चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल होने की अटकलें फिलहाल अब खत्म हो गई हैं। क्योंकि कांग्रेस ने न इसकी पुष्टि की और न खंडन किया। लेकिन प्रशांत किशोर उर्फ पीके ने इन सारी अटकलों को खारिज करते हुए साफ किया है कि अभी वह किसी भी तरह की राजनीतिक गतिविधि में शामिल नहीं हैं और न ही 2022 के प्रारंभ में होने वाले पांच राज्यों के चुनावों में उनकी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई भूमिका होगी।
साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि चाहे पंजाब का मामला हो या कोई और मसला, कांग्रेस के किसी भी फैसले में उनकी कोई भूमिका न पर्दे के पीछे है और न ही पर्दे के बाहर।
पश्चिम बंगाल के चुनाव नतीजों के बाद दो मई को उन्होंने जो घोषणा की थी वह उस पर पूरी तरह कायम हैं और अब जब भी कोई फैसला लेंगे तो उसकी सार्वजनिक घोषणा करेंगे। पीके ने कहा कि वह आगे राजनीति में सक्रिय होंगे या नहीं होंगे, इस बारे में अभी तक उन्होंने कोई फैसला नहीं किया है।
राय-मशविरा कर रहा हाईकमान
उधर, कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि पीके पार्टी में शामिल होंगे या नहीं, ये उन्हें और कांग्रेस नेतृत्व को तय करना है, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने अनौपचारिक तौर पर पीके से राय-मशविरा करना शुरू कर दिया है। जिसकी झलक पार्टी संगठन में होने वाले बदलाव के फैसलों में देखी जा सकती है।
पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के बीच के विवाद का फिलहाल पटाक्षेप हो गया है और उत्तराखंड में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को अगले चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने के साथ ही उनके हिसाब से संगठन की पूरी टीम बना दी गई है।
उत्तर प्रदेश पर होगा फैसला
इसके फौरन बाद उत्तर प्रदेश को लेकर भी कोई बड़ा फैसला हो सकता है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि यहां या तो प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू को बदला जाएगा या फिर उनके समानांतर किसी बड़े चेहरे को उत्तराखंड की तर्ज पर चुनाव प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष बनाकर मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया जा सकता है और साथ ही कुछ कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाए जा सकते हैं।
राज्यसभा जाएंगे पीके!
10, जनपथ के एक बेहद भरोसेमंद सूत्र के मुताबिक़ अगर पीके कभी भी विधिवत रूप से पार्टी में शामिल हुए तो वह कांग्रेस अध्यक्ष के राजनीतिक सलाहकार की भूमिका में होंगे और आगे उन्हें राज्यसभा में भी भेजा जा सकता है। मुमकिन है कि पंजाब से उन्हें राज्यसभा में भेजा जाए या फिर तमिलनाडु से।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक़, राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के संगठन को गति देने के लिए कांग्रेस में कुछ कार्यकारी अध्यक्ष या उपाध्यक्ष बनाए जा सकते हैं। सूत्रों के मुताबिक़, इनकी संख्या कम से कम चार से पांच हो सकती है जिनमें एक ब्राह्मण, एक पिछड़ा, एक दलित, एक मुसलिम और एक महिला को शामिल किया जाएगा।
यह जानकारी देने वाले 10, जनपथ के बेहद करीबी कांग्रेसी सूत्र का कहना है कि राहुल गांधी चाहते हैं कि पीके विधिवत कांग्रेस में शामिल होकर पार्टी को मजबूत करने में उनकी मदद करें। राहुल को इस मुद्दे पर अपनी बहन और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी का समर्थन भी प्राप्त है।
लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का असमंजस है कि प्रशांत किशोर की कार्यशैली पार्टी के तमाम वरिष्ठ नेताओं को असहज कर सकती है। इसलिए सोनिया फिलहाल कांग्रेस को मजबूत करने के लिए पीके की भूमिका को धीरे-धीरे बढ़ाना चाहती हैं।
सोनिया का मानना है कि जब पीके के प्रयासों से कांग्रेस का ग्राफ बढ़ने लगे और राहुल गांधी की पार्टी और जनता पर पकड़ मजबूत होने लगे, उस समय उन्हें पार्टी में कोई बड़ी भूमिका देनी चाहिए।
उधर, कांग्रेस के साथ 2017 में जुड़े पीके इस बार हर कदम फूंक-फूंक कर रखना चाहते हैं। उन्होंने अभी अपनी आगे की भूमिका पर कोई भी फैसला नहीं लिया है। अगले साल मार्च में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में पीके किसी भी तरह की भूमिका नहीं निभाना चाहते हैं।
वैसे भी वह चुनावी रणनीतिकार का अपना व्यावसायिक काम पूरी तरह छोड़ चुके हैं और राजनीति में आने या न आने का अंतिम फैसला उन्होंने नहीं किया है।
सोनिया ने दिया था प्रस्ताव
