गिलास आधा भरा या आधा खाली? पार्थिव पटेल के रिटायरमेंट के बाद क्रिकेट फैंस की सोच कुछ वैसी ही हो सकती है। क्या इस बात पर अफसोस जताया कि 17 साल की उम्र में सबसे युवा विकेटकीपर के तौर पर टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले पार्थिव पटेल ने अपनी प्रतिभा के साथ न्याय नहीं किया या फिर एम एस धोनी जैसे दिग्गज की मौजूदगी के बावजूद इस खिलाड़ी ने क्रिकेट से हार नहीं मानी और लगातार वापसी की उम्मीद में ख़ुद को बेहतर करता गया। पार्थिव के चलते पहली बार घरेलू क्रिकेट की फिसड्डी मानी जाने वाली टीम गुजरात ना सिर्फ़ 2016-17 में चैंपियन बनी बल्कि इसने मुंबई जैसी टीम को फ़ाइनल में मात दी। सिर्फ़ 4 टीमों ने मुंबई को रणजी फ़ाइनल में हराया था।
क्या पार्थिव ने अपनी प्रतिभा के साथ न्याय नहीं किया?
- खेल
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- 10 Dec, 2020

पार्थिव के करियर से युवा खिलाड़ी क्या सीख सकते हैं या फिर क्या प्रेरणा ले सकते हैं। सीखने वाले शायद यह सीख सकते हैं कि ज़िंदगी बार-बार शानदार मौक़े नहीं देती है। अगर मौक़े पर अच्छे से चौका ना लगा पायें तो वो मौक़ा कोई और अपने नाम कर सकता है जैसा कि धोनी ने किया।