संवैधानिक-थकान, संवैधानिक पद पर बैठे किसी व्यक्ति/व्यक्तियों की वह अवस्था है जिसमें वो पद के दायरे, शक्तियों और जिम्मेदारियों से आगे बढ़कर एक स्वतंत्र व्यक्ति की तरह कार्य करना शुरू कर देता है। संवैधानिक लोकतंत्र संविधान, लोकतांत्रिक परंपराओं और व्यक्तिगत नैतिकता का एक असाधारण संयोजन है लेकिन यह संयोजन देश के सर्वोच्च पद पर आसीन व्यक्ति से भी कुछ दायरों और जिम्मेदारियों की आशा करता है लेकिन महत्वाकांक्षाओं के बहकावे में अक्सर यह संयोजन बिखर जाता है। हमारे दौर के भारत में, जिसे हम आज अपनी आँखों से देख रहे हैं, यह बिखराव देश की एकता को चुनौती दे रहा है।