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फ़ोटो साभार: ट्विटर/योगी आदित्यनाथ

योगी के कंधे पर मोदी के हाथ रखने वाली तसवीर क्यों जारी की गईं?

क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेस के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए सबकुछ सामान्य हो गया है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनके संबंधों को लेकर कई महीनों से जो अटकलें चल रही थीं उनपर रविवार की दो फोटो से न सिर्फ़ विराम लग गया बल्कि नेतृत्व का मुद्दा भी फ़िलहाल निपट गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन से लखनऊ में थे। वे राज्यों के डीजीपी और आईजी के सम्मेलन में शामिल हुए और यूपी के राजनैतिक हालात का भी जायजा लिया। उन्होंने योगी आदित्यनाथ से चुनावी माहौल पर लंबी बातचीत की। इसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट किया, 'हम निकल पड़े हैं प्रण करके, अपना तन-मन अर्पण करके, ज़िद है एक सूर्य उगाना है, अम्बर से ऊँचा जाना है, एक भारत नया बनाना है।'

इस ट्वीट से यूपी में बीजेपी की अंदरूनी राजनीति को भी समझा जा सकता है।

याद होगा कि कुछ समय पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले तो उसके बाद एक फोटो जारी हुई थी। इस फोटो में बड़ी सी मेज के एक छोर पर मोदी थे तो दूसरे छोर पर योगी। यूपी जैसे बड़े सूबे के मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के बीच किसी बातचीत में इतनी दूरी पहले नहीं दिखी थी। कहने को तो कोरोना प्रोटोकॉल का तर्क भी दिया जा सकता है पर उसी दौर में मोदी अन्य लोगों से काफी गर्मजोशी से भी मिले थे।

दरअसल, यह वह दौर था जब दिल्ली से भेजे गए नौकरशाह और मोदी के क़रीबी रहे अरविंद शर्मा को लेकर यूपी की राजनीति गरमाई हुई थी। योगी ने अरविंद शर्मा को वह महत्व नहीं दिया जो दिल्ली चाहता था। दरअसल, योगी को यह लगा कि अरविंद शर्मा को यूपी में सत्ता का नया केंद्र बनाया जा रहा है। इसमें खुद अरविंद शर्मा का भी कम योगदान नहीं रहा। और जो कसर बाक़ी थी उसे मीडिया और सोशल मीडिया ने पूरी कर दी। 

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तरह-तरह की ख़बरें चलीं। अरविंद शर्मा को मुख्यमंत्री आवास के बगल वाली कोठी एमएलसी होने के नाते दी जाएगी,उन्हें महत्वपूर्ण मंत्री पद दिया जाएगा, नौकरशाह उन्हें रिपोर्ट करेंगे आदि आदि। ऐसे में योगी का भड़कना स्वभाविक था। नतीजा यह हुआ कि योगी ने अरविंद शर्मा को भाव ही नहीं दिया और न ही मंत्रिमंडल में कोई जगह दी। 

योगी और मोदी के बीच खटास की मुख्य वजह यही मानी गई। पर मजबूरी यह थी कि दिल्ली योगी को छेड़ने का जोखिम भी नहीं ले सकती थी। वे कोई गुजरात और उतराखंड जैसे राज्य के मुख्यमंत्री तो हैं नहीं। वे पूर्वांचाल के ताक़तवर हिंदू नेता रहे हैं और संघ उन्हें देश भर में हिंदू चेहरे के रूप में पेश कर चुका है। यूपी की जातीय राजनीति में भी वे राजपूतों के शीर्ष नेता माने जाते हैं। 

संघ किसी क़ीमत पर योगी को नाराज़ नहीं करना चाहता है। दूसरे उनकी नाराज़गी से विधानसभा चुनाव तो चौपट होता ही चौबीस में मोदी का दिल्ली का रास्ता भी बंद हो जाता। इसी सब को देखते हुए मोदी को यह संदेश देना था कि वे योगी के साथ हैं।
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रविवार को योगी और मोदी की जो फोटो आई वह पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने वाली थी। संगठन को भी इससे काफी मदद मिलेगी। यही वजह है कि योगी ने ही नहीं, पीएम नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की फोटो को यूपी बीजेपी के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने भी ट्वीट किया। उन्होंने फोटो के कैप्शन में लिखा, 'प्रचण्ड विजय की ओर बढ़ते क़दम। हालाँकि विपक्षी दल के नेता अखिलेश यादव ने इस फोटो पर तंज करने का मौका नहीं छोड़ा। दो दिन पहले जब एक्सप्रेस वे उद्घाटन के मौक़े पर मोदी की गाड़ी के पीछे चलते हुए योगी आदित्यनाथ की फोटो वायरल हुई थी तो भी अखिलेश यादव ने इसपर चुटकी ली थी। 

बहरहाल, मोदी के इस दौरे से यूपी में बीजेपी का अंदरूनी विवाद कुछ हद तक शांत होता नज़र आ रहा है जिसमें बड़ी भूमिका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रही है।
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अंबरीश कुमार
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