बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अगले महीने विपक्षी एकता के अपने अभियान में तेजी ला सकते हैं। खुद नीतीश ने इसके संकेत दिए हैं। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा है कि वह दूसरे विपक्षी दलों के नेताओं तक राष्ट्रव्यापी पहुँच अगले महीने शुरू कर सकते हैं।
नीतीश से जब पूछा गया कि राजनीतिक दलों को एकजुट करने के लिए क्या वह देश की यात्रा पर निकलेंगे तो उन्होंने संवाददाताओं से कहा, 'मैं निश्चित रूप से ऐसा करूंगा... विधानसभा सत्र समाप्त होने के बाद।'
नीतीश का यह बयान तब आया है जब 2024 के चुनाव के लिए सरगर्मियाँ तेज हो गई हैं। जहाँ कांग्रेस नेता राहुल गांधी 'भारत जोड़ो यात्रा' निकाल रहे हैं वहीं बीजेपी नेता और देश के गृहमंत्री अमित शाह भी इसी महीने कई राज्यों की यात्रा करने वाले हैं। समझा जाता है कि अमित शाह के इस दौरे के साथ बीजेपी 2024 में चुनाव के लिए अपने अभियान को तेज करने के लिए तैयार है।
कहा जा रहा है कि अमित शाह का अभियान 2024 के लिए भाजपा के 'मिशन 350' का हिस्सा है। इसके तहत पार्टी का लक्ष्य अगले साल आम चुनाव में 543 लोकसभा सीटों में से कम से कम 350 सीटें जीतना है। बीजेपी उन 160 निर्वाचन क्षेत्रों की पहचान कर रही है जहाँ भाजपा मामूली अंतर से हारी या जीती है। हालाँकि इससे पहले पार्टी ने 144 ऐसी लोकसभा सीटों की पहचान की थी, जहाँ उसे जीतने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। लेकिन पार्टी ने तमाम अंदरुनी सर्वे के बाद मुश्किल सीटों की संख्या 144 से बढ़ाकर 160 कर दी है। यानी पार्टी को अब और ज्यादा मेहनत करनी होगी। इसके लिए पार्टी विस्तारक नियुक्त करने जा रही है, जो हर सीट पर फोकस करेंगे।
नीतीश कुमार ने अगस्त महीने में बीजेपी को दरकिनार कर तेजस्वी यादव की राजद और कांग्रेस के साथ अपने गठबंधन को फिर से आकार दिया है। उस गठबंधन के तुरंत बाद के हफ्तों में नीतीश कई विपक्षी नेताओं से मिले थे।
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव यानी केसीआर भी नीतीश से जाकर पटना में मिले थे। हालाँकि केसीआर की अपनी खुद की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं हैं।
लेकिन नीतीश कुमार अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा की बात को खारिज करते रहे हैं। वह कहते रहे हैं, 'मैं केवल विपक्ष को एकजुट करना चाहता हूँ।' लेकिन जानकार उनकी बात को पक्के तौर पर इस रूप में नहीं लेते हैं। कयास लगाए जा रहे हैं कि वह बिहार की राजनीति तेजस्वी यादव के हवाले कर खुद दिल्ली का रास्ता अपना सकते हैं। कुछ लोग तो जेडीयू के आरजेडी में विलय के कयास भी लगा रहे हैं। बहरहाल, यह एक कयास मात्र ही है और इसकी अभी पुष्टि नहीं की जा सकती है।
अब जदयू नेता नीतीश कुमार का विपक्षी नेताओं तक पहुँच का दूसरा चरण शुरू होने की संभावना है। माना जा रहा है कि राहुल गांधी और बंगाल की ममता बनर्जी के साथ चर्चा नीतीश कुमार के एजेंडे में हो सकती है। कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के पास ही विपक्षी दलों में सबसे अधिक लोकसभा सीटें हैं। राजनीतिक विश्लेषक भी कहते रहे हैं कि कोई भी विपक्षी एकता कांग्रेस के बिना संभव नहीं है।
बता दें कि सितंबर महीने में नीतीश कुमार और लालू यादव दिल्ली में सोनिया गांधी से मिले थे। काफ़ी देर की मुलाक़ात के बाद दोनों नेताओं ने कहा था कि सोनिया ने उन्हें फिर से तब मिलने बुलाया है जब कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव हो जाए। नीतीश कुमार ने कहा था, 'हम दोनों ने सोनिया गांधी से बातचीत की। हमें एकजुट होकर देश की प्रगति के लिए काम करना है। उनकी पार्टी के अध्यक्ष के चुनाव हैं जिसके बाद वह बात करेंगी।'
तो सवाल वही है कि क्या 2024 से पहले नीतीश विपक्षी दलों को एकजुट करने में सफल होंगे?
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