क़ुरान की आयतों पर सवाल
गाँधी जी के बिड़ला भवन के प्रार्थना मैदान में “अल फ़ातेहा” पढ़ने पर एक व्यक्ति ने ऐतराज किया। प्रार्थना रोक दी गई। लेकिन गाँधी जी ने सभा के सामने भाषण दिया। उन्होंने कहा, “मैं ऐतराज करने वाले से बहस नहीं करना चाहता। लोगों के दिलों में आज जो ग़ुस्सा भरा हुआ है, उसे मैं समझता हूं। वातावरण ऐसा तंग है कि मैं ऐतराज करने वाले एक आदमी की भी इज्जत करना उचित समझता हूं।”
हालांकि दूसरे दिन 22 सितंबर 1947 की अपनी प्रार्थना में गाँधी ने अपनी स्थिति साफ़ कर दी और कहा कि एक भी ऐतराज उठाने वाले आदमी के सामने झुकने में और प्रार्थना को रोकने में उन्होंने अकलमंदी दिखाई। उन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा, “हमारी प्रार्थना आम लोगों के लिए इसी अर्थ में खुली है कि जनता के किसी भी आदमी को उसमें शामिल होने की मनाही नहीं है। वह खानगी मकान के अहाते में की जाती है। उचित बात यह है कि सिर्फ़ वे ही लोग प्रार्थना में शामिल हों, जो क़ुरान की आयतों के साथ पूरी प्रार्थना में सच्चे दिल से श्रद्धा रखते हैं। बेशक यह कायदा खुले मैदान में होने वाली प्रार्थना सभाओं में भी लागू होना चाहिए।”
इतना कहने के बावजूद प्रार्थना सभा में आयतों का विरोध करने वाले आते रहे। एक व्यक्ति तो लंबे समय तक इसे लेकर विरोध जताता रहा। लेकिन गाँधी द्वारा स्थिति साफ़ किए जाने के बाद ऐसे लोगों की संख्या कम होती गई और आख़िरकार उस व्यक्ति ने भी क़ुरान की आयतों का विरोध करना बंद कर दिया था।
जब गाँधी को मुसलिम परस्त बताया गया
आज़ादी के दौरान जब चौतरफ़ा दंगे और लूटपाट होने लगी तो गाँधी ने हिंदुओं को मुसलिमों पर हमला करने से रोकने की बहुत कोशिश की। साथ ही पाकिस्तान से आने वाले शरणार्थियों को मुसलमानों के घरों पर कब्जा करने से रोका और उन्हें नसीहत दी कि इस तरह लूटपाट से जीने के बजाय ये शरणार्थी मेहनत और मजदूरी में अपना श्रम और दिमाग लगाएं। इसे लेकर गाँधी को मुसलिम परस्त कहा जाने लगा था।
एक प्रार्थना सभा में गाँधी ने इस बात को लेकर निराशा जताई कि कोई उनकी बात सुनने को तैयार नहीं है। साथ ही यह भी कहा जाने लगा था कि नई व्यवस्था में गाँधी के लिए कोई जगह नहीं है।
“
एक वक्त था, जब सारा हिंदुस्तान मेरी बात सुनता था। आज मैं दकियानूसी माना जाता हूं। मुझसे कहा गया है कि नई व्यवस्था में मेरे लिए कोई जगह नहीं है। नई व्यवस्था में लोग मशीनें, जल सेना, हवाई सेना और न जाने क्या क्या चाहते हैं, जिसमें मैं शामिल नहीं हो सकता।
महात्मा गाँधी
अहिंसा के मार्ग पर अडिग रहे गाँधी
गाँधी इतनी आलोचनाओं से भी निराश और विचलित नहीं हुए। उन्होंने अपनी अहिंसा की नीति जारी रखी। गाँधी ने कहा कि लोग यह कहते सुने जाते हैं कि हंस के लिया पाकिस्तान, लड़के लेंगे हिंदुस्तान। उन्होंने कहा, ‘अगर मेरी चले तो मैं हथियार के जोर से उन्हें हिंदुस्तान कभी न लेने दूं। कुछ मुसलमान सारे हिंदुस्तान को पाकिस्तान बनाने की बात सोच रहे हैं। यह काम लड़ाई के जरिए कभी नहीं हो सकेगा। पाकिस्तान हिंदू धर्म को कभी बर्बाद नहीं कर सकेगा। सिर्फ़ हिंदू ही अपने आपको और अपने धर्म को बर्बाद कर सकते हैं। इसी तरह अगर पाकिस्तान बर्बाद हुआ तो वह पाकिस्तान के मुसलमानों द्वारा ही बर्बाद होगा, हिंदुस्तान के हिंदुओं द्वारा नहीं।’
