प्रिय जवाहरलाल जी, सालगिरह बहुत-बहुत मुबारक। बीते छह-सात वर्षों से आपके जन्म दिवस या पुण्यतिथि पर आपको लगातार लिखता रहा हूँ। लगातार लिखने के पीछे एक मकसद यह भी रहा कि आप जिस मुल्क और जहां के लोगों से बेपनाह मुहब्बत करते थे, वहां की बदली-बदली सी आबोहवा के बारे में आपको बताता रहूँ। आपको शायद संविधान सभा में प्रस्तुत अपना उद्देश्य-संकल्प (ऑब्जेक्टिव रेजोल्यूशन) याद हो जिसकी बुनियाद पर आप और आपके साथियों ने ‘विशाल हृदय हिन्दुस्तान’ की संकल्पना रखी। आपने फिज़ा में बंटवारे के संकीर्ण और ज़हरीले दायरों को दरकिनार करते हुए हर व्यक्ति के लिए न्याय की समानता, विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के आधार पर शासन और लोक-व्यवस्था की नींव रखी। आज आप लोगों द्वारा रखी गयी उस ख़ूबसूरत नींव को ही ढहाने की चेष्टा हो रही है। बकौल इकबाल...’न वो ग़ज़नवी में तड़प रही न वो ख़म है ज़ुल्फ़-ए-अयाज़ में।’

जवाहरलाल जी! अच्छा नहीं लगेगा लेकिन कहना ज़रूरी है कि आपका प्यारा हिंदुस्तान काफी बदल गया है। अबकी वाली गरम हवा दिनोंदिन और गरम होती जा रही है। तब आप थे, सरदार थे, आज़ाद थे, लोहिया और जेपी भी थे और बाबा साहेब भी, इसलिए उस गरम हवा के प्रभाव को आप लोगों ने रोक लिया। आज दूर-दूर तक इस गरम हवा के ख़िलाफ़ लड़ना तो छोड़िये, बोलना भी लोग ज़रूरी नहीं समझते।