहिए।
ज़िला अदालत ने एएसआई के महानिदेशक को आदेश दिया था कि वे पाँच सदस्यों की एक कमेटी गठित करें और ये वे लोग होने चाहिए जो विशेषज्ञ हों और पुरातत्व विज्ञान के अच्छे जानकार हों। इनमें से दो लोग अल्पसंख्यक समुदाय से होने चाहिए।
क्या कहना है सुन्नी वक्फ़ बोर्ड का?
एएसआई सर्वे का विरोध करते हुए सुन्नी वक्फ़ बोर्ड के अध्यक्ष जुफ़र अहमद फ़ारूकी ने कहा था कि इस मामले को पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के तहत रोक दिया गया है।
उपासना अधिनियम को अयोध्या के फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने बरकरार रखा था। ज्ञानवापी मसजिद की स्थिति, किसी तरह के प्रश्न से परे है।
मथुरा को लेकर भी दायर है याचिका
उधर, मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि को लेकर भी हिन्दू पक्षकारों ने याचिकाएं दायर कर रखी हैं जिन पर सुनवाई चल रही है।
मथुरा में शाही ईदगाह को कृष्ण जन्मभूमि बताते हुए इसे वापस लेने का दावा किया जाता रहा है। मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि को मुक्त कराने के नाम पर एक ट्रस्ट बनाकर आंदोलन चलाने की भी कोशिश की गयी है।
मथुरा कृष्ण जन्मभूमि के विवाद का मुकदमा लड़ने के लिए हिन्दू पक्षकारों की ओर से उन्हीं वकीलों की सेवाएं ली गयी हैं जिन्होंने बाबरी मसजिद-राम जन्मभूमि का मुक़दमा लड़ा था।
सुन्नी वक्फ बोर्ड से जुड़े उलेमाओं का कहना है कि अयोध्या विवाद के शांत होने के बाद अब नए सिरे से प्रदेश में विवादों को जन्म देने की कोशिश की जा रही है।
बता दें कि वाराणसी के हिंदूवादी समूह ज्ञानवापी मसजिद को मंदिर परिसर का हिस्सा बताते हैं और इसे ध्वस्त करके यहां मंदिर निर्माण करने की मांग करते हैं।
याद दिला दें कि 1991 में भारत सरकार ने 1947 से पहले बने धर्मस्थलों की यथास्थिति बरकरार रखने का क़ानून पारित किया था। इस क़ानून के तहत 15 अगस्त 1947 से पहले के मंदिर-मसजिद विवादों में यथास्थिति रहेगी और इन्हें लेकर कोई मुक़दमा नहीं चल सकता है।
फिलहाल यह मसजिद केंद्रीय बलों की सुरक्षा में है और यहाँ गिने-चुने लोग ही नमाज़ पढ़ते हैं।
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