पाकिस्तान के बड़े अख़बार भारत में होने वाली घटनाओं को ख़ूब बढ़ा-चढ़ाकर छापते थे। गाँधी की नज़र पाकिस्तानी अख़बारों पर भी रहती थी। वह न सिर्फ़ उस समय के प्रशासनिक तंत्र से ऐसे विषयों पर सफ़ाई लेते थे, बल्कि स्थिति साफ़ करने का भी काम करते थे।
गाँधी ने 27 नवंबर 1947 के अपने प्रवचन में कहा, ‘पाकिस्तान के अख़बार काठियावाड़ के बारे में अच्छी ख़बरें नहीं देते। आज तार भी आया है कि काठियावाड़ में बहुत जगह मुसलमान आराम से नहीं रह सकते। वहां काफ़ी तगड़े मुसलमान पड़े हैं। बलवाखोर भी हैं, तो क्या हम वहां के सब मुसलमानों को काट डालें या भगा दें? मेरे लिए विकट परिस्थिति पैदा हो गई है। मैं काठियावाड़ का हूं। वहां के सब लोगों को जानता हूं। शामलदास गाँधी मेरा ही लड़का है। जूनागढ़ आरजी हुकूमत का सरदार बनकर बैठ गया है। क्या उसकी हाजिरी में काठियावाड़ में ऐसी चीजें हो सकती हैं? हिंदू भी इतना तो कहते हैं कि कुछ लूट और आग लगाने का काम हुआ है। मगर ख़ून नहीं हुआ, औरतें नहीं उड़ाई गईं।’
गाँधी ने भले ही यह कहकर मामले को शांत करने की कवायद की, लेकिन उनके दिमाग में यह लगातार चलता रहा कि काठियावाड़ में कुछ ग़लत हो रहा है। पाकिस्तानी अख़बारों की ख़बर और काठियावाड़ से आ रही चिट्ठियों को लेकर उन्होंने तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल को तलब किया।
गाँधी ने सरदार से कहा कि आपने बातें तो बड़ी-बड़ी की थीं, आपने कहा था कि काठियावाड़ में किसी मुसलमान बच्चे को भी कोई छू नहीं सकता, मगर वहां तो लूटना, आग लगाना, मार-काट, लड़कियां उड़ाना वगैरह चलता है!
पटेल को इस मसले पर सफ़ाई देनी पड़ी। उन्होंने गाँधी को यथासंभव सही जानकारी देते हुए कहा, “जहां तक मैं जानता हूं, और मैं सही जानता हूं, यह सब ख़बरें दुरुस्त नहीं हैं। काठियावाड़ के हिंदू बिगड़े थे, वे कहां नहीं बिगड़े? कुछ लूट वगैरह भी हुई। मगर उसे दबा दिया गया है। मेरे भाषण के बाद तो वहां कुछ भी नहीं हुआ। किसी का ख़ून नहीं हुआ। किसी की लड़की नहीं उड़ाई गई। कांग्रेसवालों ने भी अपनी जान को ख़तरे में डालकर मुसलमानों के जानमाल की रक्षा की है। जब तक मैं हूं, काठियावाड़ में गुंडागिरी नहीं चल सकती।” पटेल के मुंह से इतना सुन लेने के बाद ही गाँधी आश्वस्त हो पाए थे। पटेल ने साफ़ किया कि हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने काठियावाड़ में बवाल करने की कोशिश की, लेकिन कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने जान पर खेलकर उन्हें सफलतापूर्वक रोक दिया है।
गाँधी के पास मुंबई के एक व्यक्ति ने एक अख़बार की कतरन भेजी। अख़बार ने लिखा था कि गाँधी वही कहते हैं, जो कांग्रेस कहती है। लोग वह सुनना भी नहीं चाहते। इस तरह से कांग्रेस रेडियो वग़ैरह का अपने ही प्रचार के लिए इस्तेमाल करेगी, तो आख़िर में यहां हिटलरशाही कायम हो जाएगी। पत्र लिखने वाले ने गाँधी से इस मसले पर स्थिति साफ़ करने की मांग की थी।
गाँधी ने उस व्यक्ति से कहा, ‘मैं कांग्रेस का बाजा बजाता ही नहीं। या सारे जगत का बाजा बजाता हूं। उस कतरन में यह भी कहा है कि अहिंसा की बात तो यूं ही ले आते हैं। हेतु तो यही है कि हुकूमत को अपना ही गान करना है। मैं यह कहता हूं कि जो हुकूमत अपना गान करती है, वह चल नहीं सकती।’
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