संवैधानिक-थकान, संवैधानिक पद पर बैठे किसी व्यक्ति/व्यक्तियों की वह अवस्था है जिसमें वो पद के दायरे, शक्तियों और जिम्मेदारियों से आगे बढ़कर एक स्वतंत्र व्यक्ति की तरह कार्य करना शुरू कर देता है। संवैधानिक लोकतंत्र संविधान, लोकतांत्रिक परंपराओं और व्यक्तिगत नैतिकता का एक असाधारण संयोजन है लेकिन यह संयोजन देश के सर्वोच्च पद पर आसीन व्यक्ति से भी कुछ दायरों और जिम्मेदारियों की आशा करता है लेकिन महत्वाकांक्षाओं के बहकावे में अक्सर यह संयोजन बिखर जाता है। हमारे दौर के भारत में, जिसे हम आज अपनी आँखों से देख रहे हैं, यह बिखराव देश की एकता को चुनौती दे रहा है।
जानबूझकर संविधान का अपमान करने वालों को पहचानिए
- विचार
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- 30 Oct, 2022

भले ही भारत के संविधान को, शक्ति ‘भारत के लोगों’ से मिलती हो लेकिन इसका संरक्षण और समुचित संचालन विभिन्न संवैधानिक संस्थाओं और उन पर आसीन व्यक्तियों पर निर्भर करता है। लेकिन जब इन पदों पर आसीन लोगों में ही ‘संवैधानिक-थकान’ का अनुभव होने लगे तो सम्पूर्ण संवैधानिक लोकतंत्र पर खतरा उत्पन्न होने लगता है। देश के संविधान को बचाने के लिए वंदिता मिश्रा के इस विचारोत्तेजक लेख को जरूर पढ़ा जाएः