दो लाख से ज़्यादा कोरोना अभागों की दुर्भाग्यपूर्ण विदाई के बीच बंगाल के प्रतिष्ठापूर्ण चुनावों में हुई सिर्फ़ ‘एक’ राजनीतिक महत्वाकांक्षा की मौत का, अगर मौन स्वरों में स्वागत किया जा रहा है तो बहुत आश्चर्य नहीं व्यक्त किया जाना चाहिए। जब सत्ता के नायक चुनावी सभाओं में बिना मास्क के जुटने वाली कुम्भ जैसी भीड़ को अपना ‘बंधक’ और अस्पतालों में ऑक्सीजन की कृत्रिम साँसों के लिए दम तोड़ते मरीज़ों को अपना ‘विपक्ष’ मान लेते हैं तब उससे निकलने वाले परिणामों का नाम सिर्फ़ पश्चिम बंगाल होता है।