बिहार में तमाम राजनीतिक घटनाक्रम के बीच इंडिया गठबंधन के नेताओं ने आगामी लोकसभा चुनावों में सत्तारूढ़ भाजपा को हराने की जरूरत पर जोर दिया। इंडिया गठबंधन के कुछ घटक दलों - कांग्रेस, डीएमके, वाम दलों और विदुथलाई चिरुथिगाल काची के शीर्ष नेताओं ने "लोकतंत्र जीतेगा" सम्मेलन में विपक्षी एकता को वक्त की जरूरत बताया। हालांकि टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी बिहार के घटनाक्रम पर कुछ और ही राय रखती हैं।
टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी का मानना है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का इंडिया गठबंधन से बाहर जाना विपक्षी गठबंधन के लिए "अच्छा छुटकारा" होगा। ममता बनर्जी के एक करीबी सूत्र ने शुक्रवार शाम को द टेलीग्राफ से उनके हवाले से कहा। इस सूत्र ने शुक्रवार को राजभवन में पत्रकारों और करीबी सहयोगियों के साथ तृणमूल प्रमुख की ऑफ-द-रिकॉर्ड चर्चा का हवाला देते हुए कहा, “दीदी सोचती हैं कि अगर नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन छोड़ देते हैं, जो अब निश्चित है, तो इससे अच्छा छुटकारा मिल जाएगा।” उसके मुताबिक ममता सोचती हैं कि नीतीश के नेतृत्व वाली सरकार के सामने सत्ता विरोधी लहर के कारण गठबंधन को नुकसान उठाना पड़ता।"
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बंगाल की मुख्यमंत्री ने राज्यपाल द्वारा आयोजित हाई टी में शाम को राजभवन पहुंचीं। सीपीएम के दिग्गज नेता और वाम मोर्चा के अध्यक्ष बिमान बोस इस कार्यक्रम में शामिल हुए, लेकिन भाजपा या कांग्रेस से कोई नहीं आया। राजभवन के लॉन में इंडिया गठबंधन के भविष्य पर सबसे ज्यादा चर्चा गर्म थी। जैसे ही ममता अंदर आईं, उनसे इस बारे में पूछा गया। ममता के हवाले से वहां कहा गया कि “यह आरजेडी-कांग्रेस के लिए नुकसान नहीं होगा (अगर नीतीश बिहार ग्रैंड अलायंस से बाहर निकलते हैं)। अगर वे लोग जेडीयू के साथ गठबंधन में लड़ते, तो उन्हें लोकसभा की 6 या 7 से अधिक सीटें (बिहार की 40 में से) नहीं मिलतीं।
टेलीग्राफ के मुताबिक बंगाल की मुख्यमंत्री के करीबी सूत्रों ने दावा किया कि उन्हें विपक्षी गुट के प्रति नीतीश की प्रतिबद्धता के बारे में हमेशा संदेह था। यही कारण है कि उन्होंने गठबंधन के संयोजक के रूप में उनकी नियुक्ति का विरोध किया था। दीदी के करीबी सूत्र ने कहा- “भाजपा ने नीतीश को इंडिया का संयोजक नियुक्त होने के बाद उन्हें फिर से एनडीए में शामिल करने की योजना बनाई थी। दीदी को इस योजना के बारे में पता था, इसलिए वह संयोजक के रूप में उनकी नियुक्ति का विरोध कर रही थीं।” सूत्र ने कहा- "दीदी की आपत्तियों के कारण नीतीश को संयोजक नहीं बनाया गया... उनके विचारों का दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, शिव सेना (यूबीटी) नेता उद्धव ठाकरे और समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव ने समर्थन किया था।"
विडंबना यह है कि यह ममता और नीतीश के बीच की मुलाकात थी जिसने इंडिया गठबंधन के गठन का रास्ता साफ किया था। जब नीतीश विपक्षी एकता के दौरे पर निकले तो उन्होंने सबसे पहले कोलकाता आकर ममता बनर्जी के साथ बैठक की थी। विपक्षी एकता की पहली बैठक बिहार के मुख्यमंत्री की मेजबानी में पटना में हुई थी।
शुक्रवार शाम जब ममता से पूछा गया कि क्या नीतीश के यू-टर्न से बीजेपी को बड़ा फायदा होगा, तो वो सीधा जवाब देने से बचती रहीं। उन्होंने कथित तौर पर कहा, "स्थिति चाहे जो भी हो, मैं हमेशा बीजेपी से लड़ूंगी।"
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इस बीच डीएमके अध्यक्ष और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन, सीपीएम के सीताराम येचुरी और सीपीआई के डी राजा, और कई अन्य लोगों ने विपक्षी एकता की बातें की। ये लोग एक सम्मेलन में तिरुचिरापल्ली में जुटे थे। यह सम्मेलन बिहार में चल रहे घटनाक्रम के बीच हुआ। विपक्ष में चल रहे मतभेदों के बावजूद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इंडिया गठबंधन से एकजुट रहने और यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि भाजपा के खिलाफ वोट विभाजित न हों।
शुक्रवार को तिरुचिरापल्ली में एक कार्यक्रम में एमके स्टालिन ने कहा कि हर किसी का एक लक्ष्य होना चाहिए कि बीजेपी को दोबारा सत्ता में न आने दिया जाए। बीजेपी के खिलाफ वोट बंटने नहीं चाहिए।
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