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मायावती ने बीएसपी को कहां पहुंचा दिया, आकाश को हटाना क्या आत्मघाती कदम?

पिछले साल जून में जब बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने अपने भतीजे और उत्तराधिकारी आकाश आनंद को पहले पार्टी का राष्ट्रीय समन्वयक बनाया और एक महीने के अंदर उन्हें पद से हटा दिया। उस समय यह माना गया कि मायावती अब पार्टी को फिर से खड़ा करने के लिए कदम उठा रही है। लेकिन 2 मार्च को जब मायावती ने एक बार फिर आकाश को पद से हटा दिया और सभी जिम्मेदारियां खत्म कर दीं, तो यह बसपा के अस्तित्व पर संकट के रूप में देखा गया। इसे मायावती का आत्मघाती कदम कहा जा रहा है? उनका यह कदम कई सवाल खड़े कर रहा है। यूपी को इस समय मजबूत दलित नेतृत्व की जरूरत है लेकिन मायावती उस तरफ बढ़ने की बजाय कुछ और कर रही हैं। 

आकाश आनंद विदेश से एमबीए की डिग्री लेकर आये हैं। उनमें मायावती के उत्तराधिकारी के रूप में मजबूत संभावनायें देखी गईं। बीएसपी कार्यकर्ता भी आकाश को पसंद करने लगे थे, लेकिन ठीक उसी समय मायावती ने भतीजे को ठिकाने लगा दिया। 
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आकाश आनंद को क्यों हटाया

मायावती ने रविवार को अपने बयान में आकाश आनंद के ससुर अशोक सिद्धार्थ पर पार्टी के भीतर गुटबाजी करके विभाजन पैदा करने का आरोप लगाया था। मायावती ने कहा है कि इससे बीएसपी की संगठनात्मक ताक़त कमजोर हुई। उन्होंने पार्टी को कमजोर करने के उनके प्रयासों के उदाहरण के रूप में उनके बेटे की शादी के आसपास की घटनाओं सहित हाल की घटनाओं का हवाला दिया है। उन्होंने कहा कि यह अस्वीकार्य था और इसी के कारण उन्हें पार्टी से निकाला गया।
मायावती ने कहा था कि आकाश आनंद को हटाना ज़रूरी था, क्योंकि उनके ससुर का उन पर बहुत प्रभाव था। उन्होंने कहा कि सिद्धार्थ के कार्यों ने आनंद के राजनीतिक नजरिये को इस तरह से प्रभावित करना शुरू कर दिया था जो पार्टी के सर्वोत्तम हित में नहीं था। सिद्धार्थ को पूरी तरह से जिम्मेदार ठहराते हुए उन्होंने दावा किया कि उन्होंने न केवल बीएसपी को नुकसान पहुंचाया, बल्कि आकाश आनंद के राजनीतिक करियर को भी पटरी से उतार दिया। हालांकि मायावती ने पार्टी के सर्वोत्तम हितों को नहीं बताया। अलबत्ता आकाश आनंद ने बीजेपी और पीएम मोदी के खिलाफ कई बयान दिये थे जो बीएसपी के युवा काडर में चर्चा का विषय थे। आकाश के बयानों को आलाकमान यानी मायावती पसंद नहीं कर रही थीं।
मायावती के एक समय के उत्तराधिकारी का भविष्य अनिश्चित है, क्योंकि उन्हें लगातार दूसरी बार हटाया गया है। हालांकि, बीएसपी के कुछ नेता उम्मीद कर रहे हैं कि आकाश वापसी करेंगे। पार्टी में महत्वपूर्ण पद हासिल करेंगे। क्योंकि बीएसपी को भी दलित युवाओं को आकर्षित करने के लिए एक युवा नेता की जरूरत है। लेकिन ये बातें कहने के लिए तो अच्छी हैं। लेकिन पार्टी में जिस तरह से गिरावट लगातार आ रही है, वो किसी युवा नेता को पद देने से जीवित नहीं होने वाली।
पार्टी वर्षों से लगातार गिरावट का सामना कर रही है। उसका वोट प्रतिशत धीरे-धीरे कम हो रहा है। पिछले साल लोकसभा चुनाव में पार्टी 488 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद एक भी सीट जीतने में नाकाम रही, जिसमें उत्तर प्रदेश की 79 सीटें भी शामिल थीं। यह 2014 के प्रदर्शन का दोहराव था। पार्टी का वोट शेयर राष्ट्रीय स्तर पर 2.04% और उत्तर प्रदेश में 9.39% तक गिर गया। बीएसपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में एसपी और आरएलडी के साथ गठबंधन कर उत्तर प्रदेश में 10 सीटें जीती थीं। यूपी विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने 2022 में सिर्फ एक सीट जीती। इसके अलावा, इसका वोट शेयर 2017 के 22.23% से गिरकर 12.88% हो गया। 2017 में उसने 19 सीटें जीती थीं।
बड़ा सवाल क्या हैबीएसपी दलित युवाओं को अपने पक्ष में कैसे लाएगी। यह बड़ा सवाल है। जिनमें से एक बड़ा हिस्सा पार्टी से मोहभंग होकर आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के चंद्रशेखर आजाद जैसे नेताओं की ओर आकर्षित हुआ है। क्या आकाश को हटाने के बाद क्या मायावती खुद पार्टी में अधिक सक्रिय भूमिका निभाएंगी? यह पार्टी के हर व्यक्ति के मन में बड़ा सवाल है। मायावती ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले आकाश को मीडिया में इंटरव्यू देने और राजस्थान में यात्रा (2023 के विधानसभा चुनाव से पहले) और मध्य प्रदेश (2023) तथा दिल्ली (2024) में मार्च आयोजित करने की अनुमति दी थी। क्या पूर्व उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री के रूप में वह सड़कों पर उतरेंगी, रैलियों और सार्वजनिक सभाओं को संबोधित करेंगी? अगर उन्हें कार्यकर्ताओं को प्रेरित करना है और आगामी चुनावी लड़ाई में उन्हें दिशा देनी है, तो शायद उन्हें ऐसा करना पड़े। उत्तर प्रदेश में 2027 में चुनाव होने हैं। लेकिन मायावती ने यह काम 2022 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में क्यों नहीं किया।
आकाश के खिलाफ कार्रवाई करते हुए मायावती ने पार्टी के संस्थापक और अपने गुरु कांशीराम की विरासत का हवाला दिया। जिन्होंने पंजाब में एक चुनाव के दौरान अपनी बहन और भतीजी के खिलाफ भी कार्रवाई की थी। लेकिन कांशीराम की बहन और भतीजी आकाश आनंद जैसे तेवर वाली नहीं थी। उस समय की राजनीतिक स्थिति में और आज बहुत बड़ा फर्क है।
मायावती की आकाश के खिलाफ कार्रवाई कुछ मौकों पर अजीबोगरीब रही। मई 2023 में आकाश आनंद ने यूपी के सीतापुर रैली में सिर्फ यह कहा था कि बीजेपी आतंकियों की पार्टी है। मायावती ने अगले दिन ही आकाश को बीएसपी के राष्ट्रीय समन्वयक पद से बर्खास्त कर दिया। ध्यान दीजिए उन्होंने आकाश को हटान हीं, बर्खास्त किया। लेकिन एक महीने के अंदर जब पार्टी कार्यकर्ताओं ने उन्हें फीडबैक दी कि आकाश के भाषण दलित युवकों में पसंद किये जा रहे थे तो मायावती फिर से आकाश को वापस लाईं। 
मायावती के उस एक्शन के बारे में आज भी कहा जाता है कि उन्होंने बीजेपी के दबाव पर आकाश पर कार्रवाई की थी। मायावती के इस एक्शन ने उन्हें बीजेपी के इशारे पर काम करने वाली छवि के रूप में और पुख्ता कर दिया। कई विपक्षी दलों का आरोप है कि मायावती की वजह से ही बीजेपी ने यूपी में दलितों का रास्ता बनाया। वो तमाम राज्यों में बीएसपी को चुनाव लड़ाने पहुंच जाती हैं, जिसका फायदा बीजेपी को मिलता है।

