आपदाएं मुसीबत और दहशत तो लाती ही हैं, बड़े बदलाव भी लाती हैं। ये बदलाव मनुष्य के लिए सकारात्मक भी हो सकते हैं और नकारात्मक भी। लेकिन इतना तो तय है कि कोरोना वायरस की आपदा गुजर जाने के बाद जीवन पहले जैसा नहीं रह जाएगा।
इस आपदा से निबटने के लिए उठाए गए छोटे-मोटे क़दम भी हमारी आदतों में शुमार हो जाएंगे। लेन-देन काफी हद तक डिजिटल हो जाएगा। शिक्षण-पद्धति, सरकारी कामकाज, व्यापार करने के तौर-तरीके व नौकरी-चाकरी के ढंग भी बदलेंगे। इन्हीं में से एक अमल है- वर्क फ्रॉम होम यानी घर से काम करना।
यूं तो वर्क फ्रॉम होम कार्यशैली के चिह्न मनुष्य के गुफा-युग में भी तलाशे जा सकते हैं। मध्य युग में वर्किंग क्लास ऐसे मकानों में रहता था जिनमें किचन और बेडरूम के साथ कताई, बुनाई, सिलाई या गोश्त, सब्जी और डेयरी की दुकानें इससे सटी होती थीं।
आगे चलकर मुख्य सड़क पर ऑफ़िस, दुकान और उसी के पीछे घर बनाने का प्रचलन यूरोप में खूब हुआ। यह भी एक किस्म का वर्क फ्रॉम होम ही था। औद्योगिक क्रांति ने मजदूर को घर से निकाल कर मिलों और फैक्ट्रियों में काम करने को मजबूर कर दिया।
आधुनिक दौर में कलाकर्मियों, चित्रकारों, लेखकों, कवियों ने वर्क फ्रॉम होम को अपनाया जबकि मजदूर वर्ग के लिए यह व्यावहारिक नहीं था। आज भी क्रिएटिव राइटिंग, एडिटिंग, ग्राफिक डिजाइनिंग, फैशन और ब्यूटी, एंटरटेनमेंट और मीडिया से जुड़े काम पूरी तरह से घर बैठे किए जा सकते हैं, लेकिन ऑफिस को अपना अभेद्य दुर्ग समझने वाले बॉसेस को यह बात हजम नहीं होती। हालांकि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उदय और वर्किंग स्पेस की तंगी के चलते अमेरिका और यूरोपीय देशों में वर्क फ्रॉम होम नब्बे के दशक से ही प्रचलन में आ गया था।
यूं तो भारत के लिए फ्रीलांसिंग शब्द अपरिचित नहीं है। पिछले दशकों में विकसित हुई इंटरनेट, इलेक्ट्रॉनिक एवं डिजिटल तकनीक ने इसमें होने वाली दौड़-धूप को काफी समेट दिया है। इसके बावजूद फ्रीलांसिंग में बहुत सारा फील्ड वर्क शामिल होता है। इसके उलट अब हम देख रहे हैं कि रोजाना ऑफिस जाकर नियमित काम करने वाले भी कोरोना काल में घर बैठ कर काम कर रहे हैं।
गूगल और अमेज़न जैसी मल्टीनेशनल कंपनियों ने कोरोना का प्रकोप शुरू होते ही वर्क फ्रॉम होम को अपना लिया था और अब भारत में भी कई टेक्नोलॉजी कंपनियां, मीडिया समूह और सरकारी उपक्रम अपने कर्मचारियों से वर्क फ्रॉम होम करा रहे हैं।
मुझे एक किस्सा याद आता है। एक शीर्ष टेलीकॉम कंपनी में सन 2000 के दौरान हिंदी कंटेंट एडिटर का काम संभालते हुए 2006 में मैंने स्वास्थ्य कारणों से वर्क फ्रॉम होम की अनुमति मांगी थी, जिसमें मैंने ज्यादा घंटे काम करने और बेहतर आउटपुट देने का लिखित वादा किया था। लेकिन पॉलिसी डिसीजन की आड़ में मेरी मांग को नामंजूर कर दिया गया। आखिरकार 2010 में मुझे कंपनी से इस्तीफा देना पड़ा।
यानी पीड़ा के उन चार सालों में मैंने सारी ऊर्जा हर गुजरते मौसम के साथ किसी तरह दफ्तर पहुंचने में खर्च कर दी और इससे कंपनी का क्या भला हुआ, कह नहीं सकता। एक वो दिन थे और एक आज का दिन है कि कोरोना संकट में खुद कंपनियां अपने कर्मचारियों को वर्क फ्रॉम होम के लिए मना रही हैं!
