आज किसान दिवस है। हर साल आता है। लेकिन इस बार भारी हलचल है क्योंकि आम चुनाव सिर पर है। हाल ही में पाँच राज्यों के चुनाव में सत्तारूढ़ दल का सफ़ाया हुआ है, जिसे किसानों के ग़ुस्से का नतीजा माना जा रहा है!
इसलिए अब नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार समेत केंद्र सरकार व बीजेपी की तमाम राज्य सरकारें किसानों पर सहृदय होने की आख़िरी कोशिश में जुट गई हैं। नीति आयोग मीडिया को समझा रहा है कि मोदी जी के दिल और उनकी नीतियों में किसान की बदहाली ख़त्म करने का संकल्प कितना बड़ा है। झारखंड के मुख्यमंत्री प्रति एकड़ पाँच हज़ार रुपये की मदद का एलान कर चुके हैं, गुजरात सरकार ग्रामीण इलाक़ों में बिजली के बिल माफ़ कर रही है तो असम सरकार ने किसानों की क़र्ज़ माफ़ी के लिए साढ़े छह सौ करोड़ ख़ज़ाने से निकाल कर बाहर लहरा दिए हैं। केंद्र में एक बड़ी राष्ट्रव्यापी क़र्ज़माफ़ी के एलान का हिसाब तैयार हो रहा है! गाय और राम मंदिर को संघ ने नेपथ्य में कर लिया है।
चुनाव ने किया मजबूर
जीएसटी में भी नरमी लाई गई है, तमाम उपभोक्ता वस्तुएँ 28% के कॉरिडोर से निकालकर 18% और कुछ को 18 से निकाल कर 12% के ख़ाने में डालने का ज़ोर-शोर से एलान हुआ है क्योंकि कंपनियाँ विलाप कर रही थीं कि ग्रामीण इलाक़ों में लोगों के ख़रीदने की क्षमता ख़त्म हो चुकी है!सोशल मीडिया पर भी आज किसान ही किसान है। ट्विटर जैसे अभिजात्य माध्यम पर भी #FarmersDay ट्रेंड कर रहा है, उपराष्ट्रपति के दफ़्तर ने भी सुबह-सुबह कड़ाके की ठंड के बावजूद उनका ट्वीट मैदान में उतार दिया है। इसके कुछ उदाहरण देख सकते हैं।
हमारे किसानों के आने वाले कल को सुरक्षित करने के लिए मैं वो हर कोशिश करने वाला हूँ जिससे उनका भविष्य सुरक्षित बने|
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) December 23, 2018
यह सिर्फ़ वादा नहीं है, कर्तव्य भी है मेरा|
किसान दिवस के अवसर पर देश के किसानों को सलाम| आप हो तो हम हैं|#ThankYouFarmers pic.twitter.com/xOK9N9M0pu
Humble tributes to former Prime Minister Chaudhary Charan Singh Ji (Champion of Farmers) on his birth anniversary which is observed as #KisanDiwas across the country.
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) December 23, 2018
Salutations & gratitude to all the farmers of the country for their endless contribution towards nation building pic.twitter.com/JRc1Lazxf7
बैंकों की चिंता
सिर्फ सातवें वेतन आयोग के ज़रिये देश के नौकरीपेशा लोगों के लिये साढ़े चार लाख करोड़ रुपये तय कर देने वाले और बड़के बाबुओं की तनख़्वाह में बरसों पहले लाख रुपये की सीमा लाँघ चुके आर्थिक कलाबाजों को किसानों की लाशों की फ़ेहरिस्त रोकने का काम फिर मिला है। इसे रोकने वालों को स्टेट बैंक की रिसर्च टीम की बाधा दौड़ फलांगनी है, जिसने 13 दिसंबर 2018 को जारी की अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कहा है कि किसान का क़र्ज़ माफ़ किया तो बैंकिंग का ख़ात्मा तय है!
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मई 2019 तक किसानों के क़रीब 70,000 करोड़ रुपये के क़र्ज़ माफ़ किए जाने का जो प्रस्ताव है, वह बैंकिंग व्यवस्था के लिए भयानक चुनौती बनेगा!
