विपक्षी एकता के लिए शुरू की गई बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मुहिम का पहला राउंड बहुत सफल रहा। उन्हें राजनीतिक विश्लेषक 10 में से 10 नंबर दे रहे हैं। दरअसल, कांग्रेस के खिलाफ सबसे मुखर विपक्ष के दो नेताओं के साथ पहले दौर की बातचीत ने नीतीश को उनकी मंजिल के करीब पहुंचा दिया है। बंगाल में टीएमसी चीफ ममता बनर्जी और यूपी में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सैद्धांतिक रूप से बीजेपी को रोकने की जरूरत और इसे लाने के लिए जरूरी एकता और सामंजस्य के बारे में रजामंदी जता दी है।
टीएमसी चीफ बनर्जी जो अपने उग्र स्वभाव के लिए जानी जाती हैं, उन्होंने नीतीश कुमार से इस हद तक समझ बनाई और कहा कि "कोई अहंकार नहीं है" और विपक्षी एकता में कोई समस्या नहीं है "यदि विचार, दृष्टि और मिशन स्पष्ट हैं।" अखिलेश यादव के साथ नीतीश ने जेपी आंदोलन के 'पुराने स्कूल टाई' का आह्वान किया।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखिलेश यादव ने जब कहा कि "मैं बीजेपी को सत्ता से बाहर करने और देश को बचाने के इस प्रयास में नीतीश जी के साथ हूं।" तो इस बयान का गहरा मतलब था।
इस पर नीतीश कुमार ने भी कहा- बिहार और उत्तर प्रदेश हमेशा साथ रहे हैं... हम समाजवादी हैं। हम एक इतिहास साझा करते हैं।" हालांकि कभी नीतीश कुमार की राहें मुलायम और लालू से जुदा हो गई थीं।
नीतीश की बड़ी बातेंः बहरहाल, नीतीश का यह बार-बार कहना, उनके मिशन की कामयाबी में मील का पत्थर साबित हो रहा है। कांग्रेस नेता ओं से बैठक के बाद और अब ममता-अखिलेश बैठक के बाद नीतीश ने साफ कहा कि वो प्रधानमंत्री बनने का कोई सपना नहीं देख रहे हैं। उनका बस एक ही सपना है कि बीजेपी को किसी भी हालत में रोका जाए। उन्होंने कल रात लखनऊ में पत्रकारों से कहा- आपको यह समझना चाहिए कि हम इतिहास को बदलने का प्रयास कर रहे हैं..हमने फैसला किया है कि हम अधिक से अधिक पार्टियों को एक साथ लाएंगे और देश के लिए काम करेंगे।"
कोलकाता के बाद लखनऊ नीतीश कुमार का दूसरा पड़ाव था। लखनऊ आने से पहले उन्होंने कल दोपहर में ममता बनर्जी के साथ व्यापक चर्चा की थी।
ममता बनर्जी ने बैठक के बाद कहा था- हम एक साथ आगे बढ़ेंगे। हमारे पास कोई व्यक्तिगत अहंकार नहीं है। हम सामूहिक रूप से मिलकर काम करना चाहते हैं।
हालांकि ममता ने यह भी इशारों में कहा कि एकता का संदेश बिहार से आना चाहिए, जहां "जयप्रकाश (नारायण) जी का आंदोलन शुरू हुआ। ममता ने कहा था, "अगर बिहार में हमारी सर्वदलीय बैठक होती है, तो हम तय कर सकते हैं कि आगे कहां जाना है। लेकिन सबसे पहले, हमें यह बताना होगा कि हम एकजुट हैं।" बता दें कि जेपी आंदोलन, जो बिहार में कांग्रेस कुशासन के विरोध के रूप में शुरू हुआ था, बाद में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की केंद्र सरकार के खिलाफ हो गया था।
ममता का बयान जो भी हो, नीतीश कुमार खुश नजर आ रहे हैं।
बिहार के मुख्यमंत्री ने इस महीने की शुरुआत में कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी के साथ बैठक के बाद कांग्रेस विरोधी नेताओं को इस मुहिम में साथ में लाने का जिम्मा लिया था।
कांग्रेस के साथ जीवन भर के टकराव के बाद, जेडीयू नेता ने राज्य स्तर पर एक बार नहीं, बल्कि दो बार कांग्रेस के साथ साझेदारी की है। हाल ही में कई बार उन्होंने यह स्वीकार करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी है कि ग्रैंड ओल्ड पार्टी (कांग्रेस) के बिना कोई भी विपक्षी मोर्चा बीजेपी को सत्ता से बाहर करने की उम्मीद नहीं कर सकता है।
वह पहले ही कांग्रेस के सबसे मुखर आलोचकों में से एक अरविंद केजरीवाल को अपने साथ ला चुके हैं। 13 अप्रैल को उनकी बैठक के बाद, दिल्ली के मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि वह "पूरी तरह से" नीतीश कुमार के साथ हैं। विपक्ष के लिए "एक साथ आना और केंद्र में सरकार को बदलना अत्यंत आवश्यक" है।
निचोड़ः बिहार बैठक का इंतजार करिए
विपक्षी मोर्चे में कांग्रेस का मुखर विरोध ममता, अखिलेश और केसीआर ने किया था। बीजू जनता दल और जेडीएस कांग्रेस से उतना परहेज नहीं करते, जितना ये तीनों नेता करते रहे हैं। इनमें ममता और अखिलेश को नीतीश ने मना लिया है या तैयार कर लिया है। इसलिए तेलंगाना के सीएम और बीआरएस चीफ के. चंद्रशेखर राव भी विपक्षी मोर्चे से ज्यादा दूर नहीं रह पाएंगे। वो भी पहले से ही केंद्रीय जांच एजेंसियों का सामना कर रहे हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि नीतीश के मिशन का पहला राउंड जबरदस्त कामयाब रहा। कुल मिलाकर निकट भविष्य में बिहार में विपक्षी एकता सम्मेलन के बाद ही और बेहतर तस्वीर सामने आएगी।
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