आधुनिक भारत क्या कर सकता है, इसकी एक बानगी ब्रिस्बेन के गाबा मैदान में देखने को मिली जब भारतीय क्रिकेट टीम ने तीन विकेट से ऑस्ट्रेलिया को हरा दिया। इसके साथ ही भारत ने ऑस्ट्रेलिया को उसकी ही ज़मीन पर 2-1 से हरा दिया और भारत ने सारीज़ जीत ली। भारत ने यह साबित कर दिया कि वह इस वक़्त क्रिकेट में बेताज बादशाह है।

यह पहली बार है जब आधे से अधिक दिग्गज टीम में नहीं थे और जिन्हें नौसिखिया कहा जाता था, जो नेट बॉलर के तौर पर टीम में थे, उन्होंने दिग्गजों की कमी खलने नहीं दी और भारत का गौरव बढ़ाया। यह अभूतपूर्व है, अकल्पनीय है, अद्भुत है। यह जीत युवा भारत की है। नये आत्मविश्वासी भारत की जीत है।
यह मैच कई मायनों में भारतीय क्रिकेट में याद किया जायेगा। इस मैच में भारत के छह बड़े खिलाड़ी नहीं खेल रहे थे। कप्तान विराट कोहली टीम में नहीं थे। उनकी जगह अजिंक्य रहाणे ने कप्तानी की। इसके अलावा टीम के पाँचों बड़े गेंदबाज़ चोट की वजह से टीम से बाहर थे। दुनिया के दो सबसे बेहतरीन तेज़ गेंदबाज़ जसप्रीत बुमराह और मुहम्मद शमी अहमद टीम में नहीं थे। भारत के सबसे बेहतरीन दो स्पिन गेंदबाज़ अश्विन और जडेजा भी चोट की वजह से ये मैच नहीं खेल पाये। साथ ही गेंजबाज़ उमेश यादव भी चोट खा बाहर बैठे थे। यानी गेंदबाज़ी उनके हाथों में थी जिन्होंने कुल मिलाकर टेस्ट क्रिकेट में दस से अधिक विकेट नहीं लिये थे। फिर भी शिराज़, सुंदर, शार्दूल और सैनी ने जान लगा दी, भारत को निराश नहीं किया और यह महसूस नहीं होने दिया कि भारत की पहली पसंद के पाँच बड़े गेंदबाज़ टीम में नहीं हैं। यह सबूत है कि भारतीय टीम आज किस मुक़ाम पर है और नये खिलाड़ी जल्द हार मानने को तैयार नहीं हैं।
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।