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ध्रुवीकरण के ख़तरनाक खेल का असर यूपी के उपचुनावों में होगा?

वैसे तो योगी जी अपने बुलडोजर राज के लिए ही जाने जाते हैं, लेकिन अब लग रहा है कि भाजपा की अंदरूनी लड़ाई में बरतरी हासिल करने और विपक्ष से हारी बाजी फिर छीन लेने के लिए उन्होंने कठोर हिंदुत्व के रास्ते को और धार देने का फ़ैसला किया है। पहले मुजफ्फरनगर में तो स्थानीय पुलिस ने दुकानदारों को अपना नाम लिखने का फरमान जारी किया, यहां तक कि चौतरफा किरकिरी होने पर उसे स्वैच्छिक बता दिया। लेकिन ऐसा लगता है कि इस पर हो रही धुर-विभाजनकारी प्रतिक्रियाएं देखने के बाद योगी को यह आपदा में अवसर लगा और उन्होंने पूरे प्रदेश में इसे लागू करने का एलान कर दिया है। इसे हिंदुत्व खेमे में अपनी supremacy स्थापित करने और प्रदेश में तीखे ध्रुवीकरण के लिए वह इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि उपचुनाव में सफलता मिल सके और उसके बल पर वे पार्टी के अंदर घेरेबंदी में लगे अपने प्रतिद्वंद्वियों को धूल चटा सकें।

यह पूरी कार्रवाई धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र के बुनियादी मूल्यों के ख़िलाफ़ तो है ही, संविधान में प्रदत्त भेदभाव व छुआछूत के विरुद्ध समानता के अधिकार तथा आजीविका के अधिकार पर सीधा हमला है। जाहिर है इसे मुसलमानों को समाज में अलग-थलग करने, उनकी अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ने तथा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए अंजाम दिया जा रहा है। हिंदू युवा, जिनमें अधिकांशतः गरीब, पिछड़े, दलित परिवार के युवा हैं, वे अब बड़ी संख्या में कांवड़ यात्रा में भाग लेते हैं, उनके दिल-दिमाग में नफ़रती जहर भरना इसका उद्देश्य लगता है। लोकसभा चुनाव में इन तबकों की विपक्ष की ओर जो निर्णायक शिफ्टिंग हुई है उसे भाजपा पलटना चाहती है।

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सबसे रोचक यह है कि न सिर्फ भाजपा के तकरीबन सभी सहयोगी दल इस फरमान का विरोध कर रहे हैं, बल्कि भाजपा के अल्पसंख्यक नेता भी इसके खिलाफ बोलने की हिम्मत जुटा रहे हैं। दरअसल यह योगी की दिल्ली के खिलाफ पेशबंदी लगती है तो उधर सहयोगियों की मदद से योगी को घेरने की दिल्ली की भी कवायद है।

RLD ने इसे असंवैधानिक और विभाजनकारी करार दिया है। उनके प्रदेश अध्यक्ष रामाशीष राय ने मांग की है कि इसे वापस लिया जाए। उन्होंने कटाक्ष किया कि अगर पवित्रता की बात है तो शराब की दुकानें भी वहां बंद करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे नेता चरण सिंह विभाजनकारी राजनीति के विरोधी थे। सवाल यह है कि चरण सिंह की राजनीति के बारे में यह बयान उनके पौत्र जयंत चौधरी क्यों नहीं दे रहे हैं? जेडीयू के के सी त्यागी अपने "मॉडल राज्य" बिहार का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि इससे लंबी कांवड़ यात्रा बिहार-झारखंड में होती है, लेकिन वहां ऐसा कोई आदेश नहीं जारी होता। उन्होंने कहा कि यह मोदी के मंत्र "सबका साथ सबका विकास" के भी खिलाफ है। उन्होंने कहा कि मुसलमान भी कांवड़ यात्रा में मदद करते हैं। चिराग पासवान ने भी कहा है कि वे जाति धर्म के आधार पर उठाए जाने वाले हर विभाजनकारी कदम का विरोध करेंगे।

लाख टके का सवाल यह है कि ये लोग योगी सरकार के इस असाधारण क़दम पर कोई असाधारण प्रतिक्रिया क्यों नहीं करते, मसलन यह चेतावनी क्यों नहीं देते कि यह संविधान-विरोधी फरमान वापस नहीं हुआ तो हम भाजपा से संबंध विच्छेद कर लेंगे और सरकार से समर्थन वापस लेंगे? नीतीश और नायडू मोदी शाह से योगी को नियंत्रित करने के लिए क्यों नहीं कहते?
अब तक मुस्लिम कारीगर सस्ते कांवड़ बनाकर बेचते रहे हैं। मुस्लिम समाज के लोग रास्ते में कांवड़ियों को खाना भी खिलाते थे और अपनी जमीन में आराम के लिए उनके टेंट भी लगवाते थे। मिली जुली साझी संस्कृति की इस रवायत को नष्ट किया जा रहा है।

जाहिर है इसमें सिर्फ मुसलमानों का बहिष्कार नहीं होगा बल्कि दलित, पिछड़े समुदाय के लोग भी एक बार फिर पुराने दौर के छुआछूत के शिकार होंगे। क्या द्विज समुदाय के लोग दलित, महादलित आदि के भोजनालय में खाना खायेंगे? मुसलमान तो निकाले ही जायेंगे, तमाम कथित उच्चवर्णीय हिंदू होटलों या अन्य दुकानों से दलित कर्मी भी निकाले जाएंगे।

आस्था आहत होने का तर्क इतना एब्सर्ड है कि उस पर तंज करती टिप्पणियां सोशल मीडिया पर छाई हुई हैं। दरअसल उत्पादन से शुरू होकर कंज्यूमर के हाथ में पहुंचने तक कोई भी खाद्य पदार्थ फूड चेन में कितने लोगों के हाथ से गुजरता है, किन किन जाति, समुदाय, देश के लोगों के हाथ से छुवा जाता है, उसके आधार पर खाने का निर्णय लेना अहमकपने की इंतिहा है। यह तो आजीविका और जीवन के आधार को ही छिन्न भिन्न कर देना है। यह पूरे समाज के ताने बाने को छिन्न विच्छिन्न कर देगा।

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यह देखकर अब शायद ही किसी को अचरज हो कि उत्तर प्रदेश सरकार के ऐसे घोर संविधान विरोधी कदम के खिलाफ न उनकी पार्टी, न केन्द्र सरकार, न समरसता की बात करने वाले भागवत मुंह खोल रहे हैं। इससे साफ है कि इस पर सबकी मौन सहमति है। सहयोगी दल अपने चुनावी जनाधार में मौजूद मुसलमानों को अपने पक्ष में रखने के लिए भले विरोध का दिखावा कर रहे हैं, लेकिन ऐसी संविधान विरोधी कार्रवाई पर किसी निर्णायक कदम का साहस उनके अंदर नहीं है। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि यूपी की कार्यपालिका के इस खुले आम संविधान विरोधी कृत्य पर सारी संवैधानिक संस्थाएं मौन हैं।

बुलडोजर मॉडल की तरह योगी का यह चरम विभाजनकारी नुस्खा भी भाजपा शासित राज्यों में लोकप्रिय हो रहा है, उत्तराखंड हरिद्वार से भी वैसे ही फरमान की ख़बरें आ रही हैं। योगी एक बार फिर हिंदुत्व ब्रिगेड के हिरावल के बतौर उभर रहे हैं।

योगी सरकार का यह फरमान अपनी तार्किक परिणति तक पहुंचा तो यह देश को खंड खंड विखंडित करने की ओर ले जायेगा, हमारा देश कई फांकों में बंटता गृह युद्ध की अंधी सुरंग में पहुंच जाएगा।

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दरअसल हाल ही में हुए 7 राज्यों की 13 सीटों के उपचुनावों में भाजपा 11 सीटों पर हार गई। यहां तक कि उत्तराखंड की, जहां उसकी सरकार है, दोनों सीटें उसने खो दी। इस स्थिति में उत्तरप्रदेश में होने जा रहे दस उपचुनाव पूरी भाजपा के लिए जीवन मरण का प्रश्न बन गए हैं। योगी जी को मिला जीवन दान इसी के नतीजों पर निर्भर बताया जा रहा है। इसलिए इन्हें जीतने के लिए वे किसी भी हद तक जाएंगे। रामपुर के उपचुनाव में हुआ नंगा नाच अभी बहुतों की स्मृति में होगा। हालिया फरमान को इसी रोशनी में देखा जाना चाहिए। जनता इन चुनावों में भाजपा को करारी शिकस्त देकर धर्म की आड़ में खेले जा रहे इस ख़तरनाक ध्रुवीकरण के खेल का माकूल जवाब दे सकती है।

यह स्वागतयोग्य है कि छात्र-नौजवान रोजगार के अधिकार तथा एनटीए के फर्जीवाड़े के विरुद्ध और किसान एमएसपी की क़ानूनी गारंटी तथा कर्जमाफी के लिए फिर आंदोलन में उतरने की तैयारी में हैं। आशा की जानी चाहिए कि सड़क से संसद तक जनता का जुझारू प्रतिरोध सांप्रदायिकता के उन्मत्त सांड को लगाम लगाने का काम करेगा।

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लाल बहादुर सिंह
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