वर्क फ्रॉम होम का यह सिलसिला अब रुकने वाला नहीं है, क्योंकि इसमें काम के घंटों का लचीलापन है और कर्मचारी को ऑफिस की औपचारिकताओं से मुक्त होकर काम करने में कठिनाई भी नहीं होती।
लेकिन वर्क फ्रॉम होम इतना आसान भी नहीं है। मेरा इस फील्ड में अब लगभग दस साल का अनुभव हो चला है। मैं इसे बिंदुवार आपसे साझा कर रहा हूं :-
घर पर ऑफिस जैसा माहौल
ऐसा माहौल बनाएं, जो आपको काम करने की प्रेरणा दे। ऐसा अहसास हो कि आप अपने ऑफिस में ही हैं। कम्प्यूटर के अलावा आपके डेस्क पर पेन, पेपर और वे तमाम चीजें मौजूद हों, जिनकी आपको बार-बार आवश्यकता पड़ती हो। घर को खाला का घर न समझें!
अनुशासन बनाए रखें और स्वयं उत्साहित रहें
कोई भी काम निश्चित समय पर खत्म करने का संकल्प करें। खुद को भरोसा दिलाएं कि इसमें कोई भी रियायत नहीं चलेगी। घर पर भी अपना लंच और टी टाइम ठीक वही रखें, जो ऑफिस में होता है।
हर आधे घंटे में दर्ज करें काम का रिकॉर्ड
कम्प्यूटर या कागज पर इस संबंध में एक छोटा-सा नोट, एक छोटी-सी लिस्ट मौजूद होनी चाहिए कि कौन-सा काम पूरा कर लिया गया है, क्या-क्या पेन्डिंग है और आप ऐसा क्या कर सकते हैं, जिसका भले ही आदेश नहीं दिया गया हो मगर ऑफिस के लिए वह काम उपयोगी साबित हो सकता है। वर्क फ्रॉम होम का मतलब सिर्फ आदेश का पालन करना नहीं होता।
परिजनों का सहयोग लें
घर पर और भी लोग होते हैं। कुछ शांत, कुछ बातचीत में रुचि रखने वाले और कुछ आगंतुक भी होते हैं। इन सभी को समझाएं कि आपको शांति, उचित माहौल और प्राइवेसी क्यों चाहिए।
ऑफिस जैसे कपड़े पहनें
नाइट ड्रेस में, बिना नहाए या बिना सजे-धजे अगर आप काम करने बैठेंगे, तो बात नहीं बनेगी। मन में ऐसा ही लगता रहेगा कि आपका दिन बड़ा बोरिंग, सुस्त और धीमा है। आपको ठीक उसी तरह तैयार होना है, मानो आप अपने ऑफिस में काम करने जा रहे हैं।
काम के घंटों में संतुलन बनाएं
आप अपने दिन को 90-90 मिनट के हिस्सों में बांट लीजिए, क्योंकि बीच-बीच में छोटा-सा ब्रेक आपके बड़े काम आएगा। आपके हर ब्रेक की जानकारी आपके उन साथियों को, क्लाइंट्स को भी होनी चाहिए, जिनके साथ आप काम का को-ऑर्डिनेशन कर रहे हैं।
चुनौतीपूर्ण काम का समय चुनें
पूरे दिन काम का फ्लो एक जैसा नहीं हो सकता। आपको दिन में बेस्ट और आउटस्टेन्डिंग परफॉर्मेंस देने वाला अपना खास समय-बिंदु पता करना होता है और फिर कठिन काम को पूरा करने में उस समय-बिंदु का उपयोग करना होता है।
साथियों से सतत संपर्क रखें
आप कब क्या कर रहे हैं, इस बात की जानकारी आपके साथियों को होनी अनिवार्य है। इसके अभाव में पूरी वर्क चेन टूट सकती है। काम का डुप्लिकेशन भी हो सकता है और इससे मनमुटाव भी हो सकता है। ऐसी हर नेगेटिविटी को टालने के लिए साथियों अथवा क्लाइंट्स के साथ ई-मेल, वॉट्सऐप, कॉल्स और अन्य माध्यमों से सतत संपर्क बनाए रखें।
सुबह-शाम, दिल से काम
न खुद को और न किसी और को ऐसा प्रतीत होने दें कि आप अच्छी तरह काम नहीं कर रहे हैं या कर नहीं पा रहे हैं। किसी बोझ की तरह नहीं बस दिल लगाकर काम कीजिए।
वर्क फ्रॉम होम अगर भारत में कारोबारों की सफलता और कर्मचारियों की सहूलियत का एक ठोस जरिया बनता है तो केंद्र सरकार और उसके श्रम मंत्रालय को इसके नियम और शर्तें, वेतनमान निर्धारण, काम के घंटे, कर्मचारी कल्याण निधि व पेंशन व अधिकारों से संबंधित दिशा-निर्देश जारी करने पड़ेंगे। हालांकि फिलहाल वह दूर की कौड़ी है।
अपनी राय बतायें