मणिपुर में शांति बहाली की राह क्या इतनी आसान है? आख़िर आगजनी और मुठभेड़ की ख़बरें क्यों आ रही हैं? मणिपुर के सेरोऊ इलाके में सुरक्षा बलों और विद्रोहियों के एक समूह के बीच 5-6 जून की दरमियानी रात हुई गोलीबारी में असम राइफल्स के दो जवान घायल हो गए। एक जवान शहीद हो गया। इसके साथ ही मणिपुर के काकचिंग जिले के सुगनू में ग्रामीणों ने एक खाली हुए शिविर में आग लगा दी। इस शिविर में यूनाइटेड कुकी लिबरेशन फ्रंट यानी यूकेएलएफ के उग्रवादियों ने शरण ली थी। यह अकेला शिविर नहीं है जिसमें आगजनी की घटना हुई है। ग्रामीणों का यह हमला तब हुआ है जब काकचिंग जिले के सुगनू में कांग्रेस विधायक के रंजीत के घर सहित क़रीब 100 खाली पड़े घरों को जलाने की घटना हुई थी। खाली घर इसलिए हैं क्योंकि हिंसा के दौरान लोग घरों को खाली कर राहत शिविरों या सुरक्षित जगहों पर चले गए हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक़ करीब 48 घंटे तक उग्रवादियों और सुरक्षा बलों के बीच लगातार गोलीबारी होती रही। बता दें कि मणिपुर में हाल ही में हुई जातीय हिंसा में 98 लोगों की मौत हो गई है और क़रीब 310 अन्य घायल हो गए हैं। रिपोर्ट है कि फिलहाल 37,450 लोग 272 राहत शिविरों में शरण ले रहे हैं। मेइती समुदाय की अनुसूचित जनजाति दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' आयोजित किए जाने के बाद 3 मई को हिंसा शुरू हुई थी।
बहरहाल, मणिपुर में आगजनी और उग्रवादियों के बीच झड़प की ख़बर की पुलिस अधिकारियों ने सोमवार को पुष्टि की है। इंडिया टुडे ने रिपोर्ट दी है कि शनिवार रात आगजनी की वारदात हुई और इस बीच राज्य पुलिस, भारतीय रिजर्व बटालियन, सीमा सुरक्षा बल और स्थानीय स्वयंसेवकों के एक संयुक्त अभियान में रविवार को नज़ारेथ शिविर में उग्रवादियों के साथ मुठभेड़ हुई।
रिपोर्ट के अनुसार मुठभेड़ के बाद उग्रवादी उस शिविर से भाग गए, जिसके बाद ग्रामीणों ने रविवार रात को आग लगा दी। कहा जा रहा है कि शिविर ने नए भर्ती किए गए कुकी उग्रवादियों के लिए एक प्रशिक्षण सुविधा के रूप में भी काम किया।
मणिपुर में अब बड़े पैमाने पर शांति लाने का प्रयास किया शुरू किया गया है। देश के गृहमंत्री अमित शाह मणिपुर में अलग-अलग समूहों और समुदायों से मिले। वह मेइती व कुकी रिलीफ़ कैंपों में पहुँचे। न्यायिक जाँच की घोषणा की गई है।
हिंसा की वजह क्या?
इस बीच संरक्षित वनों में राज्य सरकार द्वारा किए गए भूमि सर्वेक्षण को लेकर कुछ पहाड़ी क्षेत्रों में तनाव बढ़ रहा था। हाल ही में राज्य सरकार ने चुराचंदपुर-खौपुम संरक्षित वन क्षेत्र में एक सर्वेक्षण किया था। आरोप है कि उन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की राय लिए बिना और उन्हें बेदखल करने के इरादे से सर्वेक्षण किया गया। स्थानीय लोगों को डर था कि इस अभियान का उद्देश्य उन्हें जंगलों से बेदखल करना है, जहां वे सैकड़ों वर्षों से रह रहे हैं। यही वजह है कि 27 अप्रैल को मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के व्यायामशाला और खेल परिसर का उद्घाटन करने के लिए उनके दौरे से एक दिन पहले चुराचंदपुर में एक भीड़ ने मुख्यमंत्री के कार्यक्रम स्थल में आग लगा दी थी।
मणिपुर मुख्य तौर पर दो क्षेत्रों में बँटा हुआ है। एक तो है इंफाल घाटी और दूसरा हिल एरिया। इंफाल घाटी राज्य के कुल क्षेत्रफल का 10 फ़ीसदी हिस्सा है जबकि हिल एरिया 90 फ़ीसदी हिस्सा है। इंफाल घाटी के इन 10 फ़ीसदी हिस्से में ही राज्य की विधानसभा की 60 सीटों में से 40 सीटें आती हैं। इन क्षेत्रों में मुख्य तौर पर मेइती समुदाय के लोग रहते हैं।
आदिवासियों की आबादी लगभग 40% है। वे मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में रहते हैं जो मणिपुर के लगभग 90% क्षेत्र में हैं। आदिवासियों में मुख्य रूप से नागा और कुकी शामिल हैं। आदिवासियों में अधिकतर ईसाई हैं जबकि मेइती में अधिकतर हिंदू। आदिवासी क्षेत्र में दूसरे समुदाय के लोगों को जमीन खरीदने की मनाही है। लेकिन इस बीच कुछ बदलावों ने समुदायों के बीच तनाव को बढ़ा दिया।
अपनी राय बतायें