विनायक दामोदर सावरकर,
संघ और भाजपा का वैचारिक पितामह तो वहीं
कांग्रेस और सेक्युलर दलों के लिए एक अपराधी जो देश के सबसे बड़े महानायक गांधी की
हत्या में शामिल था। अलग-अलग समय पर करीब पंद्रह साल तक सरकार चलाने के बाद भी
भाजपा अभी तक अपने पितृ पुरुष को मुख्यधारा में शामिल नहीं करा पाई है। और सावरकर
गाहे-बगाहे चर्चा में आ ही जाता है।
ऐसा ही वाकिया हुआ पिछले
दिनों जब कांग्रेस के पूर्व सांसद राहुल गांधी को संसद की सदस्यता से अयोग्य घोषित
किया तो उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया। उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में
माफी को लेकर पूछे गये एक सवाल के जवाब में राहुल गांधी ने कहा कि ‘वे सावरकर नहीं
हैं, और गांधी माफी नहीं
मांगता’।
राहुल की कही बातों पर
बाल में से खाल निकालने को तैयार बीजेपी के लिए मौका था कि वह राहुल के बहाने ही
सही एक बार फिर सावरकर को चर्चा में लेकर आए, जोकि उसने किया भी, और बीजेपी ने राहुल से सावरकर को लेकर कई सवाल पूछे। बीजेपी की तरप से पूछे जा
रहे सवालों में एक सवाल अनुराग ठाकुर का भी था, जिसमें उन्होंने राहुल को घेरते हुए पूछा और कहा कि
उन्होंने सावरकर ही नहीं बल्कि अपनी दादी इंदिरा गांधी का भी अपमान किया है,
जिन्होंने सावरकर के सम्मान में डाक टिकट जारी
किये थे।
ताजा ख़बरें
जो भी हो सावरकर चर्चा
में था, दिल्ली में हो रही इन
गतिविधियों का असर महाराष्ट्र में हो रहा था। इस मसले पर महाराष्ट्र से पहला
रियेक्शन आया कांग्रेस-एनसीपी के साथ गठबंधन में रहकर सरकार चला चुके उद्धव ठाकरे
का जिन्होंने राहुल को चेतावनी दी और कांग्रेस अध्यक्ष की तरफ से बुलाई गई डिनर
पार्टी में जाने से भी मना कर दिया।
उद्धव ठाकरे का कहना था
कि सावरकर उनके भगवान हैं, और उनके खिलाफ
कुछ भी गलत बर्दास्त नहीं किया जाएगा। ठाकरे ने राहुल से कहा कि वे ऐसा कोई बयान न
दें जिससे कि गठबंधन पर असर पड़े। महाराष्ट्र सावरकर का घर है, और पूरे भारत में सावरकर अगर कहीं स्वीकार्य
हैं तो केवल महाराष्ट्र में ही।
उद्धव ठाकरे द्वारा
सावरकर के मसले पर आई यह टिप्पणी महाराष्ट्र में सावरकर के बहाने अपना आधार बढ़ाने
की कोशिश का नतीजा ज्यादा लग रही है, कारण कि पार्टी का नाम और सिंबल और जुड़ी सभी चीजें एकनाथ शिंदे के हाथों गंवा
चुके ठाकरे अभी महाराष्ट्र की राजनीति में काफ़ी लोकप्रिय हैं और उन्हें आम जनता
का समर्थन मिलता दिख रहा है।
ऐसे में वे नहीं चाहते कि उनके सहयोगी दल के एक नेता
की टिप्पणी उनको नुकसान पहुंचाए।
इसलिए उन्होंने सावरकर को
भगवान तक की उपाधि से नवाज दिया और राहुल गांधी के बहाने गठबंधन में असर पड़ने तक
की चेतावनी जारी कर दी। उद्धव केवल यहां ही नहीं रुके उन्होंने आगे की रणनीति तय
करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा बुलाए डिनर में जाने से भी मना कर दिया। जबकि
इसके पहले सुबह के घटनाक्रम में कांग्रेस का लगातार विरोध कर रही तृणमूल कांग्रेस
और भारत राष्ट्र समिति ने भी कांग्रेस का साथ दिया।
कांग्रेस और एनसीपी के साथ पहली बार सरकार बनाने के बाद से उद्धव ठाकरे कांग्रेस के मजबूत सहयोगियों में से एक रहे हैं। इसका खामियाजा उन्हें अपनी ही पार्टी के विधायक द्वारा पार्टी तोड़ने जैसे घटनाक्रम से जूझना पड़ा।
उद्धव की प्रतिक्रिया के बाद सावरकर के मसले पर एकनाथ शिंदे का भी रियेक्शन
आया और उन्होंने तुरंत अपने ट्विटर की प्रोफाइल पिक्चर को बदलकर सावरकर की फोटो लगा
दी। शिंदे केवल इतने पर ही नहीं रुके, उन्होंने आनन-फानन में 'सावरकर गौरव यात्रा' का भी ऐलान कर दिया।
राहुल के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए शिंदे ने कहा, ‘सावरकर ने देश की आजादी लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया और उन जैसे लोगों की
वजह से ही भारत को आजादी मिली।’ शिंदे ने कहा कि हम महाराष्ट्र के
हर जिले में सावरकर गौरव यात्रा निकालेंगे। उनके खिलाफ बोलने वालों के खिलाफ विरोध
प्रदर्शन भी करेंगे।
उद्धव और शिंदे की यह जल्दबाजी और कुछ नहीं महाराष्ट्र में सावरकर की लोकप्रियता
को भुनाने का पॉलिटिकल स्टंट से ज्यादा कुछ नहीं। ऐसे में यह देखना ज्यादा जरूरी
हो जाता है कि बीजेपी अपने पितृ पुरुष के सम्मान के लिए क्या करती है, क्योंकि उसके
लाख चाहने के बाद भी बीजेपी सावरकर को अभी तक आम जनमानस में स्थापित नहीं कर पाई
है। क्योंकि जब भी बीजेपी सावरकर का नाम आम जनमानस में लेकर जाना चाहती है तमाम समूहों
द्वारा आलोचना शुरु हो जाती है। बीजेपी अभी तक सावरकर के बारे में इतना ही बता पाई
है कि उन्हें काले पानी की सजा हुई थी।
सोमवार के घटनाक्रम के बाद उद्धव गुट की तरफ से कहा जा रहा है कि सावरकर के
मामले पर समझौता किये बिना वे पूरी तरह से विपक्ष के साथ हैं और आगामी चुनाव को
ध्यान में रखते हुए वे विपक्ष की रणनीति पर ही काम करेंगे। दरअसल उद्धव की
प्रतिक्रिया के बाद से विपक्षी एकता में दरार पड़ने की संभावनाएं जताई जाने लगी थीं।
अगर ऐसा होता तो यह कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों के लिए नुकसानदेह होता।
फिल्हाल उन्हें राजी कर लिया गया है, सूत्रों के हवाले से कहा गया है राहुल गांधी
और कांग्रेस अब ऐसी कोई टिप्पणी नहीं करेंगे जो उनके सहयोगी दलों को नुकसान
पहुंचाए।
अपनी राय बतायें