कांशीराम की विरासत किसके पास

कहा जा रहा है कि इस एक्शन से मायावती ने दलितों को एक संदेश दिया है कि वह कांशीराम की विरासत की सच्ची उत्तराधिकारी हैं। और पार्टी को बचाने के लिए उन्हें अपने परिवार के लोगों पर भी कार्रवाई करनी पड़े तो करेंगी। लेकिन नगीना के सांसद चंद्रशेखर आजाद, जो दलित युवाओं के बीच बहुत ज्यादा लोकप्रिय हैं, एक और नेता हैं जिन्होंने खुद को कांशीराम की राजनीतिक विरासत का उत्तराधिकारी बताया है। वे अक्सर बीएसपी संस्थापक का हवाला देते हैं और उनकी तस्वीरों और बयानों का इस्तेमाल करते हैं। 
समाजवादी पार्टी, जो अपने वोट बेस को बढ़ाने और "मुस्लिम-यादव" पार्टी की छवि से बाहर निकलने की कोशिश कर रही है, ने भी कांशीराम की जयंती और पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि देकर दलितों को जोड़ने की कोशिश की है। 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को दलित वोटों के एक बड़े हिस्से के अपनी ओर आने से काफी फायदा हुआ और वह उत्तर प्रदेश में 37 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी भी है।

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मायावती ने सिर्फ आकाश आनंद पर कार्रवाई करके, पार्टी से एक युवा नेता को दूर किया है, इससे पहले भी उनके एक्शन अजीबोगरीब रहे। बीएसपी से स्वामी प्रसाद मौर्य जो एक समय मायावती के सबसे नजदीकी लोगों में थे, उन्हें मायावती ने पार्टी से निकाला। नसीमुद्दीन सिद्दिकी जो पार्टी का फंड संभालते थे, उन्हें आरोप लगाकर हटाया। इमरान मसूद को वो पार्टी में लाईं लेकिन मायावती ने इमरान मसूद पर मात्र अनुशासनहीनता तोड़ने का आरोप लगाकर निकाल दिया। पूर्वांचल के दलित नेता आर.के. चौधरी को भी पार्टी से चलता किया गया। मायावती ने गुड्डू जमाली को आजमगढ़ से खड़ा किया, ताकि वहां से सपा हार जाये। चुनाव के बाद जमाली खुद सपा में चले गये। ये सिर्फ नाम भर नहीं हैं बल्कि अपने-अपने क्षेत्र में बीएसपी की राजनीतिक को ऊंचाई पर ले जाने वाले लोग हैं। 
(रिपोर्ट और संपादनः यूसुफ किरमानी)
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