इसराइल-अरब संघर्ष और उसके पहले से चल रही रूस –यूक्रेन जंग के मद्देनज़र यूएनओ की ख़त्म या नगण्य होती भूमिका दुनिया के लिए चिंता का सबब है। यह वही दुनिया है जो अभूतपूर्व संकट –कोविड महामारी से निकल कर आ रही है और अब धीरे-धीरे आर्थिक अवसान से भी उबारना संभव हो पा रहा है। आख़िर क्यों ढाई साल से चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध या वर्तमान में इसराइल-फिलस्तीन जंग का ख़तरनाक पश्चिम एशियाई विस्तार के बावजूद यह संगठन मूकदर्शक बना रहा? कोविड के संकट के दौरान इसकी भूमिका मात्र महामारी से मरने वालों के आँकड़े देने से ज़्यादा नहीं थी। वैक्सीन की खोज भी देशों ने अपने दम पर किया। यहाँ तक कि महामारी के लिए चीन प्रयोगशाला को दोषी ठहराने में भी यह आनाकानी करता रहा।
ऐसे यूएनओ का क्या मतलब जो टूल की तरह इस्तेमाल हो
- विचार
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- 30 Oct, 2024

वर्तमान स्थितियों के मद्देनज़र यह ज़रूरी हो गया है कि या तो एक नयी ऐसी वैश्विक संस्था बने जो दक्षिणी दुनिया (गरीब देशों) को केंद्र में रखे या फिर यूएन में ही अमूल-चूल सुधार किया जाये। लेकिन क्या इतनी ईमानदारी से ऐसा संगठन बनाने को दुनिया के बड़े मुल्क आगे आयेंगे?
रूस-यूक्रेन युद्ध में यह पश्चिमी दुनिया के इशारे पर काम करता रहा। इसराइल-फिलस्तीन युद्ध में तो संगठन प्रमुख को इसराइली सरकार ने अपने देश में प्रवेश पर पाबन्दी लगा दी और उन्हें ‘आतंकवादियों’ का समर्थक करार दिया। किसी ने सोचा भी न था कि इसराइली हिमाकत इस कदर निडर होगी कि लेबनान में यूएन की शांति बहाली सेना पर ही हमला कर देगी। भारत के विदेश मंत्री ने ठीक ही कहा कि वीटो-शक्ति संपन्न पांच देशों ने इस संगठन को अपने हित-साधन का टूल मान लिया है। उनका मानना था कि यह स्थिति बदलनी होगी ताकि संगठन को उपादेय बनाया जा सके।