1942 की अगस्त क्रांति के वक़्त दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था, कांग्रेस ने आज़ादी का बिगुल बजाया। भारत आज़ाद हुआ। अब कोरोना के ख़िलाफ़ विश्व में युद्ध चल रहा है। भारत आज़ाद है लेकिन सरकार का लक्ष्य आगामी चुनाव के पहले राम मंदिर निर्माण है, इसलिए तारीख़ चुनी गई 5 अगस्त 2020। बीजेपी और प्रधानमंत्री को यह तारीख़ बहुत पसंद है क्योंकि यह उनके लिए ऐतिहासिक तारीख़ है।
भारत की स्वतंत्रता में अगस्त क्रांति का अपना महत्त्व है। 8 अगस्त 1942 को मुंबई के ग्वालियर टैंक मैदान में भारत छोड़ो आंदोलन को लेकर सभा हुई थी, उसे बाद में 'अगस्त क्रांति' क़रार दिया गया। ऐसा माना जाता है कि अगस्त क्रांति के कारण ही अंग्रेज़ों के जाने का औपचारिक और अंतिम फ़ैसला हो पाया। इस मुद्दे पर बहुत मतभेद भी हैं लेकिन इससे अगस्त क्रांति या भारत छोड़ो आंदोलन का महत्त्व कम नहीं होता। अब 2020 में बीजेपी 'अगस्त क्रांति' कर रही है। गत वर्ष 5 अगस्त 2019 को बीजेपी ने जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 के बारे में निर्णय लिया और अब 5 अगस्त 2020 को अयोध्या में जिस भव्य राम मंदिर का इंतज़ार था, उसका भूमि पूजन किया जाने वाला है। कांग्रेस की अगस्त क्रांति में देश की आज़ादी का संकल्प था और इस बीजेपी की अगस्त क्रांति में हिन्दुओं के वोटों के ध्रुवीकरण का लक्ष्य है।
जब कांग्रेस ने अगस्त क्रांति की थी तब 1942 में दुनिया में दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था और युद्ध की विभीषिका में कई देश तबाह हो रहे थे। 2020 की अगस्त क्रांति में कोरोना के कारण पूरी दुनिया में हाहाकार मचा हुआ है और दुनिया त्राहि-त्राहि कर रही है। बीजेपी चाहती यही थी कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण कार्य अगस्त में शुरू हो और 2024 के चुनाव के पहले पहले बन जाए। लगता है राम जन्म तीर्थ ट्रस्ट ने बीजेपी का काम आसान कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फ़रवरी से ही अयोध्या जाने के लिए इच्छुक थे लेकिन कोरोना के कारण वह नहीं जा पाए। अब 5 अगस्त को अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए पूजा का कार्यक्रम होगा और मंदिर निर्माण विधिवत शुरू हो जाएगा। यह ऐसा मौक़ा है जिसे बीजेपी किसी भी सूरत में गँवाना नहीं चाहती। वह इसका सपना कई दशकों से सजाये हुए थी। यह सपने के ज़मीं पर उतरने के जैसा है उसके लिए।
कोरोना के बावजूद प्रधानमंत्री अयोध्या जाएँगे। वहाँ भूमि पूजन समारोह में हिस्सा लेंगे। उसका लाइव प्रसारण पूरी दुनिया में दिखाया जाएगा और क़रीब 10 करोड़ हिंदू परिवारों को अयोध्या राम मंदिर निर्माण से जुड़ने के लिए धन संग्रह की अपील की जाएगी। जो लोग स्वयं वहाँ उपस्थित होकर सेवा कार्य करना चाहेंगे, भविष्य में उनका स्वागत होगा। वे वहाँ जाकर सेवा कार्य भी कर सकेंगे।
इस तरह बीजेपी 2024 के चुनाव की अपनी पूरी रणनीति बना चुकी है और उस पर अमल करने का काम तो 5 अगस्त 2019 से ही शुरू हो चुका है जब जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के दो उपखंडों को हटा दिया गया था।
