एक तरफ़ जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी झाबुआ में चुनावी रैली में यह कह रहे थे कि भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकने और बैंकों में पैसा वापस लाने के लिए उन्होंने नोटबंदी की 'कड़वी दवा' का नुस्ख़ा इस्तेमाल किया था, वहीं उसी दिन देश का कृषि मंत्रालय बता रहा था कि नोटबंदी की मार किसानों पर कितनी ज़्यादा पड़ी थी।
कृषि मंत्रालय ने वित्तीय मामलों पर संसद की स्थायी समिति को दी अपनी रिपोर्ट में यह बात साफ़-साफ़ मानी है कि नोटबंदी की चक्की में किसान बहुत बुरी तरह पिस गए थे। मंत्रालय ने कहा है कि देश में 26 करोड़ से ज़्यादा किसान हैं, जो आमतौर पर अपना सारा लेन-देन नक़द ही करते हैं। नोटबंदी ऐसे समय हुई, जब किसान या तो ख़रीफ़ की अपनी फ़सल को बाज़ार में बेचने में लगे थे या फिर रबी की बुआई की तैयारियाँ कर रहे थे। इन दोनों कामों के लिए नक़दी की ज़रूरत थी, जिसे नोटबंदी ने अचानक बाज़ार से सोख लिया।
बीज, उर्वरक नहीं ख़रीद पाए
इससे किसानों को अपनी ख़रीफ़ की फ़सल औने-पौने दाम में बेचनी पड़ी और नक़दी की कमी से वह रबी की बुआई के लिए बीज और उर्वरक नहीं ख़रीद पाए। हाथ में नक़दी न होने से केवल छोटे और मँझोले किसानों को ही नहीं, बल्कि बड़े किसानों को भी बहुत परेशानी हुई क्योंकि अपने खेत मज़दूरों को दिहाड़ी देने और बीज वग़ैरह ख़रीदने के लिए उनके पास भी पैसे नहीं थे।
1.38 लाख कुंतल बीज नहीं बिके
नक़दी की कमी से राष्ट्रीय बीज निगम के क़रीब 18 प्रतिशत बीज बिक नहीं पाए। निगम ने उस साल रबी के लिए गेहूँ के पौने आठ लाख कुंतल बीज तैयार किए थे, लेकिन किसानों के पास नक़दी की कमी से उसके 1.38 लाख कुंतल बीज बिक नहीं पाए। हालाँकि किसानों की मुश्किलों को देखते हुए बाद में सरकार ने बीजों की ख़रीद के लिए पाँच सौ और एक हज़ार के पुराने नोटों को स्वीकार करने की घोषणा भी की, लेकिन इसके बावजूद बीजों की ख़रीद में तेज़ी नहीं आ सकी।वित्तीय मामलों पर संसद की स्थायी समिति के अध्यक्ष कांग्रेस के वीरप्पा मोइली हैं। समिति नोटबंदी के परिणामों पर कृषि, श्रम व रोज़गार और लघु व मध्यम उद्योग मंत्रालयों की रिपोर्टों पर विचार कर रही थी। सूत्रों के मुताबिक़ बैठक में तृणमूल कांग्रेस के दिनेश त्रिवेदी ने सवाल उठाया कि क्या सरकार को 'सेंटर फ़ार मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनॉमी (CMIE) की उस रिपोर्ट की जानकारी है, जिसमें कहा गया है कि नोटबंदी के कारण जनवरी-अप्रैल 2017 की तिमाही में 15 लाख रोज़गार ख़त्म हो गए?
मंत्रालय ने कहा, रोज़गार बढ़े
श्रम मंत्रालय का कहना है कि नोटबंदी के बाद रोज़गार घटे नहीं, बल्कि बढ़े ही। मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि नोटबंदी के पहले और बाद के तिमाही रोज़गार सर्वेक्षणों के आँकड़ों के मुताबिक़ तिमाही सर्वेक्षण के चौथे और पाँचवें चक्र में क्रमश: 1.22 लाख और 1.85 लाख रोज़गार बढ़े। यह रोज़गार उन इकाइयों में बढ़े जहाँ दस या उससे ज़्यादा लोग काम करते हैं।हालाँकि आमतौर पर माना जा रहा था और ज़मीनी रिपोर्टें भी बता रही थीं कि रियल एस्टेट में लगे लोगों के अलावा असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे दिहाड़ी मज़दूरों और छोटा-मोटा काम करने वाले कारीगरों, मेकनिकों आदि पर नोटबंदी का बहुत बुरा असर पड़ा था और लाखों लोग बेरोज़गार हो गए थे। लेकिन असंगठित क्षेत्र के आँकड़े कहीं उपलब्ध नहीं हैं।
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