चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की मंगलवार को कांग्रेस नेताओं सोनिया, राहुल और प्रियंका से हुई मुलाक़ात के बाद राजनीतिक गलियारों में एक सवाल तेज़ी से घूम रहा है। सवाल यह है कि क्या प्रशांत किशोर कांग्रेस में शामिल होंगे। 2024 के आम चुनाव को देखते हुए प्रशांत किशोर को बतौर रणनीतिकार के रूप में कांग्रेस में शामिल किया जा सकता है।
लगातार दो लोकसभा चुनाव और कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में शिकस्त खा चुकी कांग्रेस के लिए अब और मौक़े नहीं बचे हैं। उसे 2022 में सात राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में दम-ख़म भी लगाना होगा और जीत भी हासिल करनी होगी, जिससे वह 2024 में ख़ुद को मजबूत विपक्षी दल के रूप में पेश कर सके।
बताया जा रहा है कि सोनिया, राहुल और प्रियंका के साथ पहले भी प्रशांत किशोर की मुलाक़ात हो चुकी है। एनडीटीवी के मुताबिक़, यह मुलाक़ात सिर्फ़ पंजाब और उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र नहीं हुई बल्कि 2024 के आम चुनाव के मद्देनज़र हुई है।
क्यों अहम हैं प्रशांत किशोर?
प्रशांत किशोर की कंपनी का नाम इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (आई-पैक) है और यह कई राज्यों में अलग-अलग राजनीतिक दलों के लिए चुनावी रणनीति बना चुकी है। प्रशांत किशोर ने हाल ही में पश्चिम बंगाल के अलावा तमिलनाडु के विधानसभा चुनाव में भी रणनीति बनाने का काम किया और बंगाल में ममता के अलावा वहां डीएमके प्रमुख स्टालिन को जीत मिली।
किशोर 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिए ‘चाय पर चर्चा’ कार्यक्रम सहित 2015 में एनडीए महागठबंधन, 2020 में आम आदमी पार्टी सहित कई दलों के लिए काम कर चुके हैं। उनका ट्रैक रिकॉर्ड शानदार रहा है।
प्रशांत किशोर पहले भी कांग्रेस के लिए काम कर चुके हैं। 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस-समाजवादी पार्टी के गठबंधन के लिए चुनावी रणनीति बनाने का काम किया था हालांकि तब इस गठबंधन को अच्छी सफलता नहीं मिली थी। लेकिन पंजाब में भी प्रशांत किशोर ही रणनीतिकार थे और वहां उन्होंने पार्टी को जीत दिलाई थी।
कांग्रेस के सामने मुश्किल वक़्त
प्रशांत किशोर कुछ वक़्त पहले कांग्रेस को आत्ममंथन करने की सलाह भी दे चुके हैं। लेकिन अगर, उन्हें कांग्रेस में कोई बड़ी जिम्मेदारी मिलती है तो यह निश्चित रूप से पार्टी के लिए संजीवनी की तरह होगा क्योंकि पार्टी को 2022 में कई चुनावी राज्यों में उतरना है और इस बात को साबित करना है कि वह राज्यों में अभी जिंदा है, वरना ख़राब प्रदर्शन की सूरत में थर्ड फ्रंट या एंटी बीजेपी फ्रंट में उसकी सियासी हैसियत बहुत कम हो जाएगी।
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