स्टेट बैंक का कहना है कि किसान का क़र्ज़ माफ़ किया तो बैंकिंग का ख़ात्मा तय है! वह जो विकल्प सुझा रही है, वह चुनावी फ़सल नहीं दे सकती। उसमें कोई तात्कालिक प्रावधान नहीं है, बल्कि दीर्घकालिक रणनीति है।
क्या कहती है रिपोर्ट?
रिपोर्ट कहती है कि देश के 21.6 करोड़ छोटे और सीमान्त किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली को प्रभावी बनाया जाए और उन्हें साल में करीब 12 हज़ार रुपये की दर से दो क़िस्तों में कुछ वर्षों के लिए आर्थिक मदद दी जाए।इस पर सालाना ख़र्च क़रीब पचास हज़ार करोड़ रुपये आएगा। झारखंड की बीजेपी सरकार ने इसी से मिलता-जुलता एलान किया है, जिसके तहत वहाँ किसानों को प्रति एकड़ पाँच हज़ार रुपये दिए जाने हैं और एक किसान को अधिकतम 25 हज़ार रुपये तक दिये जाएंगे।
सबसे पहले यह स्कीम तेलंगाना सरकार ने शुरू की थी, जहाँ साल में दो फ़सल उगाने वालों को सरकारी अनुदान दिया गया। तेलंगाना में इसके राजनीतिक नतीजे भी आए।
स्टेट बैंक की रिपोर्ट स्वीकारती है कि खाद्य पदार्थों की क़ीमतों में दो प्रतिशत अंकों की गिरावट आई है, यानी आधिकारिक सबूत मौजूद है कि किसानों को उनकी फ़सलों के दाम मोदी राज में कम मिले हैं।
किसानों को झुनझुना
2014 के आम चुनाव के वक़्त मोदी जी ने किसानों को फ़सलों के उचित दाम न मिलने को अपनी जनसभाओं में ख़ूब भुनाया था। अब वही बात उनके गले पड़ गई है। वह समझते थे कि ग्रामीण आवास योजना की राशि बढ़ाने और फ़सल बीमा व स्वास्थ्य बीमा के झुनझुने के संयुक्त पैकेज का लाभ उन्हें मिलेगा। उन्हें एक हिस्से में लाभ मिला भी, पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को चौपट करने वाली नोटबंदी ने यह लाभ हानि में बदल दिया।सेनगुप्ता कमेटी
किसानों के मुद्दे के गंभीर क़लमकार देविंदर शर्मा अर्जुन सेनगुप्ता कमेटी की रिपोर्ट के हवाले से कहते हैं कि देश में एक किसान परिवार की औसत मासिक आय 2115 रुपये है! (यह पाँच बरस पुराना आँकड़ा है, और सच यह है कि किसानों की आमदनी अब और घट गई है) देविंदर शर्मा का कहना है कि सरकार किसानों को ज़िंदा रहने के लिए आर्थिक मदद दे। क्योंकि मिट्टी के मोल पर खाने की चीज़ें पैदा करके यह तबक़ा देश का पेट पाल रहा है और इनके उत्पाद पर कई गुना दाम बढ़ाकर बिचौलियों की जो कमाई हो रही है, वह सिस्टम में पसरकर देश की अर्थव्यवस्था चला रही है।
राहुल गांधी के लिए प्रचार-योजना बनाने वालों ने मोदी जी के भाषणों में से ही मोदी जी को राजनीतिक अखाड़े में धर पकड़ा है। लगभग सारी क्षेत्रीय पार्टियाँ भी मूलत: ग्रामीण जनाधार वाली पार्टियाँ ही है।सब जानते हैं कि बीजेपी मुख्यत: शहरी व कस्बाई जनाधार वाली पार्टी है जो कर्णप्रिय और झूठे वादों के प्रचार-प्रसार से देश के देहाती महासागर में घुस गई थी। अब सभी उसको उसी टर्फ़ पर पटखनी देने को आतुर हैं। मोदी जी की कारपोरेटपरस्त नीतियों और बड़े उद्योग घरानों से उनकी नज़दीकी ग्रामीण जनमानस में उनके बारे में जो धारणा निर्मित कर रही है, उसकी काट आसान नहीं है!
