पूर्णिमा दास
बीजेपी - जमशेदपुर पूर्व
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पूर्णिमा दास
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कल्पना सोरेन
जेएमएम - गांडेय
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आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद आम आदमी पार्टी पूर्ण आंदोलन पर उतर आई है। पार्टी के तमाम नेता अपनी-अपनी वफादारी दिखाने के लिए सड़कों पर उतर गये। हर दिन धरना और प्रदर्शन। तरह-तरह की बयानबाजी और बहस। केन्द्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। दोनों ही अपने-अपने ढंग से इस गिरफ्तारी की व्याख्या कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी की पूरी कोशिश है कि केजरीवाल को जनता के बीच निर्दोष दिखाया जाए। इसके लिए वह विक्टिम कार्ड भी खेल रही है क्योंकि केजरीवाल इस खेल के बहुत बड़े खिलाड़ी हैं।
उनकी पत्नी पूर्व आईआरएस सुनीता भी मैदान में उतरकर अपने पति के लिए जनता से समर्थन-सहानुभूति मांग रही हैं। उन्हें लग रहा है कि ऐसे प्रयास से जनता बड़ी संख्या में उनके साथ हो जाएगी और केजरीवाल को पूरी सहानुभूति मिल जायेगी जिसका उन्हें लाभ भी मिलेगा। लेकिन एक बात साफ रही कि केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद जनता सड़कों पर नहीं उतरी। पार्टी को उम्मीद थी कि लोग गुस्से में आ जायेंगे लेकिन कहीं भी आक्रोशित जनता दिखाई नहीं दे रही है। अरविंद केजरीवाल के लिए जनता में अतिरिक्त सहानुभूति नहीं दिख रही है। हाँ, यह बात जरूर कही जाती रही कि होली के समय उन्हें गिरफ्तार क्यों किया गया। लेकिन अब होली का त्यौहार भी खत्म हो गया है और लोग अपने काम-धंधे में व्यस्त हो गये हैं। सोशल मीडिया के इस जमाने में किसी की राय बदलना बेहद कठिन है और यहां भी ऐसा हो रहा है।
लोगों की राय बदलती नहीं दिख रही है। केजरीवाल के वोटर अमूमन वो लोग हैं जिन्हें मुफ्त बिजली, पानी, बस यात्रा करने को मिलती है। यह तबका बहुत बड़ा है और दिल्ली की झुग्गी-झोपड़ियों, पुनर्वास कॉलोनियों से लेकर मुहल्लों तक रहता है। इनमें मुसलमानों की बड़ी तादाद है और वे कई निर्वाचन क्षेत्रों में किसी भी पार्टी को जिताने की क्षमता रखते हैं। केजरीवाल की पार्टी को लगा था कि वे सब के सब सामने आ जायेंगे और उनके लिए कोहराम मचा देंगे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। सिर्फ वही लोग निकले जिन्हें विधायक वगैरह अपने साथ ले गये थे। यानी स्वाभाविक तौर पर आक्रोश जैसा फैक्टर दिखाई नहीं दे रहा है।
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधान सभा चुनाव में लगातार तीन बार कांग्रेस को परास्त किया था और उसका मनोबल तोड़ दिया था लेकिन यहां हुए समझौते तथा कुछ वरिष्ठ नेताओं की राजनीतिक सक्रियता से पार्टी फिर से सुर्खियों में लौटने लगी है। केजरीवाल ने कांग्रेस को दिल्ली में तो तीन सीटें दीं लेकिन पंजाब में कोई समझौता नहीं हुआ। मुख्यमंत्री की इस रहमदिली के पीछे कारण यह था कि कांग्रेस ने दिल्ली के मामले में संसद में उनका साथ दिया था। उनकी गिरफ्तारी पर भी कड़ा विरोध जताया था। लेकिन राजधानी में रविवार को हुई ‘इंडिया’ गठबंधन की लोकतंत्र बचाओ रैली में कांग्रेस ने केजरीवाल की गिरफ्तारी से पल्ला झाड़ लिया। पार्टी की ओर से खुले तौर पर कहा गया कि इस रैली का मक़सद सिर्फ संविधान और लोकतंत्र को बचाने पर जोर देना है, न कि किसी एक नेता को। केजरीवाल और उनकी पत्नी सुनीता को पूरी उम्मीद थी कि सभी विपक्षी नेता उनके बारे में बोलेंगे लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। इस इवेंट में कांग्रेस ने अपने पत्ते बहुत संभाल कर खेले जिससे यह स्पष्ट हो गया कि पार्टी दिल्ली में अपने को कहीं न कहीं मजबूत पा रही है।
