संसद सत्र का समापन हो गया है। लेकिन राज्यसभा में इस बार जो हुआ है, उसने भारतीय लोकतंत्र के सामने गंभीर मुद्दा पेश कर दिया है कि क्या सभापति जगदीप धनखड़ का व्यवहार सदन की गरिमा के अनुकूल है। धनखड़ हर सत्र में विपक्षी सांसदों से जो बर्ताव कर रहे हैं उससे सदन की पुरानी परंपरायें तार-तार हो रही हैं। पत्रकार कुणाल पाठक की टिप्पणीः