दो लाख से ज़्यादा कोरोना अभागों की दुर्भाग्यपूर्ण विदाई के बीच बंगाल के प्रतिष्ठापूर्ण चुनावों में हुई सिर्फ़ ‘एक’ राजनीतिक महत्वाकांक्षा की मौत का, अगर मौन स्वरों में स्वागत किया जा रहा है तो बहुत आश्चर्य नहीं व्यक्त किया जाना चाहिए। जब सत्ता के नायक चुनावी सभाओं में बिना मास्क के जुटने वाली कुम्भ जैसी भीड़ को अपना ‘बंधक’ और अस्पतालों में ऑक्सीजन की कृत्रिम साँसों के लिए दम तोड़ते मरीज़ों को अपना ‘विपक्ष’ मान लेते हैं तब उससे निकलने वाले परिणामों का नाम सिर्फ़ पश्चिम बंगाल होता है।
जनादेश ममता के पक्ष में नहीं, प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ है
- विचार
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- 3 May, 2021

देखने की सबसे बड़ी बात यह होगी कि बीजेपी और संघ के कार्यकर्ता अपने वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व के प्रति अब किस तरह की आस्था और आत्मविश्वास क़ायम रखते हैं! वह इन मायनों में कि क्या एक भी नेता अपनी रीढ़ की हड्डी सीधी करके कह पाएगा कि पार्टी नेतृत्व में जो कुछ चल रहा है उसे बदलना चाहिए?
मैंने तीन सप्ताह पहले लिखे अपने लेख (सवाल उल्टा होना चाहिए! बंगाल में मोदी जीतेंगे या हार जाएँगे?’) में कहा था कि वहाँ चुनाव बीजेपी और तृणमूल पार्टी के बीच नहीं बल्कि प्रधानमंत्री मोदी और ममता बनर्जी के बीच हो रहा है। मैंने यह भी लिखा था कि ऐसा पहली बार हो रहा है जब एक प्रधानमंत्री किसी राज्य में एक मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ चुनाव का नेतृत्व कर रहा हो। अब, जबकि प्रधानमंत्री चुनाव में हार गए हैं, उन्हें इस पराजय को देश के करोड़ों कोरोना पीड़ित लोगों और उनके परिजनों के प्रतिनिधि पश्चिम बंगाल के मतदाताओं द्वारा उनके नेतृत्व के प्रति पारित किया गया अविश्वास प्रस्ताव मानते हुए पद से इस्तीफ़ा दे देना चाहिए। प्रजातंत्र को जीवित रखने के लिए अब इस ऑक्सीजन की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। पर हमें पता है कि प्रधानमंत्री में ऐसा करने का साहस नहीं है।