पूर्व सीएम और बसपा नेता मायावती जनवरी में यूपी और उत्तराखंड का दौरा शुरू करने जा रही है। यूपी में वो हर जिले में जाएंगी और पार्टी कार्यकर्ताओं से सीधे संवाद करेंगी। हाल ही में उन्होंने अपने भतीजे आकाश को पार्टी का प्रमुख बनाया था। तब कहा गया था कि वो अब खुद पीछे रहेंगी। लेकिन तमाम अटकलों को खारिज करते हुए उन्होंने यूपी पर पूरे चुनाव के दौरान फोकस करने का फैसला किया है। बसपा सूत्रों ने यह जानकारी दी।
बसपा सूत्रों का कहना है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड ऐसे दो राज्य हैं जिनकी देखरेख मायावती खुद करेंगी जबकि अन्य राज्यों में पार्टी ने या तो प्रभारी और समन्वयक नियुक्त कर दिए हैं या ऐसा करने की प्रक्रिया में है।
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पार्टी के एक पदाधिकारी ने कहा- “यूपी के दौरे से उन्हें जमीनी स्तर पर पार्टी कार्यकर्ताओं से सीधे फीडबैक मिलने की उम्मीद है। इससे पार्टी को आगामी आम चुनावों के लिए रणनीति बनाने में मदद मिलेगी और चुनावों के लिए उम्मीदवार भी तय होंगे। इस दौरे से यूपी में पिछले दो चुनावों 2022 विधानसभा चुनाव और 2023 शहरी स्थानीय निकाय चुनावों के मुकाबले उनकी रणनीति में बड़ा बदलाव हो सकता है। उन दोनों ही चुनावों में उन्होंने ज्यादा प्रचार नहीं किया था। पार्टी ने दोनों चुनावों में खराब प्रदर्शन किया था।”
बसपा नेता मायावती दरअसल, कई तरह से संभावनाएं तलाश रही हैं। सूत्रों का कहना है कि उनका कांग्रेस से संपर्क बना हुआ है। अगर अखिलेश इंडिया से बाहर जाते हैं या कांग्रेस से यूपी में सीटों का समझौता नहीं करते हैं तो कांग्रेस बसपा से समझौता कर सकती है। बसपा कांग्रेस से करीब 30 सीटें यूपी में मांग रही है। यूपी कांग्रेस के नेताओं ने शीर्ष नेतृत्व को समझाया है कि बसपा से समझौते में फायदा है। भाजपा के सेंध लगाने के बावजूद बसपा के पास अभी भी दलित वोट हैं। जबकि अखिलेश के पास सिर्फ यादव वोट हैं, जिसमें भाजपा की भी सेंध लग चुकी है। मुस्लिम अखिलेश से दूर जा ही चुका है। अगर कांग्रेस बसपा का समझौता होता है तो मुस्लिम फिर कांग्रेस और बसपा का रुख करेंगे। यही वजह है कि मायावती अब यूपी में पूरा दमखम लगा देना चाहती हैं।
मायावती इधर हाल ही में हुई कई पार्टी बैठकों में पार्टीजनों से लोकसभा चुनाव की तैयारी के लिए कहा है।
जब वह राज्य का दौरा करेंगी तो वह जमीनी स्तर पर पार्टीजनों से सीधे फीडबैक लेंगी। हाल ही में, पार्टी में इस बात को लेकर असंतोष बढ़ रहा है कि मायावती को उनके और पार्टी में अन्य लोगों के बीच माध्यम के रूप में काम करने वाले जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं और समन्वयकों से 'काट' दिया गया है।
उत्तर प्रदेश में बसपा के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक न केवल पर्याप्त सीटें जीतना है बल्कि जो 10 सीटें उसके पास हैं उन्हें बरकरार रखना भी है। 2019 के लोकसभा चुनावों में, पार्टी ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में लड़ी गई 38 सीटों में से 10 सीटें जीती थीं।
2014 में उसे यूपी में कोई सीट नहीं मिली थी। 2009 में उसने यूपी में 20 सीटें जीती थीं। आगामी लोकसभा चुनाव बसपा के लिए इस मायने में भी महत्वपूर्ण होंगे कि उसने 2022 के विधानसभा चुनावों में यूपी में अपना अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन दर्ज किया था, केवल एक सीट जीती थी और 12.8 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। मायावती को यह अच्छी तरह समझ में आ चुका है कि यूपी में बिना किसी पार्टी का साथ लिए बसपा अपने दम पर ज्यादा सीटें जीत नहीं सकती। चुनावी खेल में बने रहने के लिए सक्रिय भी होना पड़ता है। इसीलिए अब वो सिर्फ यूपी पर फोकस करने जा रही हैं।
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सपा प्रमुख अखिलेश यादव बसपा नेता मायावती की इस रणनीति को भांप गए हैं। इसीलिए उन्होंने दिल्ली में इंडिया गठबंधन की चौथी बैठक में बसपा को इंडिया में शामिल किए जाने के खिलाफ बोला था। हालांकि अभी तक कांग्रेस या अन्य किसी पार्टी ने बसपा के नाम का प्रस्ताव इंडिया में पेश नहीं किया है। लेकिन यूपी कांग्रेस के नेताओं का सुझाव मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल को मिलने के बाद ही अखिलेश सक्रिय हो गए हैं। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर यूपी सबसे महत्वपूर्ण राज्य है। लेकिन जो स्थिति अभी बसपा की है, वही सपा की भी है। लेकिन दोनों दल बिना किसी दूसरे दल का साथ लिए चुनाव मैदान में नहीं उतर सकते। यूपी की राजनीति दिलचस्प होने जा रही है।
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