किसानों के मार्च की घोषणा होने के तुरन्त बाद सरकार ने फ़सलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य इस उम्मीद में बढ़ाया था कि इससे वे संतुष्ट हो जाएंगे। पर ऐसा नहीं हुआ और उन्होंने दिल्ली पहुँच कर प्रदर्शन किया। इससे यह साफ़ हो जाता है कि सरकार की घोषणा से किसानों को राहत नहीं मिली।

इस साल जुलाई में सरकार ने कई फ़सलों का समर्थन मूल्य बढ़ाया था। सोयाबीन, मक्का, गेहूं, ज्वार समेत कई फ़सलों की कीमतें बढ़ाई गईं। पर इससे फ़ायदा नहीं हुआ और किसानों को उससे कम दाम पर अपने उत्पाद बेचने पड़े।

औने-पौने बिकती है फ़सल

इसकी वजह है। सरकार समर्थन मूल्य का ऐलान भले ही समय से पहले कर दे, पर उसकी ख़रीद प्रक्रिया निराशाजनक होती है। उसकी एजेंसी किसानों के पास देर से पहुँचती है, तब तक बिचौलिए औने-पौने में फ़सल ख़रीद चुके होते हैं। इसके अलावा ये एजेंसियां पूरा उत्पाद नहीं ख़रीदती हैं।