किसान आंदोलन के नायक बनकर उभरे किसान नेता राकेश टिकैत इन दिनों मीडिया में छाए हुए हैं। वह बीजेपी और मोदी सरकार को चेताते हैं कि वह किसानों के आत्मसम्मान से न खेले और कृषि क़ानूनों के रद्द न होने तक आंदोलन जारी रखेंगे। लेकिन उनके बारे में यह जानकर आपको हैरानी होगी कि आज बीजेपी का विरोध कर रहे टिकैत कभी उसकी मदद कर चुके हैं। कहा जाता है कि टिकैत 2014 के लोकसभा चुनाव में और उसके बाद भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट वोट दिलाने में बीजेपी की मदद करते रहे हैं।
दिल्ली के बॉर्डर्स पर चल रहे आंदोलन को पहले पंजाब और हरियाणा का ही माना जा रहा था। ऐसा होना स्वाभाविक भी था क्योंकि सिंघु और टिकरी बॉर्डर पर इन दोनों राज्यों के लोगों ने डेरा डाला था। लेकिन ग़ाज़ीपुर बॉर्डर को खाली कराने की योगी सरकार की कोशिश के बाद भावुक हुए राकेश टिकैत ने माहौल बदल दिया है।
टिकैत के पक्ष में उमड़ते लोग
ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर जो भीड़ उमड़ी है और इसके बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर राजस्थान, उत्तराखंड और हरियाणा के जींद में हुई महापंचायतों में राकेश टिकैत को जिस तरह का समर्थन मिला है, उससे टिकैत का क़द पंजाब के उन नेताओं के सामने बढ़ा है, जो अब तक इस आंदोलन के सिरमौर बने हुए थे।
अपने पिता महेंद्र सिंह टिकैत से विरासत में मिली किसानों की राजनीति को आगे बढ़ा रहे राकेश टिकैत ख़ुद चुनाव लड़कर बुरी तरह हार चुके हैं। लेकिन इस आंदोलन से वह एक मजबूत किसान नेता के रूप में उभरे हैं, जबकि अब तक वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक ही सीमित थे।
‘बीजेपी को दिया था वोट’
जिस दिन टिकैत भावुक हुए थे, उन्होंने कहा था कि उनकी पत्नी ने किसी और को वोट दिया था लेकिन उन्होंने बीजेपी को वोट दिया था। टिकैत ने कहा था कि बीजेपी अपने लोगों को लाकर उनके साथ आए किसानों को पिटवाना चाहती है जबकि वह गिरफ़्तारी देने तक के लिए तैयार थे। उन्होंने कहा था कि उन्हें योगी सरकार से ऐसी उम्मीद नहीं थी कि वह किसानों के लिए टॉयलेट, पानी और बिजली जैसी ज़रूरी सुविधाओं को ख़त्म कर देगी।
लेकिन अब यही टिकैत बीजेपी को चेता रहे हैं कि अभी तो क़ानून वापसी की बात हो रही है, अगर सरकार नहीं मानी तो फिर गद्दी वापसी की बात होगी। टिकैत के समर्थन में जिस तरह किसान और जाट बिरादरी के लोग उमड़े हैं, उसने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी के जाट नेताओं- संजीव बालियान, सत्यपाल सिंह के क़द को बौना कर दिया है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में टिकैत के समर्थन में उमड़ रहे लोग बीजेपी और मोदी सरकार के ख़िलाफ़ नाराज़गी जता रहे हैं और कई जगहों पर उनके बहिष्कार का भी एलान किया जा रहा है।
राष्ट्रीय लोकदल की हार
कहा जाता है कि 2019 में टिकैत ने संजीव बालियान को मुज़फ़्फरनगर से जीत दिलाने में मदद की थी। इस इलाक़े में हुए सांप्रदायिक दंगों और टिकैत के बीजेपी के साथ खड़े होने की वजह से चौधरी अजित सिंह और जयंत चौधरी को हार का मुंह देखना पड़ा था। जाट-मुसलिम का समीकरण टूटने की वजह से बीजेपी को इस इलाक़े में जबरदस्त सफलता मिलती रही जबकि राष्ट्रीय लोकदल को हार।
बीजेपी को समर्थन देने के अलावा टिकैत ने राष्ट्रीय लोकदल के टिकट पर चुनाव भी लड़ा जबकि महेंद्र सिंह टिकैत ख़ुद को राजनीति से दूर रखते थे और वह सिर्फ़ किसानों की राजनीति करते थे। इसी वजह से उनका पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बाहर भी बहुत मान-सम्मान था।
पंजाब में बीजेपी का कभी भी मजबूत आधार नहीं रहा है। वहां के किसान नेताओं का बीजेपी से जुड़ाव भी नहीं है लेकिन किसान नेता चाहते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश से भी उनके आंदोलन को समर्थन मिले, इसलिए राकेश टिकैत का भी साथ उन्हें चाहिए।
टिकैत भी इस बात को जानते हैं कि राजनीति के मैदान में वे अब तक फ़ेल रहे हैं लेकिन किसान आंदोलन एक बेहतर मौक़ा है, जब वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश से बाहर भी ख़ुद को बड़े किसान नेता के रूप में स्थापित कर सकते हैं।
बीजेपी से नज़दीकी को लेकर ही टिकैत पर आरोप लगता है कि वह किसान आंदोलन में भी सरकार के प्रति नरम हैं। लेकिन अब जब किसान आंदोलन बहुत बड़ा हो चुका है और उनके समर्थन में लोग उमड़ रहे हैं, उसके बाद देखना होगा कि टिकैत की आंदोलन में आगे क्या भूमिका रहती है।
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