भले ही भारत के संविधान को, शक्ति ‘भारत के लोगों’ से मिलती हो लेकिन इसका संरक्षण और समुचित संचालन विभिन्न संवैधानिक संस्थाओं और उन पर आसीन व्यक्तियों पर निर्भर करता है। लेकिन जब इन पदों पर आसीन लोगों में ही ‘संवैधानिक-थकान’ का अनुभव होने लगे तो सम्पूर्ण संवैधानिक लोकतंत्र पर खतरा उत्पन्न होने लगता है। देश के संविधान को बचाने के लिए वंदिता मिश्रा के इस विचारोत्तेजक लेख को जरूर पढ़ा जाएः