कांग्रेसी नेता यह जानते हैं कि ज्यादातर कार्यकर्ता कभी कांग्रेस के समर्थक होते थे और पुनर्वास कॉलोनियों तथा अन्य बस्तियों में रहते थे।
सच तो यह है कि केजरीवाल की छवि अब पहले वाली नहीं रही। इंडिया अगेंस्ट करप्शन के आंदोलन से निकले एक्टिविस्ट केजरीवाल ने उस समय धूम मचा दी थी और भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध उनके कड़वे वचन लोगों को बहुत भाने लगे थे जिसका भरपूर लाभ उन्हें विधानसभा चुनाव में मिला। लेकिन वक्त बीतने के साथ दिल्ली में भ्रष्टाचार फिर से बढ़ने लगा और कई विभाग तो निकम्मे साबित होने लगे जिसका ठीकरा केजरीवाल एलजी पर फोड़ते रहे। लेकिन उनकी लोकप्रियता में कमी आती ही गई।
एक बात और हुई कि जनता और मुख्यमंत्री के बीच दूरियाँ बढ़ती चली गईं। शुरुआती दौर में केजरीवाल दिल्ली के लोगों से कहते थे कि यहां हर काम जनता के सुझाव पर होगा। इसके लिए मोहल्ला कमिटियाँ बनाई जाएँगी, बजट पास करने के लिए सभी से सुझाव लिये जायेंगे, हर महत्वपूर्ण काम के लिए जनता का सर्वे किया जायेगा और हर विधायक जनता के सीधे संपर्क में रहेगा। लेकिन यह सब थोड़े दिनों में ख़त्म हो गया। जनता से कनेक्ट रहने की बात ख़त्म हो गई। इसके विपरीत कांग्रेसी नेता अपने लोगों से मिलते-जुलते रहे और अपने कार्यकर्ताओं को फिर से जगाने की कोशिश करते रहे हैं।
आज समय बदल गया है और परिस्थितियाँ भी बदल गई हैं। हर बदलते दिन के साथ नेतृत्व के अभाव में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता घटते जायेंगे। अरविंद केजरीवाल से कहीं ज्यादा कार्यकर्ताओं में मनीष सिसोदिया की पैठ रही है। उनके जेल जाने से भी पूर्वी दिल्ली में पार्टी के कार्यकर्ता निराश हैं। आतिशी प्रेस कांफ्रेंस तो कर सकती हैं लेकिन कार्यकर्ताओं को संगठित नहीं कर सकती।
दिल्ली में कांग्रेस को किसी बड़े नेता की ज़रूरत नहीं है क्योंकि उसके पुराने खिलाड़ी अभी उसके पास हैं जबकि दिल्ली की सातों सीटों पर चुनाव जीतने के लिए भारतीय जनता पार्टी को नरेन्द्र मोदी की ज़रूरत पड़ेगी। यहां के काडर और नेताओं में वह परिपक्वता नहीं है जो कांग्रेसियों के पास है। केजरीवाल के हिरासत में रहने से भारतीय जनता पार्टी को कोई फायदा होता नहीं दिख रहा है। यह ज़रूर है कि उसके वोटर संतुष्ट हैं।
मुस्लिम मतदाता धीरे-धीरे अब कांग्रेस की ओर जाते दिख रहे हैं। एमसीडी के चुनाव में कांग्रेस को ज्यादा सीटें तो नहीं मिली (सिर्फ 9 मिलीं), लेकिन उसके तीन मुस्लिम उम्मीदवार जीते थे। यह ट्रेंड दिल्ली में भी देखने में आ रहा है कि मुस्लिम मतदाता अब कांग्रेस विरोधी नहीं रहे। वह उसे फिर एक मौक़ा देने को तैयार हैं। केजरीवाल के हिरासत में जाने से उन्हें यह लगने लगा है कि दीर्घकाल में कांग्रेस ही उनके लिए बेहतर ऑप्शन है-आम आदमी पार्टी के भविष्य का क्या भरोसा। अगर केजरीवाल लंबे समय तक अंदर रहे तो कांग्रेस को यह अलग किस्म का एडवांटेज मिलेगा और उसकी पकड़ इस वर्ग पर मजबूत होगी।
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