गाँवों में टिके रहने के लिए संघी कुनबा गाय और राम मंदिर पर निर्भर है, पर यह दाँव राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे धुर सामंती हिंदी बेल्ट तक में हाल ही में नाकाम हो चुका है! नतीजतन घबराई बीजेपी किसानों की क़र्ज़ माफ़ी की ओर आस लगा रही है।
क़र्ज़माफ़ी
कांग्रेस की नई चुनी गई राज्य सरकारों ने पहले एलान में ही किसानों की क़र्ज़ माफ़ी करके बीजेपी को वैसे ही बैकफ़ुट पर ठेल दिया है।
इसीलिए जैसे ही नई-नवेली कांग्रेसी सरकारों ने किसानों की क़र्ज़ माफ़ी का एलान किया, उसके अगले ही दिन अहमदाबाद और गुवाहाटी में बीजेपी प्रवक्ता किसानों के लिये क़र्ज़माफ़ी का एलान करने के लिए प्रेस के सामने मोर्चे पर थे। गुजरात के ऊर्जा मंत्री सौरभ पटेल ने एलान किया कि जिन 6.22 लाख किसानों के बिजली कनेक्शन भुगतान न हो पाने से काटे जा चुके हैं, उनका बिल सरकार ने माफ़ कर दिया है और सिर्फ पाँच सौ रुपये देकर वे दुबारा कनेक्शन जुड़वा लें।
गुवाहाटी में काबीना मंत्री परिमल सुक्लबैद्य ने 18 दिसंबर को कहा, 'कल शाम कैबिनेट की बैठक में आठ लाख किसानों का अधिकतम 25000 रुपये तक कुल ऋण का एक चौथाई सरकार ने माफ़ कर दिया है।'
उसी दिन राँची में मुख्यमंत्री रघुबर दास ने एलान किया, '22.76 लाख छोटे और सीमान्त किसानों को एक एकड़ पर पाँच हज़ार रुपये की दर से अधिकतम 25,000 रुपये का अनुदान राज्य सरकार देगी!'
स्वामीनाथन रिपोर्ट
देश भर में लगभग सभी किसान संगठन और उनके आंदोलन स्वामीनाथन रिपोर्ट को झंडे पर आगे लगाते हैं। नवंबर 2004 में बनी स्वामीनाथन कमेटी ने अक्तूबर 2006 में अपनी रिपोर्ट दी। कमेटी ने अच्छी क्वालिटी का बीज कम दामों पर मुहैया कराने और फ़सल की लागत पर पचास फ़ीसद मुनाफ़ा किसान को देने की सिफ़ारिश की थी।
बीजेपी समेत हर दल के घोषणापत्र में स्वामीनाथन रिपोर्ट का ज़िक्र है, पर किसी ने इसे लागू नहीं किया। किसान क्रेडिट कार्ड भी इसी कमेटी की सिफ़ारिश पर आया। किसानों को चार प्रतिशत ब्याज पर क़र्ज और तुरंत क़र्ज़ की अदायगी पर रोक का सुझाव भी इसी रिपोर्ट का था।
बीते वर्षों में देश भर में किसानों के आंदोलन इसी की रोशनी में हुए। तात्कालिक सवालों पर मंदसौर आदि में किसानों ने आंदोलन के दौरान सीने पर गोली खाई और नासिक- मुंबई पैदल मार्च, सीकर आंदोलन और दिल्ली में भी डेरा डाला!
देश के पहले किसान प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की स्मृति में किसान दिवस पर ट्वीट करने वाले राजनीतिक संप्रभुओं ने पिछले महीने दिल्ली आए किसानों की माँग पर संसद का विशेष सत्र बुलाकर स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू करने का कोई कार्यक्रम अभी तो नहीं बनाया, पर देर सबेर यह करना ही होगा!
पैंसठ फ़ीसदी आबादी को देहाती महासागर में रोकने-पालने वाले समाज की अनवरत अनदेखी करने वाले नेतृत्व का ट्विटर पर किसान दिवस का हैशटैग चलाना हमारे समय का सबसे फूहड़ विद्रूप है।
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