अमेरिकी संसद में बुधवार की रात को जो कुछ हुआ उसे दुनिया के सबसे पुराने और सबसे शक्तिशाली लोकतंत्र के इतिहास के एक काले अध्याय के रूप में याद किया जाएगा। निवर्तमान राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप अपनी चुनावी हार के बाद से निरंतर अपने समर्थकों को भड़काने वाले बयान देते आ रहे थे। इसलिए लोगों का रोष भड़कने और मार-पीट की नौबत आने का अंदेशा तो सभी को था। लेकिन इसकी कल्पना शायद ख़ुफ़िया एजेंसियों और सुरक्षा बलों ने भी नहीं की थी कि ट्रंपवादियों की भीड़ नए राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव का अनुमोदन करने के लिए हो रहे संसद के औपचारिक अधिवेशन को भंग करने के लिए अमेरिका के कैपिटल यानी संसद भवन पर ही हमला बोल देगी और मुठभेड़ में दो महिलाओं सहित चार प्रदर्शनकारियों की मौत हो जाएगी।
संसद पर हमले से कभी उबर पायेगा अमेरिका?
- विचार
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- 8 Jan, 2021
जॉर्जिया की हार, संसद पर हमला करने का प्रयास ट्रंप और उसके समर्थकों के लिए आख़िरी कुरुक्षेत्र साबित हुआ है। इसके बाद व्हाइट हाउस पर क़ब्ज़ा जमाए रखने के सारे रास्ते बंद होते दिखाई देते हैं। पर इतना ज़रूर है कि अमेरिकी समाज में फूट, नस्लवाद और तथाकथित बाहर वालों के प्रति आशंका का जो बीज ट्रंप ने अपने चार सालों में बोया है उसकी फ़सल आसानी से निर्मूल होने वाली नहीं है।