क्या कांग्रेस और प्रशांत किशोर के बीच वार्ता विफल होने की एक वजह राहुल गांधी की विदेश यात्रा भी है? यह सवाल इसलिए कि मीडिया में सूत्रों के हवाले से ख़बर आ रही है कि कांग्रेस में शामिल होने की पेशकश ठुकराने के पीछे एक वजह शायद यह भी था। तो क्या किसी नेता की विदेश यात्रा से किसी के उनकी पार्टी में शामिल होने या नहीं होने पर भी ऐसा असर पड़ सकता है?
दरअसल, यह मामला सिर्फ़ विदेश दौरे भर का नहीं है। यह सवाल है सुधारों के प्रति गंभीरता का और उस पूरी प्रक्रिया में विश्वास का। कहा जा रहा है कि जहाँ कांग्रेस जैसी पार्टी में आमूल-चूल बदलाव की बात चल रही हो, उस पर फ़ैसले लिए जाने वाले हों और उस बीच राहुल गांधी जैसा कद्दावर नेता विदेश चला जाए तो उसका क्या संदेश जाता है? क्या यह कि वह इस पूरी प्रक्रिया के प्रति गंभीर नहीं हैं?
यही संदर्भ प्रशांत किशोर के फ़ैसले को लेकर दिया जा रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार प्रशांत किशोर को इस पर गंभीर संशय था कि पार्टी को फिर से खड़ा करने में कांग्रेस नेतृत्व की कैसी रुचि है। एनडीटीवी ने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के क़रीबी सूत्रों के हवाले से लिखा है कि उन्हें नहीं लगता था कि कांग्रेस और उसके नेतृत्व ने उनके सुझावों में पर्याप्त दिलचस्पी ली थी, भले ही वे योजना का समर्थन करते दिखाई दिए।
रिपोर्ट के अनुसार प्रशांत किशोर ने इस तरह के सबसे बड़े कारणों में से एक राहुल गांधी की विदेश यात्रा का हवाला दिया था। राहुल की यह यात्रा ऐसे समय में हुई जब कांग्रेस एक महत्वपूर्ण सुधार पर निर्णय लेने की कगार पर थी। रिपोर्ट में पीके के क़रीबी सूत्रों के हवाले से लिखा गया है कि कांग्रेस के शीर्ष निर्णयकर्ताओं में से एक राहुल गांधी सक्रिय रूप से शामिल होने के बजाय 'अलग' दिखाई दिए। उन्होंने अपनी निर्धारित विदेश यात्रा पर जाने का फ़ैसला किया, जबकि वे कुछ समय के लिए इसे स्थगित कर सकते थे।
इससे पहले वार्ता नाकाम होने का सबसे बड़ा कारण जो बताया गया वह प्रशांत किशोर के कांग्रेस में भूमिका को लेकर था। रिपोर्ट है कि प्रशांत किशोर कांग्रेस में आमूल-चूल बदलाव चाहते थे और इसके लिए वह पार्टी में नीतियाँ बनाने और निर्णय लेने की खुली छूट चाहते थे।
लेकिन माना जा रहा है कि कांग्रेस इसके पक्ष में नहीं थी और वह चाहती थी कि एक-एक कर बदलाव किए जाएँ।
2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में वह कांग्रेस नेताओं से सीख ले चुके हैं। तब उनकी पूरी कार्ययोजना को बेहद आधे अधूरे ढंग से लागू करके उन्हें समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने को मजबूर कर दिया गया और उसके बाद कांग्रेस का जो हश्र हुआ उससे पीके पर ऐसा दाग लगा जिसे धुलने में उन्हें लंबा वक़्त लगा। इसलिए इस बार प्रशांत किशोर ने तय कर लिया था कि या तो उन्हें अपनी कार्ययोजना लागू करने की पूरी छूट मिले और उनके काम में किसी भी नेता का कोई दखल न हो, तब ही वह कांग्रेस में शामिल होंगे।
हालाँकि आधिकारिक तौर पर बातचीत विफल होने को लेकर प्रशांत किशोर ने ट्वीट कर कहा कि कांग्रेस में गहराई तक जड़ें जमा चुकीं सांगठनिक समस्याओं को परिवर्तनकारी सुधारों के ज़रिए सुलझाने के लिए मुझसे ज़्यादा पार्टी को नेतृत्व और सामूहिक इच्छाशक्ति की ज़रूरत है।
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