भारत फिर विश्व विजेता हो गया। मुझे विश्वास है कि किसी हॉलीवुड के सस्पेंस थ्रिलर की तरह पूरे देश ने यह फाइनल मैच अपने टेलीविजन सेट्स से चिपक कर अपने-अपने भगवानों को याद करते हुए देखा होगा। भारत से हज़ारों मील दूर मॉरीशस में मैंने इसका आनंद अपने द. अफ्रीकी मित्रों के साथ लिया। द. अफ़्रीका के बदलते हुए हालातों के कारण ये बड़ी संख्या में मॉरीशस में रह रहे हैं। ये द. अफ़्रीकी भी क्रिकेट के मामले में हुबहू हम भारतीयों जैसे हैं। उतरे हुए चेहरे और हर हार में षड्यंत्र खोजते हुए।
चलिए, मैच की बात करें। मैच बेहद रोमांचक रहा। बरसों पूर्व इंग्लैंड से ऐसे ही किन्हीं रोमांचक क्षणों का वर्णन करते हुए प्रख्यात हिन्दी कमेंटेटर सुशील दोषी जी ने कहा था कि कमजोर दिल वाले संभल जायें। आज फिर वही क्षण जीवित हो गए। आईपीएल में थोक के भाव रोमांचक मैच देखने के अभ्यस्त क्रिकेट प्रेमी भी अपने रोमांच को नियंत्रित नहीं कर पा रहे थे।
विश्व क्रिकेट में आज हमारी टीम किसी समय की ऑस्ट्रेलिया की टीम की याद दिलाती है, जिससे विश्व क्रिकेट की सारी टीमें घबराती थीं। क्योंकि वो ऐसी टीम थी जो हार में से जीत खोज लेती थी। ऐसा मैच, जो आपके नियंत्रण में हो आपने ऑस्ट्रेलिया को जरा भी जगह दी तो समझिए मैच आपकी पकड़ से गया। आज की भारतीय क्रिकेट टीम भी ठीक ऐसी ही है और द. अफ़्रीका ने आज वही गलती की। अंतिम 30 गेंदों तक मैच उनकी पहुँच में था। या यूँ कहिए सही मायनों में आख़िरी 30 गेंदों ने उनकी क़िस्मत बॉक्स ही ख़राब खेली।
वैसे, इस विश्व कप में कोहली ठंडे ही थे। उन्होंने मैच के बाद क़बूला भी कि पूरे विश्व कप में कुछ ठीक नहीं था। उनकी महानता कुछ काम नहीं आई, लेकिन अनुभव काम आ गया।
आप यदि पूछेंगे कि आख़िर द. अफ़्रीका की ग़लती कहाँ हुई तो जवाब होगा शायद कहीं नहीं। सारे अख़बार और ट्विटर अंतिम 30 गेंदों पर उनके ख़राब प्रदर्शन (या बुमराह-हार्दिक के अलौकिक प्रदर्शन?) की बात कर रहे हैं लेकिन उसके ठीक पहले डले 14वें और 15वें ओवर को भूल रहे हैं जिसमें क्लासेन और मिलर स्कोर को 109 से 147 ले गये। 13वें ओवर की समाप्ति के समय जीत के लिए द अफ़्रीका को 42 गेंदों पर 68 रन चाहिए थे। जबकि 15वें ओवर की समाप्ति पर यह ज़रूरत 30 गेंदों पर 30 रन के आसान से दिखने वाले लक्ष्य पर पहुँच गई। उस समय 43 रन की साझेदारी के साथ क्लासेन 49 और मिलर 14 पर जमकर खेल रहे थे।
लेकिन फिर बुमराह के तीसरे ओवर से कहानी ही बदल गई। मात्र 4 रन देकर वे स्थापित बल्लेबाजों को दबाव में ले आये। सोचा होगा बुमराह का ओवर शांति से खेलते हैं, अगले ओवर में हाथ खोल लेंगे। उन्होंने किया भी वही। हार्दिक पटेल की पहली गेंद पर ही क्लासेन ने मारने की कोशिश की लेकिन विकेट कीपर पंत को कैच दे बैठे। क्लासेन की बिदाई और मात्र 4 रनों के साथ 17वां ओवर समाप्त हुआ और धीरे-धीरे लक्ष्य आगे सरकता गया। 18वें ओवर में बुमराह ने कमर ही तोड़ दी। मात्र दो रन देकर एक विकेट भी लिया और लक्ष्य अब तीस गेंदों पर तीस रन से बढ़ कर बारह गेंदों पर बीस रन हो गया। अंतिम ओवर के लिए हार्दिक को बचा कर रोहित ने 19वां ओवर अर्शदीप को दिया। मात्र 4 रन देकर अर्शदीप ने विजय का लक्ष्य अंतिम ओवर में 6 बॉल्स पर 16 रन पर पहुँचा दिया। उसके बाद की कहानी 8 रनों की पराजय की रही। क्रिकेट में इसे ही कहते हैं, मुमकिन से नामुमकिन का सफ़र।
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