पारिवारिक पृष्ठभूमि से लेकर अपने लंबे पत्रकार जीवन में हल्का दक्षिणपंथी रुझान रखने वाले अपने एक वरिष्ठ साथी ने मध्य प्रांत सरकार का 1938 का एक परिपत्र भेजकर दो सवाल पूछे हैं। मध्य प्रांत और बेरार सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव द्वारा राज्य के बड़े अधिकारियों के नाम भेजे इस परिपत्र में निर्देश दिया गया है कि भविष्य में ‘मिस्टर गांधी’ को महात्मा गांधी कहा जाए। इस परिपत्र के साथ यह निर्णयात्मक वाक्य लिखने कि ‘मोहनदास को महात्मा बनाने का आदेश ही ब्रिटिश सरकार का था’ के बाद वे यह भोला सा सवाल पूछते हैं कि क्या यह कोई षडयन्त्र है या इसके पीछे कोई कहानी है।
गांधीजी को लेकर दक्षिणपंथी अचानक इतने चिंतित क्यों?
- विचार
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- 26 Mar, 2025

दक्षिणपंथी संगठनों और नेताओं में गांधीजी को लेकर अचानक चिंता क्यों बढ़ गई है? क्या यह विचारधारा की नई लड़ाई है या फिर गांधीजी की विरासत को कमजोर करने की साजिश? पढ़ें पूरी रिपोर्ट।
अगर दो तीन बातों को नजरअंदाज कर जाएं तो इस सर्कुलर जैसे प्रमाण के बाद बहुत कुछ कहने को नहीं रहता। पहली बात तो यही है कि 1937 से मध्य प्रांत समेत देश के अधिकांश प्रदेशों में चुनी हुई कांग्रेसी सरकारें थीं जिनको काफी अधिकार भी थे। उनका कामकाज काफी अच्छा था और दूसरे विश्वयुद्ध में भारत को उसकी इच्छा के विपरीत शामिल किए जाने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ इन सरकारों ने इस्तीफे दिए थे। और यह आदेश अगर कांग्रेस की सरकार ने जारी कराया था तो इसमें अंग्रेजों को श्रेय देने की क्या ज़रूरत है। दूसरी बड़ी बात है कि गांधी को 1915 से ही महात्मा कहा जाना शुरू कर दिया गया था और आज इस बात पर बहस है कि सबसे पहले महात्मा किसने कहा था (टैगोर, राजकुमार शुक्ल या किसी गुजराती रजवाड़े के शासक ने)। ऐसे में बीस-बाईस साल बाद शासन को इसका होश आता है तो श्रेय उसको क्यों दिया जाए?