इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है कि चुनाव तो पांच राज्यों में हो रहे हैं और चर्चा सारी उत्तर प्रदेश ही लिए जा रहा है। इस हिसाब से प्रियंका की महिला वाली पहल चर्चा पाती है या अखिलेश यादव की रैलियों में उमड़ी भीड़। प्रियंका की बातें मतदाताओं पर क्या असर डालेगी, यह तो दो महीने बाद पता चलेगा।
रोज बदलते यूपी के परिदृश्य में क्या अखिलेश किंग बन पायेंगे?
- राजनीति
- |
- |
- 18 Jan, 2022

अखिलेश और सपा जिस तरह से उठ खडे़े हुए हैं, बीजेपी की सब तैयारियां बेअसर लगने लगी हैं और बड़ी तेजी से चुनाव सीधे मुकाबले में बदल गया है। प्रियंका के महिला कार्ड का असर भी उम्मीद से बेहतर हुआ पर वह चुनावी भूमिका निभाएगा यह कहना मुश्किल है। बहन जी वैसे ही मैदान छोड़ती लग रही हैं तो सम्भव है मतदान के दिन तक ज्यादातर दलित मतदाता भी उनका साथ छोड़ दें।
नरेन्द्र मोदी की उत्तर प्रदेश की हर यात्रा चुनाव को ध्यान में रखकर बनी तब चर्चा हुई, चुनाव घोषणा में भाजपा के लाभ की स्थिति रखी गई तब चर्चा हुई, अखिलेश की रैलियों ने मोदी-शाह की सारी तैयारियों को न केवल बैकफुट पर धकेला बल्कि की लड़ाई को चतुष्कोणीय की जगह सीधी बना दी।
और जब भाजपाई खेमा ही नहीं कई राजनैतिक पंडित भी यादववाद का आरोप लगाने लगे तो उसने स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिन्ह चौहान और धर्मपाल सैनी जैसे पिछड़े नेताओं के दलबदल से चुनावी तसवीर ही बदल दी। इससे न सिर्फ यादववाद का आरोप गायब हुआ बल्कि भाजपा के पास गैर-यादव पिछड़ा वोट का ठोस आधार होने का मिथ भी टूटा।