नागरिकता विधेयक पर पूर्वोत्तर में लगातार जारी आंदोलन के बीच असम में बीजेपी सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं। इस विधेयक के कारण राज्य के तमाम दल-संगठन और नागरिक एक तरफ़ तो राज्य सरकार दूसरी तरफ़ हो गए हैं, यहाँ तक कि असम में मित्र दल की सरकार में शामिल असम गण परिषद को भी इस विधेयक की वजह से सरकार विरोधी खेमे में शामिल होने पर मजबूर कर दिया है। 28 जनवरी से शुरू होनेवाले विधानसभा के बजट सत्र में असम गण परिषद (एजीपी) के विधायकों ने सत्तापक्ष के साथ बैठने से इनकार करते हुए अध्यक्ष हितेंद्रनाथ गोस्वामी को पत्र लिखा है। ये विधायक विरोधी खेमे में बैठना चाहते हैं। सरकार में एजीपी से मंत्री बने अतुल बोरा, केशव महंत और फणिभूषण चौधरी ने मंत्री पद से इस्तीफ़ा देने के बाद विधेयक विरोधी आंदोलन में ख़ुद को शामिल करने की घोषणा कर रखी है। हालाँकि, सरकारी निगम-निकायों के अध्यक्ष-उपाध्यक्ष आदि पदों पर आसीन एजीपी के नेता-विधायकों ने फ़िलहाल इस्तीफ़ा देने जैसे कदम नहीं उठाया है।23 जनवरी को छात्र संगठन आसू सहित 30 संगठनों द्वारा गुवाहाटी में आयोजित 'खिलंजियार बज्रनिनाद' कार्यक्रम में पूर्व मंत्री केशव महंत सहित तमाम एजीपी कार्यकर्ताओं को शरीक होते देखा गया। मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल की नेतृत्ववाली राज्य सरकार के ख़िलाफ़ विरोध की गति इतनी तेज़ी से बढ़ गई है कि सत्तापक्ष की कहीं बात कोई सुनने व समझने के मूड में नहीं है।

आसू सलाहकार डॉ. समुज्ज्वल भट्टाचार्य कहते हैं, ‘यह विधेयक ऐतिहसिक असम आंदोलन के बाद दस्तख़त किए गए असम समझौते का सरासर उल्लंघन है, जो क़तई स्वीकार्य नहीं है।’