गत 5 मई के बाद से पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पार करीब एक हज़ार वर्ग किलोमीटर के भारतीय इलाक़े पर कब्जा कर बैठी चीनी सेना के लिये 29-30 अगस्त की रात दूसरी क़यामत की रात साबित हुई। चीनी सेना ने कल्पना नहीं की थी कि भारतीय सैनिक गलवान घाटी में उसके सैनिकों के ख़िलाफ़ इतनी बहादुरी से लड़ेंगे। उसी तरह पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग झील के दक्षिणी तट के इलाके में 15 हजार फीट ऊँची चोटियों पर भारतीय सेना द्वारा अपने सैनिकों को बैठा देना चीन के लिये दूसरी बड़ी शर्मिंदगी का कारण बना।
चीनी मंसूबों पर पानी फिरा
चीनी सेना ने सोचा होगा कि जिस आसानी से उसने देपसांग घाटी से लेकर पैंगोंग त्सो झील इलाके में एक हज़ार वर्ग किलोमीटर इलाक़े पर कब्जा कर लिया, उसी तरह वह पैंगोंग त्सो झील के दक्षिणी छोर की चोटियों पर भी अपना कब्जा जमा लेगी। 29-30 अगस्त की रात को चीनी सेना भारतीय सेना को चकमा देने की तैयारी कर रही थी कि वह अचानक पैंगोंग त्सो झील के दक्षिणी तट की चोटियों पर रातों रात अपना कब्जा जमा लेगी।भारतीय सेना के इन चोटियों पर बैठ जाने से ही चीन को झुकाने की बात नहीं कर सकते। उसके सामने बड़ी चुनौती हाल में चीनी सेना द्वारा पूर्वी लद्दाख के इलाक़े में कब्जा किये गए एक हज़ार वर्ग किलोमीटर के भारतीय इलाक़े को खाली कराना है।
चीनी रणनीति
वास्तव में पिछले दो दशकों से चीन की रणनीति यह रही है कि वह भारतीय इलाक़े में सलामी स्लाइसिंग टैक्टिक्स की रणनीति लागू करती रहे। यानी एक एक कदम कर धीरे- धीरे आगे बढ़े और इस तरह वास्तविक नियंत्रण रेखा को भारत की ओर निरंतर खिसका कर अपने प्रादेशिक इलाके का विस्तार करता जाए।चीन अगर पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग त्सो झील के दक्षिणी तट की चोटियों पर कब्जा करने में कामयाब हो जाता तो उसके लिये भविष्य में वहां से निकट चुशुल घाटी पर प्रभुत्व स्थापित करना आसान हो जाता। चीन यह आकलन कर रहा होगा कि जिस तरह पैंगोंग त्सो झील के उत्तरी तट पर उसके सैनिकों ने कब्जा किया हुआ है और वहां से पास के भारतीय इलाकों पर वह अपनी निगरानी रख सकता है, उसी तरह चुशुल घाटी पर निगरानी रखेगा।
डीएसडीओ
पैंगोंग झील के दक्षिणी तट पर कब्जा कर चीन वहाँ से 255 किलमीटर लम्बा दुर्बुक- श्योक- दौलतबेग ओल्डी मार्ग तक अपनी पहुँच आसान बनाना चाह रहा था।चीन की रणनीति है कि किसी भी तरह इस राजमार्ग को भारतीय सेना के इस्तेमाल लायक नहीं रहने दिया जाए या फिर इस पर कब्जा ही कर लिया जाए। इस राजमार्ग के ज़रिये भारतीय सेना चीन के कराकोरम राजमार्ग के काफी नजदीक पहुँच गयी है।
पाकिस्तान का रास्ता
इस राजमार्ग के पास पाकिस्तान के कब्जे वाला गिलगिट- बालटिस्तान का इलाक़ा है, जहाँ से चीन- पाक आर्थिक गलियारा( सीपीईसी) गुजरता है। दौलतबेग ओल्डी राजमार्ग के ज़रिये किसी सैनिक कार्रवाई या युद्ध के दौरान
भारत इस गलियारा को आसानी से बाधित या ध्वस्त कर सकता है।
साफ है कि पैंगोंग झील के दक्षिणी तट की जिन चोटियों पर जहां चीन बैठना चाहता था वहां भारतीय सेना बैठ गई है, जिससे चीनी सैन्य नेतृत्व काफी बौखला गया है।
यही वजह है कि चीनी सेना और विदेश मंत्रालय ने पहली बार भारतीय सेना पर आरोप लगाया है कि उसने न केवल वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लंघन किया है, बल्कि पिछले दिनों दोनों देशों के बीच परस्पर भरोसा पैदा करने वाले जिन उपायों पर सहमति हुई थी, उसे तोड़ा है। इसमें यह कहा गया था कि रात के दौरान दोनों सेनाएं अपने इलाके में ही रहेंगी और आवाजाही नहीं करेंगी। चीनी विदेश मंत्रालय ने भारत को चेतावनी दी है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लंघन नहीं करे। चीन ने इसे भड़काने वाली कार्रवाई की संज्ञा दी है।
बैठक नाकाम
चीन की बौखलाहट की वजह से इलाक़े में सैन्य तनाव काफी बढ़ गया है। चीनी और भारतीय ब्रिगेड कमांडरों की सोमवार को बैठक हुई थी जो दूसरे दिन मंगलवार को भी चली, लेकिन इसका कोई नतीजा सामने नहीं आया है।पूर्वी लद्दाख के स्पांगुर गैप और अन्य जगहों पर चीनी सेना द्वारा टैंक और अन्य बड़े हथियार तैनात किये जाने के बाद भारतीय सेना ने भी टैंक और टैंक नाशक मिसाइलों की तैनाती कर चीन को संदेश दिया है कि भारतीय सेना किसी भी जवाबी कार्रवाई के लिये तैयार है।
चीनी मंत्री से मिलेंगे राजनाथ?
पूर्वी लद्दाख में इस तेज़ी से बदलते सुरक्षा हालात पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने आला रक्षा सहयोगियों के साथ गहन चर्चा की है। ग़ौरतलब है कि वह 4 सितम्बर को मास्को जा रहे हैं, जहाँ उनकी चीनी रक्षा मंत्री से मुलाकात हो सकती है।
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