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मुस्लिमों पर चुप्पी...तो ये है केजरीवाल स्कूल ऑफ पॉलिटिक्स

देश में अभी राजनीति का जो दौर चल रहा है, उसमें केजरीवाल की राजनीति को समझना जरूरी है। गुरुवार को पहली बार आम आदमी पार्टी की ओर से यह शब्द भी सामने आया केजरीवाल स्कूल ऑफ पॉलिटिक्स...यह महज शब्द नहीं है। जरूर इसके पीछे कोई चिन्तन होगा। आप प्रवक्ता राघव चड्ढा के मुंह से निकले इस शब्द को जहांगीरपुरी पर चल रही राजनीति से क्यों न जोड़कर देखा जाए।...  

आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविन्द केजरीवाल इतने बड़े नेता हो गए हैं कि छह दिन गुजरने के बाद उन्हें जहांगीरपुरी याद नहीं आया। हालांकि अब तो सुप्रीम कोर्ट ने वहां बुलडोजर भी काफी दिनों के लिए रोक दिए हैं, लेकिन केजरीवाल अभी भी चुप हैं। लेकिन वो चुप नहीं हैं। वो बेंगलुरु में रोड शो करते दिख रही हैं।

जहांगीरपुरी में 16 अप्रैल को जब साम्प्रदायिक हिंसा हो रही थी तो वो केजरीवाल सुंदर कांड देख रहे थे। सुंदर कांड लाइव था, जिसे उन्होंने संबोधित भी किया था। जब सुंदर कांड के कार्यक्रम से बाहर निकले तो उन्हें जहांगीरपुरी की खबर मिली और धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत केजरीवाल ने फौरन एक विवादास्पद ट्वीट कर दिया। उस ट्वीट के बाद केजरीवाल खामोश हैं। बुधवार को जहांगीरपुरी में बुलडोजर पहुंचे लेकिन केजरीवाल चुप रहे। सीपीएम की नेता वृंदा करात, एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल भी मौके पर हो आया लेकिन अगर नहीं पहुंचे तो वो केजरीवाल हैं और उनकी पार्टी के नेता हैं। 

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केजरीवाल की पार्टी के नेता राघव चड्ढा और आतिशी दाएं-बाएं से बयान देकर जहांगीरपुरी कांड में बीजेपी की भूमिका की निन्दा कर रहे हैं लेकिन ये भी बता रहे हैं कि जहांगीरपुरी में रहने वाले अधिकांश लोग बांग्लादेशी और रोहिंग्या है। बीजेपी भी तो इसी बात को कह रही है। 

मीडिया मार्केट में गुरुवार को एक शब्द आया है - केजरीवाल स्कूल ऑफ पॉलिटिक्स। यह शब्द आम आदमी पार्टी प्रमुख केजरीवाल के पारिवारिक सदस्य राघव चड्ढा ने दिया है। अब धीरे-धीरे समझ में आ रहा है कि केजरीवाल स्कूल ऑफ पॉलिटिक्स क्या है? केजरीवाल की आलोचना करने वाले नेताओं के घर पंजाब पुलिस भेजो और जहांगीरपुरी जैसे संवेदनशील मुद्दों पर चुप रहो। अगर बोलो तो बीजेपी की साम्प्रदायिक लाइन का समर्थन करो। 

केजरीवाल वो शख्स हैं, जो दिल्ली में गरीब लोगों की सेवा का दम भरते हुए सत्ता में आये थे। इसी नारे पर उन्होंने हाल ही में पंजाब में सत्ता हासिल की। बीजेपी जब बुलडोजर राजनीति को तमाम राज्यों में मुस्लिमों को टारगेट करने के लिए इस्तेमाल कर रही है तो खुद को गरीबों की पार्टी बताने वाली पार्टी का मुखिया चुप है।

असदुद्दीन ओवैसी ने दो दिन पहले जहांगीरपुरी मुद्दे पर बोलते हुए केजरीवाल को 'बुजदिल' तक कहा था। बुजदिल बहुत नेगेटिव शब्द है। केजरीवाल की पार्टी ओवैसी पर पलटवार नहीं कर सकी। ओवैसी जहांगीरपुरी जा पहुंचे। एमसीडी चुनाव जब होंगे तब आम आदमी पार्टी को इसकी आंच महसूस होगी।    

जहांगीरपुरी में जब 16 अप्रैल को शोभायात्रा निकलने के दौरान हिंसा की शुरुआत हुई तो उसी दिन रात को केजरीवाल का पहला ट्वीट था - दिल्ली के जहांगीर पुरी में शोभायात्रा में पथराव की घटना बेहद निंदनीय है। जो भी दोषी हों उन पर सख़्त कार्रवाई होनी चाहिए। सभी लोगों से अपील- एक दूसरे का हाथ पकड़कर शांति बनाए रखें।