साल 1942 की अगस्त क्रांति में जो कांग्रेस थी, वह अलग कांग्रेस थी। उसमें तमाम धाराओं के लोग शामिल थे। उसमें प्रगतिशील मुसलिम भी थे और दक्षिणपंथी भी। वास्तव में भारत पर अंग्रेजों की हुक़ूमत शुरू हुई थी गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट 1858 के माध्यम से जिसमें ईस्ट इंडिया कंपनी को ब्रिटिश राज की तरफ़ से सत्ता संभालने का दायित्व सौंप दिया गया था। वायसराय और गवर्नर जनरल के माध्यम से भारत पर राज़ शुरू हो गया था। राजधानी थी कोलकाता। समय-समय पर अलग-अलग क़ानूनों की मदद से अंग्रेज़ सत्ता संभालते रहे।
1861 में इंडियन काउंसिल एक्ट बना तो उसके माध्यम से भारत पर राज करने की अलग व्यवस्था थी। 1909 में इसमें बदलाव हुआ। 1919 में गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट बना। सरकार में भारतीय सदस्यों की नियुक्ति होने लगी।
शुरुआती सदस्य थे सत्येंद्र प्रसाद सिंहा, पी एस शिवास्वामी अय्यर, सैयद अली, इमाम मोहम्मद शफी, तेज बहादुर सप्रू, सतीश रंजन दास, नितिंद्र नाथ सरकार, बिपिन बिहारी घोष, नलिनी रंजन चटर्जी आदि। बाद में इंडियन काउंसिल में अनेक लोग सदस्य बने और यह प्रक्रिया चलती रही। अंग्रेज़ भारतीयों को सत्ता में मददगार बना रहे थे या सहयोग ले रहे थे!
1942 का अगस्त क्रांति आंदोलन
1942 के अगस्त क्रांति आंदोलन में देश के बहुत से लोग शामिल हुए। हज़ारों लोगों ने गिरफ्तारियाँ दीं। महात्मा गाँधी को गिरफ्तार कर पुणे के आगा ख़ान पैलेस में रखा गया और वे 6 मई 1944 तक बंद रहे। जवाहरलाल नेहरू 9 अगस्त 1942 को गिरफ्तार हुए और 15 जून 1945 तक जेल में रहे। बिहार में क़रीब 15000 लोगों ने गिरफ्तारी दी लेकिन 9 नवंबर 1942 को हज़ारीबाग जेल से जयप्रकाश नारायण, राम नंदन मिश्र, योगेन्द्र शुक्ला, सूरज नारायण सिंह आदि फरार हो गए। जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में नेपाल के तराई में आज़ाद दस्ता बनाया गया जिसमें जयप्रकाश नारायण के अलावा रामकृष्ण बेनीपुरी, बाबू श्यामनंदन, कार्तिक प्रसाद सिंह आदि थे। यह सब अगस्त क्रांति का प्रभाव चल रहा था। उन दिनों की कांग्रेस आज की कांग्रेस जैसी नहीं थी। विश्व युद्ध समाप्त होते होते अंग्रेज़ी हुक़ूमत की हालत ख़राब हो गई थी। अंग्रेज़ों ने भारत छोड़ने का फ़ैसला कर लिया। 26 अक्टूबर 1946 को बनाई गई अंतरिम सरकार में जवाहरलाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल, बलदेव सिंह, जॉन मथाई, राजेंद्र प्रसाद, अशरफ अली, जगजीवनराम आदि थे। लियाकत अली ख़ान, इब्राहिम इस्माइल, जोगेंद्र नाथ मंडल शामिल थे। उस अंतरिम सरकार में तीन अंग्रेज़ थे और 10 कांग्रेस तथा पाँच इंडियन मुसलिम लीग के सदस्य थे।
अगस्त क्रांति के दौर में मोहम्मद अली जिन्ना की मुसलिम लीग ने भारत छोड़ो आंदोलन की आलोचना की थी और अंग्रेज़ों का पूरा साथ दिया था।
कई इतिहासकार मानते हैं कि भले ही गाँधी जी ने 8 अगस्त 1942 को करो या मरो का नारा दिया हो, हज़ारों लोगों ने गिरफ्तारी दी हो लेकिन उससे अंग्रेजों की सेहत पर बहुत फर्क नहीं पड़ा। उनकी सेहत पर फर्क पड़ा दूसरे विश्व युद्ध के कारण जो 1 सितंबर 1939 से शुरू हुआ था और 6 साल 1 दिन तक चला।
आज़ादी के वक़्त गुजरात का वेरावल का इलाक़ा जूनागढ़ राज्य में था। जूनागढ़ के नवाब ने भारत में विलय को अस्वीकार कर दिया था, इस पर गृह मंत्री वल्लभ भाई पटेल ने 12 नवंबर 1947 को सीधी कार्यवाही की। भारतीय सेना भेजी। यह भी आदेश दिया था कि सोमनाथ के मंदिर का पुनर्निर्माण किया जाए। सरदार वल्लभभाई पटेल गृह मंत्री थे और कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री। पटेल और मुंशी दोनों गाँधीजी के पास गए और उन्हें बताया कि सोमनाथ के मंदिर का पुनर्निर्माण हो रहा है। ऐसा कहा जाता है कि गाँधी जी ने मंदिर के निर्माण के लिए अपनी शुभकामनाएँ दी थीं और कहा था कि मंदिर बने तो सरकारी पैसे से नहीं, जनता के चंदे से बने। सोमनाथ के मंदिर का निर्माण शुरू हुआ। कुछ समय बाद गाँधी जी की हत्या हो गई। 1950 के 15 दिसंबर को सरदार वल्लभभाई पटेल भी नहीं रहे। ऐसे में सोमनाथ मंदिर का निर्माण कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी के मार्गदर्शन में हुआ। अक्टूबर 1950 में सोमनाथ मंदिर इलाक़े की मसजिद को कई किलोमीटर दूर शिफ्ट कर दिया गया। मई 1951 में राजेंद्र प्रसाद भारत के पहले राष्ट्रपति को मंदिर के स्थापना समारोह में आमंत्रित किया गया। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को सलाह दी कि वे न जाएँ, लेकिन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद कार्यक्रम में गए और उन्होंने कहा कि विध्वंस की ताक़त से ज़्यादा बड़ी ताक़त निर्माण की ताक़त होती है!
मई 2014 में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनने और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद यह कहा जाने लगा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चार प्रमुख एजेंडे हैं जिन्हें पूरा करने के लिए नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाया गया है।
उनमें से एक है कश्मीर में अनुच्छेद 370 में बदलाव, दूसरा है अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण, तीसरा है तीन तलाक़ क़ानून को बदलना और चौथा है समान नागरिक संहिता। इन चारों में से तीन पूरे होने जा रहे हैं।
विगत 5 अगस्त 2019 को जब जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 में बदलाव किया गया और एक ही दिन में उस पर संसद में प्रस्ताव भी पारित हो गया और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर भी हो गए तो जम्मू कश्मीर में एक नए बदलाव की आहट हुई। उससे बीजेपी का मनोबल बढ़ा और इस तरह 5 अगस्त 2019 एक ऐतिहासिक दिन बन गया।
तमाम क़ानूनी बाधाओं को पार करते हुए जब अयोध्या में राम जन्म तीर्थ बनाने का प्रस्ताव पारित हुआ और तैयारियाँ होने लगीं तब फ़रवरी 2020 से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छा थी कि वे अयोध्या जाएँ लेकिन इसी बीच कोरोना के कारण देश और पूरी दुनिया में तबाही का मंजर सामने आ गया। कोरोना की लड़ाई भी किसी विश्व युद्ध से कम नहीं कही जा सकती। यह अपेक्षा है कि मंदिर का निर्माण तीन वर्ष में पूर्ण हो जाएगा यानी कहा जा सकता है कि 2024 में आगामी लोकसभा चुनाव के पहले पहले अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण पूर्ण हो जाएगा।
अयोध्या में राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण करोड़ों भारतीयों का सपना है। जब 5 अगस्त को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की भव्य शुरुआत होगी, उसमें लाखों लोगों की उपस्थिति तो नहीं होगी, लेकिन करोड़ों लोग उसे टेलीविजन चैनलों के माध्यम से लाइव देख सकेंगे और राम के प्रति अपनी श्रद्धा जता सकेंगे। यह एक मंदिर का निर्माण ही नहीं है यह भारतीय जनता पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण अभियान की शुरुआत भी है। एक पुराना और महत्वपूर्ण एजेंडा जिसे पूरा होना है।
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