कांग्रेस महासचिव और यूपी प्रभारी अविनाश पांडे ने रविवार को बयान दिया था कि बसपा के लिए इंडिया गठबंधन के दरवाजे बंद नहीं हुए हैं। पांडे ने कहा था कि यह मायावती को तय करना है कि वो भाजपा के खिलाफ एकजुट हुए दलों के साथ आना चाहती हैं या नहीं। मायावती ने सोमवार 19 फरवरी को इसका जवाब दिया। मायावती ने सोमवार को दो ट्वीट किए और कहा कि उनके समर्थक और जनता ऐसी अफवाहों पर ध्यान न दे। बसपा का कोई इरादा किसी गठबंधन में शामिल होने का नहीं है।
मायावती ने कहा- आगामी लोकसभा आम चुनाव बीएसपी द्वारा किसी भी पार्टी से गठबंधन नहीं करने की बार-बार स्पष्ट घोषणा के बावजूद आए दिन गठबंधन संबंधी अफवाह फैलाना यह साबित करता है कि बीएसपी के बिना कुछ पार्टियों की यहाँ सही से दाल गलने वाली नहीं है, जबकि बीएसपी को अपने लोगों का हित सर्वोपरि है। अतः सर्वसमाज के ख़ासकर ग़रीबों, शोषितों एवं उपेक्षितों के हित व कल्याण के मद्देनज़र बीएसपी का देश भर में अपने लोगों के तन, मन, धन के सहारे अकेले अपने बलबूते पर लोकसभा आमचुनाव लड़ने का फैसला अटल है। लोग अफवाहों से ज़रूर सावधान रहें।
यूपी में कांग्रेस नेता लंबे समय से बसपा से गठबंधन करने के लिए कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर दबाव बना रहे हैं। हालांकि ऐसी कोशि मार्च 2023 से लगातार हो रही है। एआईसीसी सचिव संपत कुमार लंबे समय से बसपा नेताओं के संपर्क में हैं। संपत कुमार ने हाल ही के तेलंगाना विधानसभा चुनाव के दौरान ऐसी ही कोशिश की थी। हालांकि बातचीत आगे नहीं बढ़ सकी। लेकिन अब जब लोकसभा चुनाव सिर पर हैं और यूपी इस चुनाव का कुरुक्षेत्र होगा तो कांग्रेस नेता फिर से कोशिश में हैं कि बसपा भी इंडिया गठबंधन का हिस्सा बने। बसपा प्रमुख मायावती भी अकेले दम पर लोकसभा चुनाव यूपी में नहीं लड़ सकती हैं यह उन्हें अच्छी तरह मालूम है। 2019 के लोकसभा चुनाव में उनका गठबंधन समाजवादी पार्टी के साथ था। उस चुनाव में बसपा 10 सीटें जीत पाई थी और सपा को पांच सीटें मिली थीं। कांग्रेस के हिस्से में एक सीट आई थी। बसपा को चुनावी पार्टनर तो चाहिए लेकिन वो कह नहीं पा रही है। इतना तय है कि बसपा के अकेले लड़ने से यूपी में भाजपा का जबरदस्त फायदा होगा। अगर बसपा और कांग्रेस का गठबंधन होता तो सपा से नाराज मुस्लिमों के कांग्रेस और बसपा की तरफ आने की उम्मीद थी। लेकिन अब मुस्लिम वोट किधर जाएगा, इस पर विश्लेषण हो रहा है।
ऐसे में बसपा और कांग्रेस का गठबंधन मुस्लिम मतदाताओं के साथ चमत्कार कर सकता है। बसपा के पास अभी भी अनुसूचित जाति के वोटों का सबसे बड़ा हिस्सा है। अगर मुस्लिम इसमें शामिल हो जाते हैं तो सपा ही नहीं भाजपा के लिए भी ठीकठाक चुनौती खड़ी हो सकती है। राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की 2014 की चुनावी जीत के बाद मुस्लिम इस बात को समझ रहे हैं कि वे अकेले भाजपा के वर्चस्व को चुनौती नहीं दे सकते। उन्हें किसी न किसी राष्ट्रीय या क्षेत्रीय दल का दामन थामना ही होगा। अगर कांग्रेस और बसपा के बीच गठबंधन होता है तो उन्हें सपा के मुकाबले एक बेहतर वैकल्पिक मंच मिल सकता है। लेकिन मायावती इन संभावनाओं को बेरहमी से कुचलती रहती हैं।
मायावती के सोमवार के बयान के बाद कांग्रेस और बसपा के बीच गठबंधन दूर की कौड़ी हो गया है। लेकिन मायावती को अंदाजा है कि गठबंधन में जाने पर उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को नया रास्ता मिलेगा और बसपा फिर से खड़ी हो सकेगी। यूपी के कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि राजनीति में संभावनाएं कभी खत्म नहीं होतीं। हो सकता है कि मायावती आज जिस गठबंधन से मना कर रही हैं, हो सकता है कि लोकसभा चुनाव घोषित होते ही वो कांग्रेस से गठबंधन कर लें।फिलहाल, यूपी की राजनीति में अभी कई भूचाल आने हैं।
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