बीजेपी को चाहिए नया साझीदार
नीतीश कुमार के अलग होने के बाद बिहार में बी जे पी को नए साझीदारों की तलाश है। यहाँ बी जे पी अकेले दम पर कोई बड़ा चुनावी जीत हासिल नहीं कर सकती है। जे डी यू और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की पार्टी आर जे डी तथा कांग्रेस मिलकर एक मजबूत राजनीतिक शक्ति बन जाते हैं। मजबूरी में बी जे पी के पास एक ही रास्ता बचता है कि 2014 के लोकसभा चुनावों की तरह कुछ छोटी पार्टियों के साथ मिलकर एक नया मोर्चा बनाए। 2014 में उपेन्द्र कुशवाहा बी जे पी के साथ थे। गठबंधन में उपेन्द्र की पार्टी के तीन सांसद जीते थे। कुशवाहा को को नरेंद्र मोदी सरकार में राज्य मंत्री भी बनाया गया था। लेकिन बाद में वो बी जे पी से अलग हो गए और 2021 में उनकी पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का जे डी यू में विलय हो गया।बी जे पी के पुराने साझीदारों में पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बेटे चिराग़ पासवान की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी भी है। रामविलास पासवान की मृत्यु के बाद आर एल एस पी दो भागों में बँट गयी और चिराग़ अलग थलग पड़ गए। चर्चा है कि बी जे पी अब पासवान की पार्टी के दोनों धड़ों को एक करके चुनावी गठबंधन की कोशिश भी कर रही है। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम माँझी की पार्टी हम (हिंदुस्तान अवाम पार्टी ) और एक अन्य पिछड़े नेता मुकेश सहनी की पार्टी, विकासशील इंसान पार्टी, पर भी बी जे पी की नज़र है। लेकिन बिहार में चुनावी अखाड़े के सबसे मज़बूत नेता नीतीश कुमार को कमज़ोर किए बिना कोई गठबंधन सफल नहीं हो सकता है। इसलिए उपेन्द्र कुशवाहा जे डी यू को जितना नुक़सान पहुँचाएँगे, बी जे पी उतना ही फ़ायदे में रहेगी।
अति पिछड़ा वोट बैंक
उपेन्द्र कुशवाहा, कोईरी जाति के हैं। बिहार में इनकी आबादी 4 प्रतिशत बताई जाती है। ये अति पिछड़ी जातियों में आते हैं जिनके एक क्षत्र नेता नीतीश कुमार हैं। नीतीश ने ही उपेन्द्र को राजनीति में आगे बढ़ाया। लेकिन दो बार पहले भी वो नीतीश को छोड़ कर जा चुके हैं। 2014 के लोक सभा चुनाव में नीतीश और आर जे डी अलग थे इसलिए बी जे पी को छोटे साझीदारों के साथ सफलता मिल गयी लेकिन 2015 के विधान सभा चुनावों में नीतीश, आर जे डी और कांग्रेस मिल का लड़े तो बी जे पी पीछे रह गयी। 2019 के लोक सभा और 2020 के विधान सभा चुनावों में नीतीश के साथ होने के कारण बी जे पी को ज़बरदस्त सफलता मिली।“
बीजेपी को अब अति पिछड़े और अति दलितों का वोट साधने के लिए विकल्प की तलाश है। उपेन्द्र कुशवाहा की बग़ावत से नीतीश को जितना नुक़सान होगा, बी जे पी उतने ही फ़ायदे में रहेगी। उपेन्द्र के साथ अभी तक कोई बड़ा समर्थन दिखाई नहीं दे रहा है लेकिन लोक सभा चुनावों तक वो ज़्यादा से ज़्यादा ताक़त जुटाने की कोशिश करेंगे।
इसके पहले जे डी यू के एक अन्य पिछड़े नेता राम चंद्र प्रसाद सिंह (आर सी पी सिंह ) पर भी बी जे पी से साँठ गाँठ का आरोप लगा था। वो केंद्र में मंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। नीतीश ने उन्हें किनारे कर दिया। चर्चा है कि नीतीश से ख़फ़ा कई नेताओं को जुटाने की क़वायद चल रही है।
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