विपक्षी एकता में तेलंगाना की सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) का रवैया बाधक हो सकता है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में आज कहा गया है कि केसीआर के नेतृत्व वाली बीआरएस विपक्षी गठबंधन में शामिल होने को तो तैयार है लेकिन वो राहुल गांधी के चेहरे को विपक्ष का चेहरे बनाने के खिलाफ है। एक तरह से उसने शर्त रख दी है कि राहुल को आगे किए बिना विपक्षी मोर्चे पर वो सहमति दे सकती है। बिहार के सीएम और जेडीयू नेता नीतीश कुमार अभी कल सोमवार को ही ममता बनर्जी और अखिलेश को राजी कर अपने मिशन का पहला सफल राउंड पूरा करके बिहार लौटे हैं लेकिन इस बीच आज केसीआर ने अपना दांव चल दिया।
इंडियन एक्सप्रेस को बीआरएस के शीर्ष सूत्र ने बताया कि पार्टी अब कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल होने के विचार को छिपाना नहीं चाहती है। हालांकि, इस विपक्षी गठबंधन के चेहरे के रूप में राहुल गांधी के बारे में आपत्ति है।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक अपनी खुद की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं के बावजूद, के. चंद्रशेखर राव यानी केसीआर के नेतृत्व वाली पार्टी अधिक "एडजस्टमेंट" के लिए तैयार है। सूत्रों ने कहा कि जिस तरह से केंद्र सरकार और भाजपा ने क्षेत्रीय दलों को जांच के नाम पर घेरा है, उसके मद्देनजर बीआरएस के पास कोई और ऑप्शन भी नहीं है।
इंडियन एक्सप्रेस से केसीआर के नजदीकी सूत्र ने कहा, जिस तरह केंद्रीय एजेंसियों को विपक्षी नेताओं के खिलाफ किसी भी स्तर पर उतारा गया है, उसने यहां पाकिस्तान जैसी स्थिति पैदा कर दी है। वहां जब इमरान खान सत्ता में थे तो विपक्षी नेताओं को देश छोड़कर भागना पड़ा था। जब वे सत्ता में आए तो खान अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं...। यह विकट स्थिति है और यहां सभी को एकसाथ आना होगा। यह 2019 नहीं है। हमें मतभेदों को खत्म करना होगा और देश को बचाने के लिए भाजपा को हराना प्राथमिकता बनाना होगा।
बताना होगा कि केसीआर की बेटी और पूर्व सांसद के. कविता दिल्ली शराब नीति केस में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच का सामना कर रही हैं। कई नेता गिरफ्तार हो चुके हैं।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक बीआरएस के सूत्रों ने कहा कि पार्टी चाहती है कि कांग्रेस अपनी कमजोर राष्ट्रीय ताकत का एहसास करे और चुनाव पूर्व गठबंधन के लिए क्षेत्रीय दलों के साथ बातचीत करे। हम बस इतना कह रहे हैं कि कांग्रेस जहां मजबूत है, उसे अपना उचित हिस्सा मिलना चाहिए। लेकिन जहां अन्य क्षेत्रीय दल मजबूत हैं, वहां कांग्रेस को रास्ता बनाना चाहिए। विपक्षी गठबंधन के काम करने और अंततः प्रभावी होने का यही एकमात्र तरीका है।
एक बीआरएस नेता ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि पार्टी 2024 के लिए नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी के नैरेटिव को लेकर सहज नहीं है। 2019 में इसका परीक्षण किया गया था। विपक्ष के भीतर ऐसे लोग हैं, जैसे बिहार के सीएम नीतीश कुमार और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, जिन्होंने अपने प्रशासन का बेहतर ट्रैक रिकॉर्ड साबित किया है। राहुल गांधी ने क्या हासिल किया है? वह अपनी पार्टी के आधिकारिक नेता भी नहीं हैं। न ही उनमें खुद को पीएम कैंडिडेट घोषित करने की हिम्मत है।
सूत्रों ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि बीआरएस "अर्थपूर्ण" गठबंधनों के लिए उत्सुक है और विपक्ष को एक साथ लाने के लिए काम करेगा। अगले कुछ महीनों में विभिन्न पक्षों के बीच चर्चा के दौरान कई चीजों को अंतिम रूप दिया जाएगा। केसीआर के करीबी नेता ने कहा कि उनकी प्राथमिकता इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव हैं। विधानसभा चुनाव नतीजों का रुख भी बातचीत की दिशा को तय करेगा।
बता दें कि कुछ साल पहले तक, केसीआर उन गिने-चुने क्षेत्रीय नेताओं में से एक थे, जिन्हें भाजपा शासन के प्रति तटस्थ माना जाता था। केआरएस ने बड़े पैमाने पर संसद में सरकार द्वारा लाए गए विधेयकों और प्रस्तावों का समर्थन किया और केंद्र ने तेलंगाना सरकार द्वारा मांगी गई सहायता प्रदान की। हालाँकि, तेलंगाना में भाजपा के कदम बढ़ाने के साथ, दोनों पक्षों के बीच जुबानी झड़पें होती रहीं। तेलंगाना पुलिस ने हाल ही में राज्य के बीजेपी अध्यक्ष बी संजय कुमार को 10वीं कक्षा के पेपर लीक मामले में गिरफ्तार किया था। बीआरएस इस बात को समय पर भांप गई कि बीजेपी ने जिन-जिन राज्यों में क्षेत्रीय दलों से समझौता किया, वो क्षेत्रीय दल कमजोर होते गए। जहां क्षेत्रीय दल भारी थे, उन्हें विभाजित करके कमजोर कर दिया गया। यह समझ आने के बाद केसीआर ने पहले एनडीए छोड़ा, फिर भाजपा पर अटैक शुरू किया।
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