समकालीन दौर आधुनिक भारतीय राजनीति का एक ऐसा दौर है जहाँ निगाहें जाती हैं, दूर तलक गुबार ही गुबार है। लोकतंत्र सामूहिकता के उत्सव से फिसल कर कब व्यक्ति के आभामंडल की विषय वस्तु बन बैठा, हमें ठीक से पता ही नहीं चलाI ठीक ऐसे वक़्त यह आवश्यक है कि गुबार और धुंध के बादलों के बीच समकालीन राजनीति की उन प्राथमिकताओं को लोकजीवन में वापस लाया जाएँ जिन्हें बिसरा देने की सफल कोशिश लगातार हो रही है I संभवतः छह दशक पूर्व राष्ट्र कवि दिनकर जी ने लिखा था: