प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार की रात ट्वीट किया - ''इस रविवार को फ़ेसबुक, टि्वटर, इंस्टाग्राम और यू -ट्यूब अकाउंट्स को छोड़ने की सोच रहा हूं। इस बारे में बताता रहूँगा।'' घंटेभर के भीतर ही इस एक ट्वीट पर 50,000+ लोगों ने कमेंट किये, 25, 200+ ने इसे रिट्वीट किया और 76,400 ने लाइक किया। ट्विटर पर मोदी के 5 करोड़ 33 लाख, फेसबुक पर 4 करोड़ 47 लाख, इंस्टाग्राम पर 3 करोड़ 52 लाख से ज़्यादा फ़ॉलोवर्स हैं और यूट्यूब पर उनके 4 करोड़ 51 लाख से अधिक सब्सक्राइबर हैंI उनके नाम पर दर्ज़नों फर्जी अकाउंट भी हैं।
सोशल मीडिया के प्लेटफ़ॉर्म्स पर मोदी की उपस्थिति बरसों से है। न केवल उनकी उपस्थिति, बल्कि उनकी ज़बरदस्त उपस्थिति का प्रभाव किसी भी नेता के लिए रश्क करने लायक है। सोशल मीडिया का कोई भी प्लेटफ़ॉर्म उनसे अछूता नहीं है और वह नमो ऐप के ज़रिये लोगों की जेब तक अपनी पहुंच बना चुके हैं। खाड़ी देशों की यात्रा के दौरान उन्होंने भारतीय समुदाय के बीच अपने ऐप के प्रचार में कहा था कि नरेंद्र मोदी ऐप डाउनलोड करें और इस तरह आप मुझे अपनी जेब में रख सकते हैं।
17 सितम्बर, 2019 को प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर नरेंद्र मोदी ऐप को री-लांच किया गया, उसके बाद उसे डेढ़ करोड़ लोगों ने और डाउनलोड किया है। मोदी इस ऐप के माध्यम से ही अपने कार्यकर्ताओं और प्रशंसकों के संपर्क में रहते हैं। नमो ऐप ख़ुद ही अनेक ऐसी बातों को फैला रहा है, जिन्हें रोकने की जिम्मेदारी सरकार की होती है। आरोप लगते रहे हैं कि नमो ऐप को डाउनलोड करने वालों का पूरा डाटा उनकी अनुमति के बिना जमा किया जा रहा है। उसका उपयोग डाटा को जमा करने वाला अपने हित के लिए कर सकता है।
भारत में फ़ेक न्यूज़ का एक सबसे बड़ा स्रोत बीजेपी समर्थकों के सोशल मीडिया अकाउंट्स हैं। ये बीजेपी समर्थक दूसरे दलों के विरोध में इंटरनेट पर मिलने वाले कंटेंट का प्रचार करते रहते हैं, जिसमें से अधिकांश कंटेंट झूठा होता है। टाइम पत्रिका ने इस बारे में रिपोर्ट छापी थी कि किस तरह बीजेपी की इनफ़ार्मेशन सेल तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करती है। धार्मिक उन्माद को भड़काती है और वॉट्सऐप पर गलत प्रचार भी करती है।
पिछले लोकसभा चुनाव से पहले नमो ऐप अपने यूज़र्स को प्रेरित करता था कि वे मोदी मर्चेंटाइज़ खरीदें। जैसे मोदी के नाम पर हूडीज़, कैप आदि बेचने का काम इस ऐप के माध्यम से होता है।
केन्द्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत और राज्यवर्धन सिंह राठौर मोदी हुडीज़ का प्रचार करते नज़र आए थे। सोशल मीडिया पर उन्होंने लिखा था कि क्या आपने मोदी हुडी ख़रीदा?
नमो ऐप के ज़रिए तरह-तरह के सर्वे भी किए जाते है। इसके अलावा एक प्राइवेट टि्वटर जैसा अकाउंट भी वहां है, जिसमें यूज़र अपना कंटेंट पोस्ट कर सकता है। यह एक शेयरिंग प्लेटफ़ॉर्म भी है, जहां पोस्ट को शेयर किया जा सकता है।
नमो ऐप पर है अधिकतर फ़ेक कंटेंट
नमो ऐप के जरिये माय नेटवर्क में जो फ़ीड आती है, वह यूजर द्वारा जेनरेटेड होती है। इसका मतलब यह है कि कोई भी यूज़र वहां अपना कंटेंट शेयर कर सकता है। इसमें अनेक सामग्री ऐसी होती हैं, जो भड़काऊ हैं और झूठी ख़बरों का जाल भी हैं। नमो ऐप पर एक पोस्ट के अनुसार कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी विधानसभा का चुनाव इसलिए नहीं जीत पाई क्योंकि वहां हिन्दू वोटरों ने कम संख्या में वोट डाले थे। वास्तव में जाति या धर्म आधारित कोई भी डाटा चुनाव आयोग द्वारा जारी किया ही नहीं जाता। जाहिर है ऐसे कंटेंट की विश्वसनीयता कुछ भी नहीं होती। इसी तरह एक फ़ोटो शेयर किया गया था, जिसमें राहुल गांधी कांग्रेस के मुख्यालय में बैठे हुए हैं और उनके पीछे किसी मुगल बादशाह की तसवीर लगी हुई है। वास्तव में वहां महात्मा गांधी की तसवीर थी, जिसकी जगह मुगल बादशाह की तसवीर फ़ोटोशॉप से चिपकाई गई और शेयर की गई, जिससे यह भ्रम होता है कि कांग्रेस के मुख्यालय में मुगल बादशाह की तसवीर लगी हुई है।
