महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए विपक्षी महा विकास अघाड़ी (एमवीए) ने राज्य की 288 विधानसभा सीटों में से 263 पर सीटों का बंटवारा तय कर लिया है। इसमें सपा को भी शामिल करके दो सीटें दी जा रही हैं। सपा प्रमुख शुक्रवार को मुंबई आ रहे हैं, जहां उनसे इस दिशा में बातचीत भी होना है।
मीडिया रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से बताया गया कि एमवीए के कांग्रेस, एनसीपी शरद पवार गुट और शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट ने गुरुवार को बैठक की थी। इसमें सीट बंटवारे पर बात हुई और उससे तीनों दलों के नेता काफी उत्साहित हैं। इस बैठक में कांग्रेस के महाराष्ट्र अध्यक्ष नाना पटोले, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) सांसद संजय राउत और एनसीपी (शरदचंद्र पवार) नेता जितेंद्र अव्हाण, जयंत पाटिल और अनिल देशमुख सहित अन्य लोग शामिल हुए।
एमवीए में करीब 25 सीटों पर अभी फैसला होना है। इसमें मुंबई की 36 में से चार विधानसभा सीटें भी शामिल हैं। ये हैं कुर्ला, धारावी, वर्सोवा और बायकुला शामिल हैं। इन 25 सीटों पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, उद्धव ठाकरे और शरद पवार "दो से तीन दिनों" में अंतिम फैसला लेंगे। यानी रविवार तक सभी सीटों पर फैसला हो जाएगा।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए मतदान एक ही चरण में 20 नवंबर को होगा। एमवीए की तरह महायुति में भी अभी तक सीटों का बंटवारा तय नहीं हो सका है। वहां भी शनिवार तक स्थिति स्पष्ट होने की उम्मीद है। भाजपा सीटों का बलिदान देने की बात शिवसेना शिंदे गुट से कह रही है। महायुति में विवाद ज्यादा है।
2019 के पिछले विधानसभा चुनाव भाजपा-शिवसेना गठबंधन और कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन में सीधा मुकाबला था। जब नतीजे घोषित हुए तो सरकार बनाने के लिए संख्या बल होने के बावजूद मुख्यमंत्री पद को लेकर बीजेपी-शिवसेना गठबंधन में फूट पड़ गई और एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन कर उद्धव ठाकरे सीएम बने थे। लेकिन भाजपा ने इस सरकार को ज्यादा दिन चलने नहीं दिया। भाजपा ने शिवसेना में शिंदे के नेतृत्व में और एनसीपी में अजित पवार के नेतृत्व में दोनों पार्टियों के टुकड़े करा दिये। इस वजह से एनसीपी अजित पवार गुट के कई नेताओं और खुद अजित पवार को करप्शन के तमाम मामलों में राहत मिल गई। कई जांच ईडी और इनकम टैक्स विभाग ने बंद कर दी।
2022 में उद्धव की सरकार एकनाथ शिंदे के विद्रोह के कारण गिर गई। शिंदे को भाजपा ने समर्थन दिया और शिंदे मुख्यमंत्री बन गये। इसके बाद अजित पवार ने एनसीपी को बांटा और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली। अब मुकाबला कांग्रेस, भाजपा और दोनों शिवसेना और एनसीपी के बीच है। इस चुनाव के जरिए मूल पार्टियों की विरासत की लड़ाई भी चल रही है। इस चुनाव में यह भी फैसला होना है कि असली शिवसेना और असली एनसीपी नेतृत्व का हकदार कौन है। महत्वपूर्ण यह भी है कि चुनाव आयोग ने अपना फैसला देते हुए तोड़फोड़ करने वाले शिंदे को मूल शिवसेना और अजित पवार को मूल एनसीपी माना और चुनाव चिह्न उनके पास रहे। लेकिन अंतिम फैसला महाराष्ट्र की जनता को करना है।
सत्तारूढ़ गठबंधन महायुति को चंद महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव 2024 में बड़ा झटका लगा। महायुति ने राज्य के 48 लोकसभा क्षेत्रों में से सिर्फ 17 पर जीत हासिल की, जबकि महा विकास अघाड़ी ने 30 सीटों पर जीत दर्ज की। इसमें भाजपा को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ, वो सिर्फ 9 सीटें ही जीत सकी। इसीलिए विधानसभा चुनाव को महायुति के लिए एक कठिन लड़ाई के रूप में देखा जा रहा है। लेकिन हरियाणा में मिली जीत की वजह से भाजपा और तमाम टीवी चैनल उसे बढ़ाचढ़ा कर प्रचारित कर रहे हैं और हरियाणा के नतीजों को महाराष्ट्र में भुनाना चाहते हैं। हरियाणा में सरकार विरोधी लहर के बावजूद भाजपा जीत गई और तीसरी बार वहां उसकी सरकार बन गई है। हालांकि हरियाणा चुनाव में धांधली के आरोप भी लगे हैं। जिसमें कांग्रेस का कहना है कि चुनाव नतीजों को ईवीएम के जरिये प्रभावित किया गया है।
हरियाणा के नतीजों को लेकर शरद पवार और शिवसेना यूबीटी ने गुरुवार को कहा कि उत्तरी राज्य के किसी भी चुनाव का महाराष्ट्र के नतीजों पर कोई असर नहीं पड़ता है।
महाराष्ट्र के दिग्गज नेता और पूर्व सीएम शरद पवार ने कहा- "हम हरियाणा के नतीजों का अध्ययन कर रहे हैं, लेकिन साथ ही जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों के नतीजों पर भी नजर डाल रहे हैं। मुझे नहीं लगता कि इसका (हरियाणा के नतीजों का) राज्य के चुनावों पर कोई असर पड़ेगा। जहां तक जम्मू-कश्मीर का सवाल है। विश्व समुदाय ने इस पर अधिक ध्यान दिया है। जम्मू कश्मीर के चुनाव परिणाम देश के लिए अधिक महत्वपूर्ण हैं।”
गौरतलब है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन ने दस साल के बाद हुए विधानसभा चुनाव में जम्मू और कश्मीर के 80 निर्वाचन क्षेत्रों में से 48 पर जीत हासिल की। हालांकि, कांग्रेस की इसमें सिर्फ छह सीटें शामिल हैं। लेकिन जम्मू कश्मीर का नतीजा बताता है कि कश्मीर घाटी में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस का दबदबा है तो जम्मू में भाजपा का दबदबा है। जम्मू में कांग्रेस की सीटें कम हो गई हैं। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली एनसी सरकार को कांग्रेस के अलावा चार निर्दलीय और एकमात्र आप विधायक का समर्थन भी हासिल है।
अपनी राय बतायें