देश के अस्सी करोड़ ग़रीब अगर चाहें तो इस चुनाव-पूर्व घोषणा को प्रधानमंत्री की तरफ़ से दीपावली के तोहफ़े के तौर पर भी स्वीकार कर सकते हैं कि आने वाले पाँच और सालों तक उन्हें मुफ़्त के अनाज की सुविधा प्राप्त होती रहेगी। सरकार को इस वक्त चिंता सिर्फ़ दो ही बातों की सबसे ज़्यादा है ! पहली ग़रीबों की और दूसरी हिंदुत्व की। चिंता को यूँ भी समझा जा सकता है कि हिंदुत्व की रक्षा के लिए ग़रीबों को बचाए रखना ज़रूरी है !
देश में गरीबों को मिलने वाली 5 किलोग्राम मुफ्त राशन योजना का 30 सितंबर आखिरी दिन है। यह महीना खत्म होने में बीस दिन बाकी है लेकिन सरकार ने अभी तक इस योजना को आगे बढ़ाने पर कोई फैसला नहीं लिया है। तमाम राज्य इस योजना को जारी रखने की मांग कर रहे हैं। जानिए पूरी कहानी।
चुनाव के दौरान मुफ्तखोरी के दावे करके तमाम राजनीतिक दल देश को गलत दिशा में ले जा रहे हैं। इससे देश की तरक्की के रास्ते बंद नहीं होंगे, बल्कि बंद होंगे। आम आदमी पार्टी के संयोजक ने इसे सफलता का शॉर्टकट फॉर्म्युला मान लिया है, लेकिन वो गलतफहमी में हैं।
सरकार की पाँच किलो अनाज देने की घोषणा का क्या मतलब था? यह पिछले विधानसभा चुनाव में भी दिख गया। भले ही पेट भरा रहने वाले लोग इसे किसी भी नज़रिए से देखें, भूख के डर में रहा व्यक्ति इसे कैसे देखेगा?