बाल विवाह संशोधन कानून पर बहस में सभी राजनीतिक दलों की महिला सांसदों को शामिल किए जाने की मांग जोर पकड़ गई है। सरकार संसद के शीतकालीन अधिवेशन में इस बिल में संशोधन कर लड़कियों की शादी की उम्र 18 से 21 किए जाने का प्रस्ताव पेश किए गया था। लेकिन सरकार ने फिर इस संशोधन विधेयक को संसदीय समिति के पास भेज दिया था।
तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की सांसद सुष्मिता देव सांसद की उस स्थायी समिति की एकमात्र महिला सदस्य हैं, जहां इस विधेयक पर विचार होना है। उन्होंने आज शिक्षा, महिला, बच्चों, युवकों और खेल की स्थायी समिति के अध्यक्ष को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि इस समिति के सामने सभी दलों की महिला सांसदों को बातचीत के बुलाया जाए। उन्होंने इस स्थायी समिति के अध्यक्ष को सलाह दी है कि वो नियम 84 (3) का इस्तेमाल करके सभी महिला सांसदों को समिति के सामने बुला सकते हैं।
इसी तरह का पत्र शिवसेना की राज्यसभा सदस्य प्रियंका चतुर्वेदी ने भी राज्यसभा के चेयरमैन को लिखा है।
राज्यसभा की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक वरिष्ठ बीजेपी नेता विनय सहस्रबुद्धे के नेतृत्व वाली संसदीय स्थायी समिति की सदस्यों की सूची के 31 सदस्यों में टीएमसी सांसद सुष्मिता देव एकमात्र महिला हैं।
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हालांकि, उन्होंने कहा- अध्यक्ष के पास पैनल के सामने बुलाने का अधिकार है। इसलिए व्यापक चर्चा के लिए वो अन्य महिला सांसदों को बुला सकते हैं।
संसद में महिला केंद्रित मुद्दों को उठाने वाली एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने भी इसी तरह की भावनाओं को व्यक्त करते हुए कहा कि पैनल में अधिक महिला सांसद होनी चाहिए जो महिलाओं से संबंधित मुद्दों पर विचार-विमर्श करें।शिवसेना की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने भी यही बात कही कि इस तरह के पैनल में ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को शामिल किया जाए। तभी सही बात सामने आ सकेगी। प्रियंका ने भी राज्यसभा के चेयरमैन वेंकैयानायडू को पत्र लिखकर यह मांग उठाई है।
विभिन्न विभागों से संबंधित स्थायी समितियां स्थायी होती हैं, जबकि विभिन्न मंत्रालयों के विधेयकों और संबंधित विषयों से निपटने के लिए समय-समय पर संयुक्त और चयन समितियों का गठन किया जाता है। इन पैनलों का गठन लोकसभा और राज्यसभा दोनों द्वारा किया जाता है। शिक्षा, महिला, बच्चे, युवा और खेल संबंधी संसदीय स्थायी समिति राज्यसभा की समिति है। पार्टियां सदन में अपनी ताकत के आधार पर सदस्यों को नामित करती हैं। प्रस्तावित कानून देश के सभी समुदायों पर लागू होगा और एक बार लागू होने के बाद मौजूदा विवाह और व्यक्तिगत कानूनों का स्थान लेगा। जून 2020 में मंत्रालय द्वारा गठित जया जेटली समिति की सिफारिशों पर केंद्र द्वारा महिलाओं के लिए शादी की कानूनी उम्र बढ़ाई जा रही है। विधेयक की शुरुआत में कुछ सदस्यों ने विरोध किया, जिन्होंने तर्क दिया कि इस कदम ने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन में कई व्यक्तिगत कानूनों का उल्लंघन किया और मांग की कि इसे अधिक जांच के लिए एक संसदीय पैनल के पास भेजा जाए।
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