स्वामी प्रसाद मौर्य उस मौर्य समुदाय से हैं, जो राज्य में तीसरा सबसे बड़ा ओबीसी (यादव और कुर्मी से आगे) ग्रुप है और कुल आबादी का 8 फीसदी है। स्वामी प्रसाद मौर्य पूर्वी यूपी में कुशीनगर जिले के पडरौना निर्वाचन क्षेत्र से विधायक हैं। उनकी जाति पर उनका प्रभाव रायबरेली, ऊंचाहार, शाहजहांपुर और बदायूं जिलों के आसपास फैला हुआ है।माना जा रहा है कि यूपी की 403 सीटों में से 100 से ज्यादा सीटों पर मौर्य लोगों की अच्छी खासी मौजूदगी है। इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि इस समुदाय ने अपनी सौदेबाजी की ताकत को बढ़ाने के लिए महान दल नामक अपनी पार्टी बनाई है। यह भी कोई संयोग नहीं है कि अखिलेश यादव ने अपना अभियान शुरू होने से पहले महान दल के साथ गठबंधन किया था।
स्वामी प्रसाद मौर्य की तरह, दारा सिंह चौहान भी ओबीसी हैं। वह नोनिया जाति से है जिसे ओबीसी में सबसे पिछड़ा माना जाता है और पूर्वी यूपी में आबादी का 3 फीसदी है। यह समुदाय वाराणसी, चंदौली और मिर्जापुर के आसपास फैला हुआ है। हालांकि बीजेपी ने भी जन शक्ति पार्टी को साथ रखा हुआ जो नोनिया वोटों के दावे करती है। बहरहाल, दारा सिंह इस समुदाय के सबसे बड़े नेता हैं।
राजभर यूपी में एक और शक्तिशाली ओबीसी समुदाय है, जिसकी पूर्वी यूपी में महत्वपूर्ण भूमिका है, जहां माना जाता है कि यह आबादी का लगभग 15 से 20 फीसदी है। ऐसे समाज में जहां जाति और उपजातियां चुनावी अंकगणित में सबसे बड़ा निर्णायक कारक हैं, ये बहुत बड़ी संख्या है, और कोई भी पार्टी या नेता उनकी उपेक्षा नहीं कर सकता।
यही वजह है कि ओम प्रकाश राजभर राज्य की राजनीति में एक अहम खिलाड़ी के तौर पर उभरे हैं। उनके दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने 2017 में, बीजेपी के साथ थी। योगी आदित्यनाथ की कैबिनेट में लंबे इंतजार के बाद मंत्री बने, लेकिन तीन महीने पहले अखिलेश यादव के पास चले गए। उनके इस कदम के प्रभाव को बेअसर करने के लिए, बीजेपी ने राजभर की दो कम चर्चित पार्टियों - भीम राजभर की भारतीय सुहेलदेव जनता पार्टी और बाबू लाल राजभर की शोषित समाज पार्टी के साथ गठजोड़ किया। लेकिन ये दोनों दल ओम प्रकाश राजभर के मुकाबले कहीं नहीं ठहरते। इन दोनों के साथ, बीजेपी ने कुछ महीने पहले सात छोटी जाति-आधारित पार्टियों के साथ गठबंधन किया था।
यूपी में अपनी जातियों और उप-जातियों के बीच स्थानीय प्रभाव वाले इन छोटे दलों के उद्भव को कभी बेहतर ढंग से आंका नहीं गया। ओबीसी समूह में यादव ग्रुप ने सारा फायदा अकेले ले लिया। इसी तरह दलितों में जाटव ग्रुप ने सारा फायदा ले लिया। लेकिन अब ओबसी की इन छोटी-छोटी जातियों की राजनीतिक, सामाजिक लालसा जागी है। संयोग से ओमप्रकाश राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य ने इसे मंच और आवाज दे दी है। अखिलेश इस राजनीतिक स्थिति को भांप गए और बीजेपी अपने गुरुर में रही।
बीजेपी इसे छोटे जाति समूहों का स्थायी समर्थन मानकर इन्हें भूल गई। जबकि इन कमजोर जातियों ने हिंदुत्ववादी ताकतों का समर्थन इस विश्वास के साथ किया था कि उन्हें सत्ता में उनका हिस्सा मिलेगा, लेकिन बीजेपी के साथ तीन चुनावों के बाद, वे निराश और मोहभंग महसूस कर रहे हैं।
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