इसी तरह कुछ दिनों पहले नमो ऐप पर बीबीसी के हवाले से यह दावा करने की पोस्ट की गई थी कि हाल ही में हुए एक सर्वे में कांग्रेस पार्टी विश्व की चौथी सबसे भ्रष्ट पार्टी मानी गई है। जबकि बीबीसी ने इस बारे में बयान दिया कि उन्होंने इस तरह का कोई सर्वे कभी किया ही नहीं।
बीजेपी की आईटी सेल के प्रमुख के अनुसार जब लाखों की संख्या में स्वयंसेवकों, कार्यकर्ताओं और प्रशंसकों द्वारा पोस्ट लिखी जा रही हों, तो उन सभी की जांच-पड़ताल करना बहुत मुश्किल होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर किसी विश्वसनीय व्यक्ति के नेटवर्क पर इस तरह के कंटेंट आ रहे हों तो लोगों में उसके प्रति भरोसा ज्यादा होगा।
नमो ऐप के कंटेंट के बारे में फ़ेसबुक पर कई ग्रुप जानकारी देते रहते हैं। इनमें ‘द इंडिया आई’, ‘मोदी भरोसा’ और ‘सोशल तमाशा’ नाम के ग्रुप बहुत लोकप्रिय हैं। इन ग्रुप पर नमो ऐप द्वारा जारी की गई जानकारी की समीक्षा और टिप्पणी की जाती है। सोशल मीडिया विशेषज्ञों के अनुसार, आप ऐसी जगह यह कहकर नहीं बच सकते कि यह कंटेंट तो यूज़र ने लिखा है, हमारा इससे कोई लेना-देना नहीं है।
यह पाया गया कि नमो ऐप पर शेयर की गई सबसे लोकप्रिय पोस्ट में से लगभग एक तिहाई झूठी और भ्रामक थीं। तथ्य यह भी है कि नमो ऐप इस तरह के कंटेंट को डिफ़ॉल्ट फ़ीड्स में दिखाता रहता है।
नमो ऐप का जोर-शोर से प्रचार
नमो ऐप केवल मतदाताओं से जुड़ने का साधन नहीं है। यह पार्टी के कार्यकर्ताओं में संदेशों के आदान-प्रदान का भी जरिया है। यह नेताओं के लिए भीड़ जुटाने के अभियान में मदद का हिस्सा है। इस ऐप के माध्यम से टि्वटर हैशटैग ट्रेंडिंग को प्रभावित भी किया जाता है। नमो ऐप के प्रचार के लिए कर्मचारियों की बहुत बड़ी फौज़ है, जिन्हें इस बात की तनख्वाह दी जाती है कि किसी भी तरह इस ऐप को बीजेपी कार्यकर्ताओं के फ़ोन में इंस्टाल करवाएं।
नमो ऐप से जुटाया चंदा
इसके अलावा नमो ऐप भारतीय जनता पार्टी के लिए चंदा इकट्ठा करने का काम भी कर रहा था। इस ऐप के माध्यम से कोई भी व्यक्ति भारतीय जनता पार्टी को 5 रुपये से 1000 रुपये तक का चंदा दे सकता था। कुछ वक्त पहले यह योजना थी कि चंदा देने वाला उसे प्राप्त रसीद का कोड ई-मेल, एसएमएस या वॉट्सऐप से भेजकर एक लॉटरी में भी शामिल होगा, जिसमें चुने हुए लोगों को नरेन्द्र मोदी से व्यक्तिगत रूप से मिलने का मौक़ा मिलेगा और कुछ लोगों को यह मौक़ा मिला भी। जो व्यक्ति अपने अलावा 10 और लोगों को चंदा देने के लिए प्रेरित करेगा, उन्हें नमो मर्चेंटाइज़ की टी-शर्ट, नोट बुक्स, डायरी, स्टीकर, पेन, टोपी, कॉफी मग आदि उपहार में देने की योजना भी थी।
फ़ेसबुक से हट रहे हैं लोग
ट्विटर, फ़ेसबुक की तुलना में ज्यादा सक्रिय राजनैतिक माध्यम है। जब ट्विटर पर शशि थरूर के रिकॉर्ड को नरेंद्र मोदी ने तोड़ा था, तब मोदी समर्थकों ने सोशल मीडिया पर जमकर जश्न मनाया था। पूरी दुनिया में लोग यह मानने लगे हैं कि फ़ेसबुक फ़ेक न्यूज़ के प्रचार का सबसे बड़ा प्लेटफार्म बन गया है और उसका नाम फ़ेसबुक के बजाय फ़ेकबुक होना चाहिए। बड़ी संख्या में लोग फ़ेसबुक से हट रहे हैं।
लेहाई विश्वविद्यालय के कम्प्यूटर विभाग के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर एरिक पी.एस. बामेर ने इस पर अध्ययन किया, तो पाया कि जो लोग फ़ेसबुक छोड़कर जा रहे हैं, उनमें अधिकांश युवा और किशोर वर्ग के हैं। अमेरिका में इन दिनों हवा चल रही है कि फ़ेसबुक ऐप को अपने मोबाइल से डिलीट कर दिया जाए। 44 प्रतिशत युवाओं ने अपने मोबाइल फोन से फ़ेसबुक ऐप हटा दिया है।
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