loader

सिद्धू ने आख़िर पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा क्यों दिया?

पंजाब कांग्रेस का सिरफुटौव्वल और अंतरकलह मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बदलने से भी ख़त्म नहीं हो रहा है।

नवजोत सिंह सिद्धू की माँग पर अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाया गया और चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाए जाने पर सिद्धू बहुत ही खुश नज़र आ रहे थे, उसी सिद्धू ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया।  

चरणजीत सिंह चन्नी की सरकार की एक मंत्री ने तो शपथ ग्रहण के दो दिन बाद ही पद से इस्तीफ़ा दे दिया।

सवाल उठता है कि आखिर सिद्धू की नाराज़गी की वजह अब क्या है? उन्हें अब क्या चाहिए? वे किस बात पर राज़ी होंगे और सरकार व पार्टी को ठीक से चलने देंगे?

पर्यवेक्षकों का कहना है कि चन्नी के मुख्यमंत्री चुने जाने के बाद से ही सिद्धू नाराज़ चल रहे हैं। 

शुरू से ही नाराज़

चन्नी सरकार के मंत्रियों के शपथ ग्रहण के कुछ घंटे पहले ही छह विधायकों ने बग़ावत कर दी। उन्होंने सिद्धू को चिट्ठी लिख कर राणा गुरजीत सिंह को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं करने की माँग कर दी।

गुरजीत सिंह पर बालू खनन घोटाले में शामिल होने का आरोप लगा था और उन्हें 2018 में पद से हटा दिया गया था। 

समझा जाता है कि सिद्धू खुद नहीं चाहते थे कि गुरजीत सिंह को मंत्री बनाया जाए और चिट्ठी उनकी शह पर लिखी गई थी। लेकिन आला कमान ने गुरजीत सिंह को मंत्रिमंडल में शामिल किया। यह सिद्धू को नागवार गुजरा।

ताज़ा ख़बरें

इसके बाद केंद्रीय नेतृत्व ने पंजाब कांग्रेस के कार्यकारी प्रमुख और सिद्धू के नज़दीक समझे जाने वाले कुलजीत सिंह नागरा को पद से हटा दिया।

इन दोनों बातों से संकेत गया कि सिद्धू के कहे मुताबिक ही सबकुछ नहीं होगा। 

इतना ही नहीं, नवजोत सिंह सिद्धू के प्रखर आलोचक डॉक्टर राजकुमार वर्क को सरकार में शामिल किया गया, वे वाल्मीकि समुदाय से हैं।

यह भी सिद्धू को बुरा लगा। 

navjot singh sidhu quits as punjab congress chief - Satya Hindi
राहुल गांधी के साथ मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी

विभागों का बँटवारा

मंत्रिमंडल के विभागों के बंटवारे को लेकर भी सिद्धू की नहीं चली। 

सिद्धू नहीं चाहते थे कि उप मुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा को गृह मंत्रालय मिले, उनका विचार था कि यह विभाग मुख्यमंत्री के पास ही रहे।

पहले रंधावा को मुख्यमंत्री बनाने की बात चली थी, उनके समर्थकों ने मिठाई तक बांट दी थी। पर सिद्धू ने यह कह कर विरोध किया कि किसी जाट को मुख्यमंत्री बनाया जाना है तो सिर्फ उन्हें बनाया जाए। खैर, रंधावा के बदले दलित नेता चन्नी को मौका दिया गया। 

एडवोकेट जनरल

पंजाब सरकार ने ए. पी. एस. देओल को एडवोकेट जनरल बनाया। इस पर सरकार की आलोचना हुई क्योंकि देओल उस डीजीपी सुमेध सिंह सैनी के वकील हैं, जिनके पद पर रहते हुए गुरु ग्रंथ साहिब के साथ बदसलूकी की गई थी और इसके खिलाफ़ हुए प्रदर्शन पर गोलियाँ चलाई गई थीं। 

सिद्धू के समर्थक देओल को एडवोकेट जनरल बनाए जाने से नाराज़ इसलिए थे कि इससे उनका यह स्टैंड कमज़ोर होता कि बहबल कलां में हुई गोलीबारी के दोषियों को सज़ा दी जानी चाहिए।

डीजीपी

सिद्धू की नाराज़गी इससे भी बढ़ गई थी कि आला अफ़सरों की नियुक्ति उनकी मर्जी से नहीं हुई थी। सिद्धू के सलाहकार मुहम्मद मुस्तफ़ा अपने चहेते एस.चट्टोपाध्याय को पुलिस महानिदेशक बनाना चाहते थे। पर चन्नी ने अपनी पसंद से आई. एस. सहोटा को पुलिस प्रमुख बनाया। 

चन्नी से नाराज़गी

यह किसी से नहीं छिपा है कि सिद्धू मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। जिस तरह पहले कहा गया कि अगला चुनाव सिद्धू की अगुआई में लड़ा जाएगा, उससे मुख्यमंत्री को लेकर ग़लत संकेत गया। यह समझा जाने लगा कि चन्नी तो सिर्फ कामचलाऊ मुख्यमंत्री हैं और थोड़े समय के लिए बनाए गए हैं ताकि वे सिद्धू के लिए कुर्सी खाली कर सकें।

लेकिन चन्नी दलित नेता हैं, उन्हें एक बार मुख्यमंत्री बना कर हटाना मुश्किल होगा। प्रदेश कांग्रेस को यह कहना पड़ा कि अगला चुनाव सिद्धू और चन्नी दोनों की अगुआई में लड़ा जाएगा।

क्रिकेटर से राजनेता बने सिद्धू की समझ में आ गया कि चन्नी कोई नाइट वॉचमैन नहीं हैं, यानी अगले मुख्यमंत्री के लिए जगह भरने के लिए नहीं मुख्यमंत्री बनाए गए हैं।

इससे बिफरे सिद्धू ने एक बार फिर दबाव की राजनीति शुरू की और इस्तीफ़े का गुगली फेंक दिया। सिद्धू का इस्तीफ़ा अब तक स्वीकार नहीं किया गया है। देखना होगा, आगे क्या होता है। 

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

पंजाब से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें