29-30 अगस्त की रात को पूर्वी लद्दाख के पैंगोग झील इलाक़े के दक्षिणी छोर की काला टॉप और हेलमेट टॉप पर्वतीय चोटियों पर रातों-रात कब्जा जमाने वाले जांबाज तिब्बती और गोरखा जवान भारतीय सेना की स्पेशल फ़्रंटियर फ़ोर्स के हैं जिसे विकास बटालियन कहा जाता है। पैंगोंग झील के दक्षिणी छोर की चोटियों के इलाक़े में चीनी सेना को आगे बढ़ने से रोकने की साहसी कार्रवाई करने वाली इस बटालियन की स्थापना 1962 के युद्ध से पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने की थी।
जानिए, कौन हैं विकास बटालियन के जवान जिन्होंने नाकाम की चीनी घुसपैठ की कोशिश
- विचार
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- 3 Sep, 2020

स्पेशल फ़्रंटियर फ़ोर्स में दस बटालियनें यानी करीब दस हजार सैनिक हैं। इस फ़ोर्स के जवानों को किसी भी घटनास्थल पर आपात स्थिति में तैनात करने के लिए अपना गल्फस्ट्रीम विमान, मालवाही हेलिकॉप्टर, टोही हेलिकॉप्टर और इसराइल से आयातित टोही विमान सर्चर और हेरोन के अलावा भारत में विकसित रुस्तम टोही विमान भी सौंपे गए हैं। इस कमांडो फ़ोर्स के जवानों को दुनिया के आधुनिकतम संहारक अमेरिकी सब मशीनगन एम-1, एम-2 और एम-3 से लैस किया गया है।
नेहरू ने यह काम तब के ख़ुफ़िया ब्यूरो (आईबी) प्रमुख भोला नाथ मलिक की सलाह पर किया था। इस बटालियन में तिब्बती युवाओं को भर्ती करने की सिफारिश की गई थी ताकि वे तिब्बत के भीतर छापामार और ख़ुफ़िया गुप्तचर की भूमिका निभा सकें लेकिन बाद में इस बटालियन में गोरखा जवानों को भी भर्ती किया जाने लगा। शुरू में इस फ़ोर्स को ख़ुफ़िया ब्यूरो और बाद में रिसर्च एंड एनॉलिसिस विंग के अधीन रखा गया।