बीजेपी ने जहांगीरपुरी के मुसलमानों को बांग्लादेशी बताते हुए आरोप लगाया था कि इन लोगों ने शोभायात्रा पर पथराव किया। 16 अप्रैल रात पौने नौ बजे किए गए केजरीवाल के ट्वीट से पता चलता है कि इस शख्स ने बीजेपी के इस बयान की पुष्टि कर दी कि पथराव मुसलमानों ने किया और केजरीवाल ने उसकी निन्दा की। केजरीवाल ने कथित पत्थरबाजों को दोषी करार देते हुए, उन पर सख्त कार्रवाई की मांग भी कर दी। दिल्ली पुलिस ने जैसी भी सख्त कार्रवाई की, उस पर आरोप लगा कि वो समुदाय विशेष के लोगों को ही टारगेट कर रही है। इसके बाद दिल्ली पुलिस ने जिन आरोपियों पर एनएसए लगाया वो सभी एक ही समुदाय के हैं।

आप विधायक आतिशी सिंह उर्फ आतिशी मलेरना को केजरीवाल ने जहांगीरपुरी के मोर्चे पर तैनात कर रखा है। आतिशी जहांगीरपुरी जाने की बजाय ट्वीट के जरिए पार्टी को डिफेंड कर रही हैं। उनका सारा समय यह बताने में बीत रहा है कि बीजेपी ने देशभर में बांग्लादेशियों और रोहिंग्या लोगों को दंगे कराने के लिए बसाया है। यानी पश्चिम बंगाल के जो मुसलमान बंगाली भाषा बोलते हैं, वे अपनी रोटी-रोजी के लिए देश के तमाम हिस्सों में रहते हैं, वे सब बांग्लादेशी हैं। बीजेपी यही मानती है। आम आदमी पार्टी उसकी पुष्टि करती नजर आती है।  इससे पहले उन्होंने जहांगीरपुरी मामले के आरोपी अंसार को बीजेपी वाला बताने में पूरी मेहनत की। उसके फोटो जुटाए और ट्वीट किए। आतिशी ने बतौर मंत्री बेहतर काम किया है और उनकी छवि भी बतौर नेता ठीकठाक रही है। लेकिन जहांगीरपुरी मुद्दे पर आप के साथ-साथ उनकी छवि को भी नुकसान पहुंचा है। 

आप को इस सवाल का जवाब देना ही होगा कि वो बीजेपी की बुलडोजर राजनीति के खिलाफ है या नहीं। उसे एक पक्ष के साथ तो खड़ा ही होना पड़ेगा। कम से कम 2024 के आम चुनाव तक बीजेपी किसी न किसी रूप में बुलडोजर पॉलिटिक्स को जिन्दा रखेगी। बीजेपी की चुनावी सफलता के शॉर्टकट फॉर्म्युले का विरोध न करने वालों और केजरीवाल जैसे तटस्थ रहने वालों का इतिहास लिखा जा रहा है।   

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क्या अब आप तटस्थ रह पाएगी?

दिल्ली में मुसलमान आम आदमी पार्टी के मूल मतदाता हैं। हर आठवां मतदाता दिल्ली में मुसलमान है। करीब 12 फीसदी मुस्लिम मतदाता दिल्ली में हैं। करीब आठ सीटें ऐसी हैं, जिनमें 60 फीसदी तक मुस्लिम मतदाता हैं। अगर आम आदमी पार्टी उनके मुद्दों पर कार्रवाई का खुलकर समर्थन नहीं करती और विरोध करती है तो इसका असर कहीं जरूर दिखेगा। अगर केजरीवाल यह सोच रहे हैं कि 2020 के विधानसभा चुनाव की तरह मुसलमानों के सामने आप को वोट देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है तो उसकी यह गलतफहमी एमसीडी के ही चुनाव में भी दूर हो सकती है, जहां के लिए आप बड़े मंसूबे बना रही है।2020 के उत्तर पूर्वी दंगों को कौन भूल सकता है। दंगे से प्रभावित लोगों के साथ केजरीवाल कभी खड़े नहीं हुए। आज भी उन लोगों का पुनर्वास ठीक से नहीं हो सका। उस समय भी केजरीवाल चुप रहे थे। देश में तमाम स्थानों पर हाल ही में हुई साम्प्रदायिक घटनाओं पर भी केजरीवाल चुप रहे। 
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यूसुफ किरमानी
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