जुलाई में होने जा रहे राष्ट्रपति के चुनाव के लिए एनडीए के साथ ही विपक्ष भी तैयारियों में जुट रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को जिम्मेदारी दी है कि वह विपक्षी दलों के नेताओं के साथ इस संबंध में बातचीत करें। खड़गे से कहा गया है कि सभी विपक्षी दलों के बीच आम सहमति बनाई जाए जिससे संयुक्त उम्मीदवार उतारा जा सके।
सोनिया गांधी ने इस संबंध में डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन, एनसीपी के मुखिया शरद पवार, सीपीएम के नेता सीताराम येचुरी से भी बातचीत की है।
बता दें कि राष्ट्रपति के चुनाव के लिए 18 जुलाई को मतदान होगा जबकि 21 जुलाई को नतीजे आएंगे। नामांकन की अंतिम तारीख 29 जून है और इस लिहाज से कुछ ही दिन का वक्त उम्मीदवार के चयन के लिए बचा है। कांग्रेस कार्य समिति के एक सदस्य ने इंडिया टुडे को बताया कि मल्लिकार्जुन खड़गे को जिम्मेदारी दी गई है कि वह गैर एनडीए और गैर यूपीए दलों का इस मुद्दे पर मन टटोलें।
गहलोत, खान के नाम की चर्चा
देखना होगा कि एनडीए किसे इस चुनाव में उम्मीदवार बनाता है। इसे लेकर कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत से लेकर केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के नाम की चर्चा है। या फिर एनडीए फिर से रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति के पद के लिए उम्मीदवार बनाएगा, इसका पता कुछ ही दिन बाद चल जाएगा।
बीजेपी एनडीए के उम्मीदवार को लेकर अपने सहयोगी दलों के साथ भी विचार-विमर्श कर आम सहमति बनाने के काम में जुटी है।
इसके अलावा वह विपक्षी दलों जैसे जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस और नवीन पटनायक की बीजेडी के साथ भी बातचीत कर रही है। इसके लिए पार्टी ने अपने वरिष्ठ नेताओं को मोर्चे पर लगाया है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव नवीन पटनायक जबकि पार्टी के प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव जगन मोहन रेड्डी के साथ बातचीत कर रहे हैं।
क्या करेगा विपक्ष?
क्या विपक्ष एकजुट होकर उम्मीदवार उतारेगा या वह बिखरा हुआ नजर आएगा। यदि विपक्ष एकजुट नहीं हुआ तो एनडीए के उम्मीदवार की जीत आसान हो जाएगी। दूसरी ओर तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव यानी केसीआर भी एक बार फिर सक्रिय हुए हैं। केसीआर ने बीते दिनों कई विपक्षी नेताओं से मुलाकात की और इस दौरान 2024 के चुनाव के साथ ही राष्ट्रपति के चुनाव को लेकर भी चर्चा होने की बात सामने आई थी।
विपक्षी उम्मीदवार के चयन में टीएमसी, डीएमके, शिवसेना, टीआरएस, आम आदमी पार्टी, वाम दलों का अहम रोल रहेगा। जबकि पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस की हालत बेहद पतली रही है इसलिए राष्ट्रपति के चुनाव में वह यूपीए के किसी उम्मीदवार को मजबूती से खड़ा नहीं कर पाएगी।
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