10, जनपथ के करीबी सूत्रों का यह भी कहना है कि पीके के कांग्रेस में शामिल होने की चर्चाएं भले ही अब चल रही हों लेकिन प्रशांत किशोर को 2017 में खुद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी में शामिल होकर राहुल गांधी को मजबूत करने के लिए बड़ी जिम्मेदारी निभाने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन प्रशांत किशोर ने बेहद विनम्रता से कहा था कि अभी उनका राजनीति में सीधे आने का काई इरादा नहीं है और समय आने पर वह इस पर जरूर विचार करेंगे।
यह उन दिनों की बात है जब पीके ने उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के चुनाव प्रचार अभियान और रणनीति बनाने का काम संभाला था। यह अलग बात है कि पीके जिस रणनीति के तहत कांग्रेस का चुनाव अभियान चलाना चाहते थे, कांग्रेस के नेता तंत्र ने उसे चलने नहीं दिया और फिर जो हुआ वह सबके सामने है।
उन दिनों पीके से एक मुलाकात में मैंने कहा था कि कांग्रेस के दिग्गज नेता ऐसा चक्रव्यूह रचेंगे कि उसमें अभिमन्यु की तरह फंसने का खतरा है। तब प्रशांत किशोर ने कहा था कि उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, उपाध्यक्ष राहुल गांधी और प्रियंका गांधी तीनों का भरोसा और विश्वास हासिल है, इसलिए उनके साथ ऐसा नहीं होगा। लेकिन आखिर में वही हुआ और उस झटके से बाहर निकलने में पीके को करीब तीन साल लगे।
चुनावी रणनीतिकार के रूप में पीके अपने को कई बार साबित कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश के एक अपवाद को छोड़कर उन्होंने हर राज्य में जहां भी काम संभाला अपनी कामयाबी के झंडे गाड़े।
उनके आलोचक कहते हैं कि पीके हमेशा जीतने वाले का ही हाथ थामते हैं और सफल होते हैं, लेकिन ये अर्धसत्य है। पूर्ण सत्य ये है कि 2014 में अगर देश ने नरेंद्र मोदी को जीतता हुआ देखना शुरू किया तो उसके पीछे पीके की चुनाव प्रचार अभियान की रणनीति का भी योगदान था।
पीके की चुनावी रणनीति
2014 में नरेंद्र मोदी की तूफानी आंधी के मुकाबले बिहार में नीतीश लालू की जोड़ी की जीत पीके की प्रचार अभियान रणनीति का बड़ा योगदान था। इसी तरह अगर दूसरी बार दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और पश्चिम बंगाल में तीसरी बार ममता बनर्जी जैसे नेता अपनी सरकार के सत्ता विरोधी रुझान (एंटी इन्कम्बेंसी) को अपने पक्ष में बदल सके और नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में बीजेपी की आक्रामक चुनावी रणनीति के सामने टिके रहे तो उसमें भी प्रशांत किशोर के योगदान को कम करके नहीं आंका जा सकता।
पटेल की जगह मिलेगी?
सवाल है कि अगर पीके कांग्रेस में शामिल होते हैं और उन्हें अहमद पटेल या जितेंद्र प्रसाद जैसी भूमिका मिलती है तो क्या कांग्रेस के तमाम दिग्गज नेता जिन्हें G-23 भी कहा जाता है, और देश भर में फैले कांग्रेस संगठन के पदाधिकारी और कार्यकर्ता इसे सहजता से स्वीकार करेंगे। क्योंकि जब से ये खबरें मीडिया में आ रही हैं तमाम कांग्रेसियों में बेचैनी और उत्सुकता दोनों है।
जो मठाधीश हैं उन्हें डर है कि पार्टी के भीतर सत्ता के सूत्र उनके हाथ से खिसक जाएंगे। ऐसे ही एक मझोले कद के कांग्रेस नेता जो उत्तर प्रदेश से आते हैं लेकिन पार्टी से खासे लाभान्वित हो चुके हैं, की प्रतिक्रिया है कि अगर पीके को ही पार्टी चलानी है तो उन्हें फिर कांग्रेस अध्यक्ष ही क्यों नहीं बना दिया जाता।
इस नेता का कहना है कि जिस दिन पीके के कांग्रेस में शामिल होने और उन्हें अहमद पटेल की भूमिका देने का एलान होगा उस दिन वह यह बयान दे देंगे कि पीके को कांग्रेस अध्यक्ष ही बना दिया जाए।
लेकिन दूसरी तरफ जो कांग्रेसी किसी भी तरह पार्टी को मजबूत देखना चाहते हैं, उन्हें लगता है कि पार्टी में पिछले चालीस सालों से काबिज मौजूदा नेताओं की जमात थकी, छकी और चुकी हुई है। इसलिए जैसे भी हो चाहे पीके कुछ करिश्मा करें या कोई और कांग्रेस को मजबूत होना चाहिए और उसकी सत्ता वापसी होनी चाहिए।
इन जमीनी कार्यकर्ताओं को इससे कोई मतलब नहीं है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी या राहुल गांधी के सलाहकार अहमद पटेल की जगह पीके हो जाएं लेकिन कांग्रेस आगे बढ़नी चाहिए।
डॉक्टर की ज़रूरत
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत जिले से आने वाले एक जमीनी कांग्रेसी कार्यकर्ता का कहना है कि जब बीमारी ज्यादा बढ़ जाती है तो इलाज के लिए विदेशों से भी डॉक्टर और विशेषज्ञ बुलाए जाते हैं। इसलिए अगर कांग्रेस को स्वस्थ करने और सत्ता में लाने के लिए पार्टी नेतृत्व पीके जैसे सफल विशेषज्ञ को जिम्मेदारी देता है तो यह बहुत अच्छी बात होगी।
कुल मिलाकर प्रशांत किशोर कांग्रेस में शामिल भले ही न हुए हों लेकिन उनका असर कांग्रेस और कांग्रेसियों पर साफ दिखाई पड़ रहा है।
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