इतिहास गवाह है कि एक कट्टर और रूढ़िवादी भारतीय समाज में हिंदू और मुसलिम महिलाएँ 1857 के पहले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से पहले बड़े पैमाने पर सड़कों पर कभी नहीं उतरी थीं। और अब हमारी आँखों के सामने इतिहास बन रहा है। धार्मिक भेदभाव को हवा देने वाले नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी के विरोध में करोड़ों भारतीय नागरिकों के साथ हिंदू-मुसलिम महिलाएँ कंधे से कंधा मिलाकर देशव्यापी आंदोलन कर रही हैं। कोलकाता में पिछले हफ़्ते एक युवती ने अपने हाथ में जो तख्ती थाम रखी थी, उस पर लिखा संदेश वर्तमान संदर्भों में बेहद मानीखेज है- ‘मेरे पिता जी को लगता है कि मैं इतिहास की पढ़ाई कर रही हूँ; वे नहीं जानते कि मैं इतिहास रचने में मुब्तिला हूँ।’