महुआ मोइत्रा का संसद से निष्कासन सिर्फ महिला विरोध के रूप में नहीं जाना जाएगा। यह जाना जाएगा कि जब कोई महिला बहती हवा के खिलाफ खड़ी होती है, जब वो सत्य को संसद में उजागर करती है, जब उसे कदम-कदम पर जुझारू बनना पड़ता है तो महुआ की पहचान अब इस रूप में भी होगी। किसी के पास महुआ के खिलाफ हजारों तर्क हो सकते हैं, लेकिन इस तर्क का क्या जवाब है कि संसद में इस महिला को अपना पक्ष नहीं रखने दिया गया और देश के माननीय प्रतिनिधियों ने एक घंटे में एक विवादित रिपोर्ट पर अपनी बहस पूरी कर ली। वंदिता मिश्रा को इसलिए पढें कि सत्य का जिन्दा रहना कितना जरूरी हैः